सीहोर : वीर साहिबजादों ने राष्ट्र, धर्म और सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया : संत गोविन्द जाने - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


रविवार, 28 दिसंबर 2025

सीहोर : वीर साहिबजादों ने राष्ट्र, धर्म और सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया : संत गोविन्द जाने

Sant-govind-jane-sehore
सीहोर। आज हिन्दू धर्म को जातियों से ऊपर उठकर एकजुट होना चाहिए, सनातन धर्म की रक्षा सबका संकल्प है। अनेक वीरों ने देश की रक्षा और सनातन धर्म के लिए कुर्बानी दी है। वीर साहिबजादों ने राष्ट्र, धर्म और सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। गुरु गोविंद सिंह जी महाराज के चारों साहिबजादों का अदम्य साहस और त्याग युगों-युगों तक राष्ट्रभक्ति, धर्मनिष्ठा और कर्तव्यबोध का मार्ग प्रशस्त करता रहेगा। उक्त विचार शहर के सिंधी कालोनी में जारी सात दिवसीय भागवत कथा के पांचवे दिवस मालवा माटी के प्रसिद्ध संत गोविन्द जाने ने कहे। उन्होंने कहाकि साहिबजादों ने विदेशी आक्रांताओं के सामने शीश न झुकाकर भारत की एकता, अखंडता और धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। आज हमें एक बार फिर से ऐसे त्याग और कुर्बानी करने वालों के पथ का अनुसरण करना चाहिए। रविवार को कथा के दौरान उन्होंने भक्त नरसी की भक्ति का प्रसंग बताते हुए कहाकि भगवान के प्रति भक्त नरसी का भरोसा ही उसकी आस्था का परिणाम था। भगवान भी विश्वास और आस्था से प्रकट हो जाते है। अगर आप भगवान के प्रति आस्था व विश्वास रखते हैं तो यह सत्य है कि भगवान आपके दुख दिनों में आपका सहारा बनेंगे। इसलिए हमें ईश्वर-वादी व सात्विक होना चाहिए।


मनुष्य जब अच्छे कर्मों के लिए आगे बढ़ता

उन्होंने कहाकि मनुष्य जब अच्छे कर्मों के लिए आगे बढ़ता है तो संपूर्ण सृष्टि की शक्ति समाहित होकर मनुष्य के पीछे लग जाती है। और हमारे सभी कार्य सफल होते हैं। ठीक उसी तरह बुरे कर्मों की राह के दौरान संपूर्ण बुरी शक्तियां हमारे साथ हो जाती है। मनुष्य को ही यह निर्णय करना होता है कि उसे किस राह पर चलना है। निर्मल मन ही प्रभु को स्वीकार्य है। निर्मल मन ही भक्ति के लिए जरूरी है।

कोई टिप्पणी नहीं: