जब मनुष्य स्वयं को अंधकार और माया से ऊपर करलेता है और इसके प्रभाव से पूर्णतया मुक्त हो जाता है,वह बंधनों से छूट जाता है और वास्तविक आत्म-तत्वअर्थात ब्रह्म-तत्व में स्थिर हो जाता है|(स्वामी श्री युक्तेस्वर गिरी )
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