विभिन्न राजनीतिक दल भले ही लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने की वकालत कर रहे हों पर चुनावों में उनकी कथनी-करनी में अंतर स्पष्ट नजर आने लगता है और ऐसा ही कुछ बिहार विधानसभा चुनाव में टिकटों के बँटवारे में हुआ है।
बिहार में करीब साढ़े पाँच करोड़ मतदाताओं में करीब आधी संख्या महिलाओं की है। महिलाओं को यहाँ पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों में 50 फीसदी आरक्षण दिया गया है। लेकिन बिहार विधानमंडल में उन्हें आबादी के अनुपात में आज भी प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है।
प्रमुख राजनीतिक दलों की बात करें तो 243 सदस्यीय विधानसभा के इस चुनाव में सत्तारुढ़ जदयू और भाजपा सहित राजद-लोजपा गठबंधन तथा कांग्रेस ने अबतक 87 महिलाओं को ही टिकट दिया है।
पंचायत चुनावों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण का मार्ग प्रशस्त करने वाली पार्टी जदयू ने 24 और भाजपा ने 11 महिलाओं को चुनावी मैदान में उतारा है जबकि महिला आरक्षण विधेयक के वर्तमान स्वरूप का मुखालफत करने वाली पार्टी राजद ने छह और लोजपा ने सात महिलाओं को टिकट दिया है।
सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा करने वाली कांग्रेस ने अबतक 23 महिलाओं को टिकट प्रदान किया है। भाकपा माले ने तीन, माकपा ने दो और भाकपा ने एक महिला को टिकट दिया है।
कांग्रेस ने जहाँ सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं वहीं जदयू ने 141 और भाजपा ने 102 सीटों पर अपने उम्मीदवार दिए हैं। जदयू ने 24 और भाजपा ने 11 महिला प्रत्याशियों को चुनावी अखाड़े में उतारा है।
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को जहाँ दो विधानसभा क्षेत्रों से चुनावी मैदान में उतारा है पर उनकी पार्टी ने महिला प्रत्याशियों पर अधिक भरोसा नहीं किया है।
रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा के साथ तालमेल कर विधानसभा चुनाव लड़ रही राजद ने 168 सीटें पर अपने उम्मीदवार दिए है पर उनमें से महिलाओं की संख्या मात्र छह है जबकि 75 सीटों पर चुनाव लड़ रही लोजपा ने सात स्थानों पर महिलाओं को टिकट दिया है।
अधिक संख्या में महिलाओं को टिकट नहीं देने के बारे में सामाजिक कार्यकर्ता निवेदिता का मानना है कि पुरुष वर्चस्व वाले भारतीय समाज की मानसिकता इसका प्रमुख कारण है।
सोमवार, 11 अक्टूबर 2010
पुरुष वर्चस्व वाले समाज की मानसिकता और बिहार विधान सभा में टिकट का बंटवारा !!
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