वैशाली जिले के राजापाकर प्रखंड के छोटे से गाँव बिरना लखन सेन से निकलकर मुंबई जैसी माया नगरी में अपनी जगह बनाना आसान नहीं था। रंजन सिन्हा की कहानी संघर्ष, मेहनत और जुनून की मिसाल है। वे बताते हैं कि “हर सम्मान मेरे लिए खास है, यह मुझे लगातार बेहतर काम करने की प्रेरणा देता है।” भोजपुरी इंडस्ट्री में पहचान बनाने के बाद उन्होंने दक्षिण भारतीय और बॉलीवुड फिल्मों के प्रचार में भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है। रंजन सिन्हा फिल्मों के प्रचार तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने बिहार सरकार के बड़े आयोजनों — प्रकाश पर्व, पटना फिल्म फेस्टिवल, गांधी पैनोरमा फिल्म फेस्टिवल, बाबू वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव, नेशनल बॉक्सकॉन कांफ्रेंस — में भी अहम भूमिका निभाई। इन आयोजनों में उनकी पीआर रणनीतियों ने बिहार की सांस्कृतिक पहचान को देशभर में नई ऊँचाई दी। वे पारंपरिक प्रचार के साथ डिजिटल पीआर को जोड़कर नए मानक स्थापित करने में अग्रणी रहे हैं। यह सम्मान उनकी लगातार मिलती उपलब्धियों की श्रृंखला में एक और सुनहरा अध्याय है। इससे पहले उन्हें दादा साहेब फाल्के भोजपुरी अवार्ड, भोजपुरी गौरव सम्मान और कई अन्य इंडस्ट्री अवार्ड्स मिल चुके हैं। आज रंजन सिन्हा भोजपुरी कंटेंट को अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल्स और बड़े OTT प्लेटफॉर्म्स तक ले जाने के मिशन पर काम कर रहे हैं। उनका लक्ष्य क्षेत्रीय सिनेमा को वैश्विक मंच पर मजबूत पहचान दिलाना है।
पटना (रजनीश के झा)। पुस्तक मेला 2025 इस बार एक खास क्षण का साक्षी बना, जब प्रसिद्ध निर्देशक रंजन कुमार सिंह के हाथों भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज पीआरओ राजीव रंजन कुमार उर्फ़ रंजन सिन्हा को फिल्म पीआर क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित किया गया। यह सम्मान न सिर्फ रंजन सिन्हा की पेशेवर उपलब्धियों का प्रतीक है, बल्कि उनके दो दशक से अधिक के धैर्य, समर्पण और लगन की भी पहचान है। पिछले 21 वर्षों में रंजन सिन्हा ने 900 से ज्यादा फिल्मों और 5000 से अधिक गानों का प्रचार किया है। वे सिर्फ एक पीआरओ नहीं, बल्कि भोजपुरी सिनेमा के ब्रांड आइकॉन के रूप में जाने जाते हैं। उनकी रणनीतियों, मीडिया नेटवर्क और रचनात्मक प्रचार ने कई फिल्मों को राष्ट्रीय पहचान दिलाई। मनोज तिवारी, रवि किशन, पवन सिंह, खेसारी लाल यादव, प्रदीप पांडे चिंटू और अक्षरा सिंह जैसे सुपरस्टार्स के साथ उनके काम ने उन्हें इंडस्ट्री का विश्वसनीय नाम बना दिया।

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