बिहार में नीतीश कुमार की भारी बहुमत (तीन-चौथाई भी संभव) से सरकार बनने जा रही है. जदयू और भाजपा गंठबंधन लगभग दो सौ सीट जीतने जा रही है. यह बहुत बड़ी जीत है. नीतीश कुमार ने पिछले पांच साल में बिहार में जो काम किया, लोगों में विश्वास जगाया, उम्मीद जगायी, उससे यह तय था कि नीतीश सरकार फिर सत्ता में लौटेगी ही. लेकिन जीत इतनी बड़ी होगी, शायद किसी ने सोचा नहीं था. दरअसल, लालू-राबड़ी के कार्यकाल में बिहार की जो दुर्गति हुई थी, उसे लोग आज भी याद किये हुए हैं. नीतीश कुमार ने बिहार को पटरी पर लाने का काम किया, कानून-व्यवस्था की स्थिति सुधारी, सड़कों को बनाया, अपने ही दल के दबंग विधायकों को खिलाफ जब कार्रवाई की, लड़कियों की पढ़ाई पर ध्यान दिया तो लोगों का विश्वास उन पर और बढ़ता गया. रोजगार की तलाश में देश के दूसरे हिस्सों में गये बिहारियों पर जब हमले हुए तो लोगों को यह लगा कि अगर बिहार में ये अवसर मिले होते तो शायद उन्हें अपमान नहीं ङोलना पड़ता. पांच साल में देश-दुनिया में बिहारियों का सम्मान बढ़ा तो लोगों को लगा कि नीतीश सरकार के कारण यह यह सम्मान मिल रहा है. खासकर महिलाओं का साथ मिलना, घर से बाहर जाकर वोट करना नीतीश की मजबूती का मूल कारण रहा. इस बार विकास को आधार मानकर यह चुनाव लड़ा गया जो बिहार के जातिवाद के फ़ैक्टर पर हावी रहा. इसके पहले के चुनाव में बिहार में जातिवाद हावी रहता था. इस बार यह बंधन टूट गया. नीतीश के साथ परिवारवाद का नहीं जुड़ना भी उनके पक्ष में रहा. इतनी बड़ी जीत के पीछ नीतीश की ईमानदार और साफ छवि ही रही. नरेंद्र मोदी के मामले में जिस तरीके से नीतीश कुमार नेजो रवैया अपनाया, उससे मुसलमानों में उनकी छवि और मजबूत हुई. यह सीधे तौर पर लालू-पासवान के वोट बैंक में सेंधमारी थी. बिहार के लोग नीतीश कुमार के अलावा कोई ऐसी छवि नहीं देख रहे थे जिन पर उन्हें भरोसा हो. यह भरोसा काम आया. बिहार के लोग विकास के लिए दशकों से तड़प रहे थे और जब उन्हें पिछले पांच साल में इसकी झलक देखी तो विकास के प्रति उनकी भूख बढ़ गयी. लोगों में यह उम्मीद जगी है कि नीतीश सरकार ही बिहार का कायाकल्प कर सकती है. कांग्रेस के लिए यह चुनाव बड़ी सबक है. सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मऩमोहन सिंह का बिहार दौरा भी काम नहीं आया. कांग्रेसी नेताओं का वह दांव भी खाली गया जिसमें उन्होंने कहा था कि केंद्र जो सहायता देता है, बिहार सरकार उसका उपयोग नहीं करती है. दरअसल नीतीश कुमार ने लालू-पासवान या सोनिया गांधी -मनमोहन सिंह के हर आरोप का जवाब देते हुए जनता को अपने पक्ष में कर लिया. इस जीत में जदयू के साथ भाजपा की भी ताकत बढ़ी है जबकि लालू-पासवान की जोड़ी मात खा चुकी है. चुनाव परिणाम इस बात का संकेत है कि काम करनेवालों को जनता मौका देगी. सिर्फ बात करने और भ्रष्टचार में लिप्त राजनीतिज्ञों का जमान लद गया. |
बुधवार, 24 नवंबर 2010
नितीश का मुख्यमंत्री बनना तय.
Tags
# देश
Share This
About Kusum Thakur
देश
Labels:
देश
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
संपादकीय (खबर/विज्ञप्ति ईमेल : editor@liveaaryaavart या वॉट्सएप : 9899730304 पर भेजें)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें