मुख्यमंत्री अजरुन मुंडा ने ऊर्जा और सड़क लेकर अपने दबदबे को मजबूत रखा तो ऊर्जा छिनने के बाद भी खान, नगर विकास और पेयजल स्वच्छता लेकर हेमंत सोरेन ने उसकी भरपाई कर ली। सुदेश महतो भी पीछे नहीं रहे। रोड और भवन गया तो सुदेश महतो ने जल संसाधन और ग्रामीण कार्य जैसे बड़े विभाग लेकर हिसाब-किताब बराबर कर दिया। टकटकाते रह गए बेचारे नौ नए मंत्री, जिन्होंने शुभ मुहूर्त में मंत्री पद की शपथ ली है। नए मंत्रियों में बैजनाथ राम ऐसे एकमात्र मंत्री रहे जिन्हें पिछली बार की तरह एक ही विभाग मिला, शिक्षा। शेष आठ मंत्री जरूर दो-दो विभाग झटकने में सफल रहे, लेकिन कहने के लिए ही।
हर मंत्री का दूसरा विभाग प्रतीकात्मक है। पहली बार कल्याण को चार मंत्रियों के बीच बांटकर उन्हें अलग-अलग क्षेत्रों के कल्याण की जिम्मेदारी सौंप दी गई। हाजी हुसैन अंसारी अल्पसंख्यकों का कल्याण करेंगे तो विमला प्रधान समाज कल्याण और महिला एवं बच्चों का कल्याण करेंगी। आदिवासी समुदाय से आनेवाले चंपई आदिवासी कल्याण की जिम्मेदारी निभाएंगे। पहली बार मंत्री बने विधायक तो कुछ संतुष्ट भी हैं लेकिन पुराने मंत्रियों में मथुरा महतो को छोड़ दूसरे खूब असंतुष्ट।
सत्ता के गलियारे से आ रही आवाज के अनुसार अधिकाधिक विभागों को अपने पास रख कर मुख्यमंत्री और दोनों उप मुख्यमंत्रियों ने चाहे जो कुछ हासिल कर लिया है, लेकिन इसके साथ ही उनकी जिम्मेदारी भी उतनी ही बढ़ गई है। झारखंड को आगे तक ले जाने की महती जिम्मेदारी भी इन पर ही अधिक है। चाहे विकास या कानून-व्यवस्था का क्षेत्र हो या फिर पानी पिलाने से ले सेकर सड़क बनाने और बिजली पहुंचाने की। सारी जिम्मेवारी इन्हीं पर है।
विभाग बंटवारे में उद्योग प्रधान झारखंड राज्य में उद्योग विभाग को बांटने की जरूरत नहीं महसूस की गई। लोगों को नहीं दिखा कि किस मंत्री को उद्योग का जिम्मा मिला है। यानी झारखंड सरकार ने जता दिया कि उद्योग उनकी प्राथमिकता में है ही नहीं। केवल जानकार ही समझ सके कि वे विभाग जो किसी को नहीं दिए जाते, वह मुख्यमंत्री के खाते में चला जाता है।

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