परोक्ष धूम्रपान का सबसे ज़्यादा असर बच्चों पर पड़ता है. धूम्रपान को लेकर किए गए अब तक के पहले अंतरराष्ट्रीय अध्ययन से ये बात सामने आई है कि दुनियाभर में हर साल छह लाख से ज़्यादा लोग ‘पैस्सिव स्मोकिंग’ यानी दूसरों के द्वारा छोड़े गए धुंए को झेलने से मर जाते हैं.
विश्व स्वास्थय संगठन (डब्लूएचओ) ने लगभग 200 देशों में किए इस अध्ययन में पाया कि ‘पैस्सिव स्मोकिंग’ यानि परोक्ष रुप से धूम्रपान करने वाले बड़े पैमाने पर हृदय रोग, सांस की बीमारियों और फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित होते हैं. अध्ययन के अनुसार दुनियाभर में हर साल होने वाली मौतों का एक फ़ीसदी हिस्सा ‘पैस्सिव स्मोकिंग’ से होने वाली मौतों का है.
विश्व स्वास्थय संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक परोक्ष धूम्रपान का सबसे ज़्यादा असर बच्चों पर पड़ता है. घर में रहते हुए इस धुंए को झेलने से नवजात शिशुओं में निमोनिया, दमा और अचानक मौत का ख़तरा कई गुना बढ़ जाता है. विश्व स्वास्थय संगठन के मुताबिक दुनियाभर में धूम्रपान को रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं लेकिन अपने बच्चों को परोक्ष धूम्रपान से बचाने के लिए माता-पिता को जल्द से जल्द से कारगर क़दम उठाने की ज़रूरत है.
इस अध्ययन के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से देशों को शामिल किया. अध्ययन के मुताबिक 40 फीसदी से ज़्यादा बच्चे और 30 फीसदी से ज़्यादा वयस्क लगातार ‘पैस्सिव स्मोकिंग’ के शिकार हो रहे हैं. इसके चलते हर साल मरने वालों में एक तिहाई हिस्सा बच्चों का होता है.
शुक्रवार, 26 नवंबर 2010
परोक्ष धूम्रपान का असर बच्चों पर ज्यादा !
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