- 50 दिन तक अखंड 2000 वैदिक मंत्रों के पारायण से काशी बनी विश्ववैदिक साधना का केंद्र : योगी
अतिदुर्लभ है दंडक्रम पारायण?
शुक्ल यजुर्वेद की माध्यंदिनि शाखा के मंत्रों को दंडक्रम में गाया जाना वेदपाठ की सबसे कठिन विधा मानी जाती है। वेदपाठ की आठ विधाओं में से यह वह प्रकार है जिसमें, मंत्रों को जटिल स्वरदृक्रम और विशिष्ट ध्वन्यात्मक शैली में उच्चारित किया जाता है, शब्दों को आगेदृपीछे, उलटदृपलट कर, लयात्मक क्रम से पढ़ा जाता है, त्रुटिहीनता अनिवार्य होती है, और उच्चारण में जरा सा भी विचलन पूरा क्रम बिगाड़ सकता है। इसीलिए दंडक्रम पारायण को वैदिक पाठ का मुकुट कहा जाता है।
काशी बनी वैदिक पुनर्जागरण की धुरी
देवव्रत की इस दिव्य साधना ने काशी को एक बार फिर भारतीय वैदिक परंपरा के केंद्र में स्थापित कर दिया है। जहाँ एक ओर तमिल संगमम उत्तर - दक्षिण सांस्कृतिक एकता का संदेश दे रहा है, वहीं दूसरी ओर युवा देवव्रत जैसे साधक यह प्रमाणित कर रहे हैं कि भारत की वैदिक चेतना आज भी जीवंत है, प्राणवान है और अगली पीढ़ी में निरंतर प्रवाहित हो रही है। काशी में सम्पन्न यह अद्भुत दंडक्रम पारायण न केवल धर्मपरंपरा का गौरव है, बल्कि युवा भारत की आध्यात्मिक शक्ति का भी सशक्त प्रमाण है।

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