वाराणसी : 19 वर्षीय देवव्रत का दंडक्रम पारायण, सीएम योगी ने किया सम्मानित - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 3 दिसंबर 2025

वाराणसी : 19 वर्षीय देवव्रत का दंडक्रम पारायण, सीएम योगी ने किया सम्मानित

  • 50 दिन तक अखंड 2000 वैदिक मंत्रों के पारायण से काशी बनी विश्ववैदिक साधना का केंद्र : योगी

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वाराणसी. (सुरेश गांधी) नमो घाट पर मंगलवार को काशी तमिल संगमम के शुभारंभ अवसर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 19 वर्षीय वेदमूर्ति देवव्रत महेश रेखे को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। वैदिक साधना की जिस असाधारण उपलब्धि ने सार्थक चर्चा पैदा की है, उसमें देवव्रत ने शुक्ल यजुर्वेद की माध्यंदिनि शाखा के लगभग 2000 मंत्रों से युक्त दंडक्रम पारायणम् को बिना किसी अवरोध के लगातार 50 दिनों में पूर्ण किया है। बता दें, पूरी दुनिया में अब तक केवल दो बार दंडक्रम पारायण हुआ है। पहली बार लगभग 200 वर्ष पूर्व नासिक में वेदमूर्ति नारायण शास्त्री देव ने इसे सम्पन्न किया था। दूसरी बार यह दुर्लभ और अत्यंत कठिन वैदिक साधना आज के समय में काशी में देवव्रत रेखे द्वारा सम्पन्न की गई। उन्होंने यह तप 2 अक्टूबर से 30 नवंबर 2025 तक वल्लभराम शालिग्राम सांगेद विद्यालय, रामघाट में किया, जिसकी पूर्णाहुति पिछले शनिवार को आयोजित हुई। युवक की विलक्षण साधना और अद्भुत अनुशासन को देखते हुए शृंगेरी शंकराचार्य के आशीर्वाद स्वरूप उन्हें सोने का कंगन और ₹1,01,116 की धनराशि प्रदान की गई।


अतिदुर्लभ है दंडक्रम पारायण?

शुक्ल यजुर्वेद की माध्यंदिनि शाखा के मंत्रों को दंडक्रम में गाया जाना वेदपाठ की सबसे कठिन विधा मानी जाती है। वेदपाठ की आठ विधाओं में से यह वह प्रकार है जिसमें, मंत्रों को जटिल स्वरदृक्रम और विशिष्ट ध्वन्यात्मक शैली में उच्चारित किया जाता है, शब्दों को आगेदृपीछे, उलटदृपलट कर, लयात्मक क्रम से पढ़ा जाता है, त्रुटिहीनता अनिवार्य होती है, और उच्चारण में जरा सा भी विचलन पूरा क्रम बिगाड़ सकता है।  इसीलिए दंडक्रम पारायण को वैदिक पाठ का मुकुट कहा जाता है।


काशी बनी वैदिक पुनर्जागरण की धुरी

देवव्रत की इस दिव्य साधना ने काशी को एक बार फिर भारतीय वैदिक परंपरा के केंद्र में स्थापित कर दिया है। जहाँ एक ओर तमिल संगमम उत्तर - दक्षिण सांस्कृतिक एकता का संदेश दे रहा है, वहीं दूसरी ओर युवा देवव्रत जैसे साधक यह प्रमाणित कर रहे हैं कि भारत की वैदिक चेतना आज भी जीवंत है, प्राणवान है और अगली पीढ़ी में निरंतर प्रवाहित हो रही है। काशी में सम्पन्न यह अद्भुत दंडक्रम पारायण न केवल धर्मपरंपरा का गौरव है, बल्कि युवा भारत की आध्यात्मिक शक्ति का भी सशक्त प्रमाण है।

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