ईर्ष्या की आग में कभी कठोर शब्द न बोलें| मुँह एक तोप के
सामान हो सकता है और शब्द किसी बम-बिस्फोट से भी अधिक
खतरनाक हो सकते हैं| शब्दों के प्रयोग में बहुत सतर्कता बरतें|
लोगों को यह बिलकुल पसंद नहीं होता कि आप उनके दोष गिनाए|
आप जितना अधिक कहेंगे, स्थिति उतनी ही अधिक बिगड़ेगी|
(श्री परमहंस योगानंद)
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