भारत में उच्च शिक्षा के संसाधनों का अभाव. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 27 नवंबर 2010

भारत में उच्च शिक्षा के संसाधनों का अभाव.

भारत पूरे एशिया में ऐसा देश है, जहां का कॉलेज जाने वाले छात्र छात्राओं की प्रतिशत संख्या बहुत कम है। यहां स्कूल के बाद कॉलेज में जाने और पढ़ने वाले बच्चों की संख्या में इतनी कमी के पीछे उच्च शिक्षा के संसाधनों का अभाव एक बड़ा कारण है। यह बातें महंत कॉलेज में आयोजित एक व्याख्यान में अर्थशास्त्री एल भारद्ववाज ने कहीं। 


महंत कॉलेज में शुक्रवार को अर्थशास्त्र विभाग द्वारा एक व्याख्यान का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य अतिथि के रूप में रविशंकर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एल भारद्वाज शामिल हुए।


आने वाले वक्त में अर्थशास्त्र कॅरियर का सबसे बड़ा पाथ बनने जा रहा है। वे कहते हैं, भारतीय ज्ञान आयोग के अध्यक्ष सैम पित्रोदा के अनुसार देश में उच्चशिक्षा को बढ़ाने के लिए विद्यार्थियों को स्कूल से आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।


इसके लिए रोजगार केंद्रित नए पाठ्यक्रमों की संख्या बढ़ाने के साथ ही नए पाठ्यक्रमों को अपनाना होगा। दरअसल भारत के स्टूडेंट्स का एक बड़ा वर्ग स्कूल एजुकेशन से आगे नहीं बढ़ सकता।


इसके लिए हमें विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की संख्या में भी बड़े स्तर पर इजाफा करना होगा। श्री भरद्वाज ने कहा कि उच्च शिक्षा का प्रतिशत बढ़ाना होगा, तभी भविष्य के लिए अच्छे प्रोफेशनल्स निकल सकेंगे।


युवा शक्ति ही ताकत: डॉ भारद्वाज कहते हैं, युवा शक्ति देश की ताकत है। उन्होंने इस अवसर पर अपने प्रजेंटेशन में अर्थशास्त्र के अनेक पहलुओं और सिध्दांतों को रिपोर्ट और आंकड़ों की मदद से सिध्द किया।


आगे अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि एशियाई देशों में भारत अभी भी उच्चशिक्षा के क्षेत्र में बहुत पीछे है। श्री भारद्वाज कहते हैं, नागरिकों को शिक्षा और भोजन से वंचित रखना कई बार सत्ता की छुपी हुई रणनीति होती है।


ताकि नागरिकों में अपने अधिकारों को लेकर कोई विद्रोह न पनप सके। विदेशी शिक्षण संस्थाओं को भारत में लाने के फै सले के बारे में वे कहते हैं,यह राजस्व की शर्त पर कतई ठीक नहीं है।


वे कहते हैं, योग्यता को तराशना और सम्मानित करना दोनों ही बातें बेहद जरूरी हैं। इस अवसर पर कॉलेज के प्रिंसीपल डॉ देबाशीष मुखर्जी भू मंच पर मौजूद रहे। व्याख्यान के बाद कॉलेज में अर्थशास्त्र परिषद का गठन भी किया गया।

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