देश में ही निर्मित यह संवर्धित प्रक्षेपास्त्र अग्नि सीरीज का नया संस्करण है। इसे देश के मौजूदा अग्नि-2 प्रक्षेपास्त्र का बेहतर स्वरूप माना जा रहा है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन के एक वैज्ञानिक के अनुसार अग्नि-2 का परिष्कृत संस्करण रेंज और सटीकता के मामले में बेहतर होगा।
मौजूदा अग्नि-2 प्रक्षेपास्त्र की मारक क्षमता 2000 किलोमीटर तक है और अग्नि-3 प्रक्षेपास्त्र 3500 किलोमीटर तक का निशाना साध सकता है, जबकि नया सामरिक अग्नि-2 प्रक्षेपास्त्र अग्नि-2 और अग्नि-3 के बीच क्षमता के अंतर को दूर करेगा। सूत्रों ने कहा कि सटीकता के लिहाज से इसमें कुछ बेहतर गुणों का समावेश किया गया है। भारत ने सबसे पहले अग्नि-2 का परीक्षण 11 अप्रैल 1999 को यहां से एक सौ किलोमीटर दूर व्हीलर आइलैंड से किया था। इसके बाद 17 जनवरी 2001 को इसने दूसरी परीक्षण उड़ान भरी, जिसके बाद इस द्विस्तरीय ठोस ईंधन वाले प्रक्षेपास्त्र के उत्पादन का रास्ता साफ हो गया।
19 मई 2009 को अग्नि-2 का इस्तेमाल संबंधी परीक्षण किया गया, जो असफल रहा। इसके बाद 24 नवंबर 2009 को किया गया परीक्षण भी सफल नहीं रहा। लगातार दो बार असफल रहने के कारण भारतीय सेना ने इसका परीक्षण 17 मई 2010 को किया। अग्नि-3 का पहला परीक्षण नौ जुलाई 2006 को उड़ीसा के तटवर्ती व्हीलर आइलैंड से किया गया, लेकिन यह असफल रहा। हालांकि इसके बाद 12 अप्रैल 2007 और सात मई 2008 को किए गए परीक्षण सफल रहे और तमाम मापदंडों पर खरे उतरे। इस प्रक्षेपास्त्र को चौथी बार सात फरवरी 2010 को परखा गया और और इसकी तमाम प्रणालियां और क्षमताएं सही पाई गईं। द्विस्तरीय ठोस ईंधन वाला यह प्रक्षेपास्त्र देश की सामरिक परमाणु ताकत में इजाफा करेगा और सेना में शामिल किए जाने के लिए तैयार है।

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