पटना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


रविवार, 14 दिसंबर 2025

पटना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात

Meet-nitish
पटना, (आलोक कुमार). बिहार की राजनीति में 8 दिसंबर 2025 का दिन केवल एक औपचारिक शिष्टाचार भेंट नहीं था, बल्कि यह उस विश्वास और संवाद की परंपरा का प्रतीक था जिसे लोकतांत्रिक व्यवस्था अपने भीतर संजोए रहती है. पटना महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष सेबेस्टियन कल्लूपुरा के नेतृत्व में कैथोलिक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात कर उन्हें रिकॉर्ड 10वीं बार मुख्यमंत्री बनने पर बधाई दी—एक उपलब्धि जिसे वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स (लंदन) ने भी दर्ज कर इतिहास का हिस्सा बना दिया है. इस प्रतिनिधिमंडल में विकार जनरल फादर जेम्स जॉर्ज, एक्सलरीज यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. मार्टिन पोरस, पटना वीमेंस कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. एम. रश्मि ए.सी., तथा अन्य प्रमुख शिक्षाविद और सामाजिक नेता शामिल थे। स्पष्ट है कि यह मुलाकात केवल राजनीतिक औपचारिकता तक सीमित नहीं थी, बल्कि बिहार के सामाजिक ताने-बाने और सामुदायिक विश्वास को मजबूती देने की एक पहल भी थी.

 

नीतीश कुमार के लंबे शासनकाल को लेकर आम राय यही रही है कि अल्पसंख्यक समुदाय—विशेषकर ईसाई—खुद को सुरक्षित और संरक्षित महसूस करते हैं। लेकिन सुरक्षा और विश्वास का यह वातावरण तभी पूर्ण माना जाएगा, जब प्रतिनिधित्व भी समान गति से आगे बढ़े. ईसाई समुदाय की यह अपेक्षा कि उन्हें बिहार विधान परिषद में उचित प्रतिनिधित्व मिले, बिल्कुल न्यायसंगत और लोकतांत्रिक कल्पना के अनुरूप है. इसी तरह, बिहार अल्पसंख्यक आयोग में ईसाई समुदाय की भागीदारी लगभग समाप्तप्राय है—जो न केवल असंतुलन का संकेत है, बल्कि शासन की सर्वसमावेशी प्रतिबद्धता के विपरीत भी जाता है.जनादेश भले ही व्यापक हो, लेकिन विकास और विश्वास का समीकरण तब ही संतुलित बनता है जब हर समुदाय को अपने अनुभव, अपनी समस्याएँ और अपना दृष्टिकोण साझा करने का संवैधानिक मंच मिलता है. नई सरकार के सामने चुनौती नहीं, बल्कि अवसर है कि वह इस प्रतिनिधित्वहीनता को दूर करे. यदि मुख्यमंत्री यह पहल करते हैं, तो यह कदम न केवल बिहार के ईसाई समुदाय के लिए आश्वस्ति का संदेश होगा, बल्कि राज्य की सामाजिक समरसता को और मजबूत करने वाला ऐतिहासिक निर्णय भी साबित होगा. आखिरकार, एक प्रगतिशील लोकतंत्र की पहचान ही यही है—जहाँ मुलाकातें प्रतीक नहीं, बदलाव की शुरुआत बनें.

कोई टिप्पणी नहीं: