रायपुर के कारावास में कैदियों की पाठशाला - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 13 दिसंबर 2010

रायपुर के कारावास में कैदियों की पाठशाला

अपराध और जुर्म से जुड़ी जेल की दुनिया आम लोगों की जिंदगी से एकदम अलग होती है. लेकिन रायपुर का केंद्रीय कारावास कैदियों को अपराध की दुनिया से दूर नई राह पर चलाने की कोशिश कर रहा हैं. रायपुर के केंद्रीय कारावास में कैद दो हज़ार से ज्यादा कैदी है जो जुर्म की दुनिया को पीछे छोड़ एक बेहतर इंसान बनने के लिए शिक्षा का सहारा ले रहें हैं. यहां कैदियों को न केवल संस्कृत की शिक्षा दी जा रही है बल्कि पहली से आठवीं तक स्कूली कक्षाएँ भी होती हैं.   
रायपुर केंद्रीय कारागार के अधीक्षक के के गुप्ता के अनुसार यह भारत की एकमात्र जेल है जहाँ नियमित संस्कृत विद्यालय का संचालन किया जा रहा है. छत्तीसगढ़ राज्य के ओपन स्कूल नें इस वर्ष से जेल को दसवीं और बारवीं की परीक्षाओं के लिए परीक्षा केंद्र भी बनाया है वहीं इंदिरा गाँधी ओपन यूनीवर्सिटी नें भी जेल में स्नातक और और स्नातकोत्तर की परीक्षाओं का केंद्र बनाया है.
केके गुप्ता नें बीबीसी से बात करते हुए कहा," इस क़दम के चौंका देने वाले परिणाम सामने आये. पहली से लेकर आठवीं की कक्षाओं में नियमित रूप से 241 कैदी पढ़ रहे हैं. दसवीं की इस वर्ष 75 कैदियों नें परीक्षा दी है और अच्छे नंबरों से पास भी हुए. इनमें से कईयों नें प्रथम डिवीज़न भी हासिल किया है." रायपुर केंद्रीय कारागार में 20 ऐसे कैदी हैं जो स्नातक या स्नातकोत्तर की परीक्षा दे रहे हैं. इनमे से दो एमएससी (गणित) के विद्यार्थी भी हैं. इसके अलावा राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के तहत 274 कैदी पढ़ रहे हैं.
इंदिरा गाँधी नेशनल ओपन यूनीवर्सिटी से संस्कृत में डिग्री लेने वालों के संख्या लगभग 53 है जबकि योग में 130 और कंप्यूटर शिक्षा में 30 कैदियों नें दाख़िला लिया है. छत्तीसगढ़ राज्य की ओपन स्कूल की संयोजक स्मृति शर्मा के अनुसार सिर्फ़ इम्तिहान ही नहीं केंद्रीय कारागार से दसवीं और बारवीं की परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों नें ओपन स्कूल के अन्य केंद्रो से ज़्यादा अच्छा परिणाम दिए है. मिसाल के तौर पर दसवीं की परीक्षा देने वाले कैदियों नें संस्कृत, अंग्रेजी और सामजिक ज्ञान में शत प्रतिशत परिणाम हासिल किया है. हिंदी वाणिज्य और गृह विज्ञान जेल के केंद्र का परिणाम सामान्य केंद्रों से बहुत बेहतर रहा है. 

स्मृति शर्मा कहतीं हैं,"इन कैदियों की यह वाकई बड़ी उपलब्धि है.इसलिए हम इन्हें और प्रोत्साहित कर रहे है ताकि इनका जोश काय़म रहे. हम कोशिश कर रहे हैं की कुछ और कोर्से भी हम यहाँ शुरू करें ताकि जब यह जेल से बाहर जाए तो अपने बलबुते पर एक नयी ज़िंदगी की शुरूवात कर सकें." हाल ही में दिल्ली के 'इंडिया हैबीटेट सेंटर' में राष्ट्रकुल देशों की शिक्षा प्रणाली पर आयोजित सेमीनार में रायपुर की केंद्रीय कारागार के कैदियों की इस उपलब्धि पर काफी चर्चा भी की गयी थी.
रायपुर केंद्रीय कारागर के अधीक्षक का कहना है,"यहां पठन-पाठन के अलावा संकल्प भी लिया गया है.अगर कोई कैदी अंगूठा लगाता है तो जब वो जेल से बाहर जाए तो हस्ताक्षर करना सीख कर जाए. चाहें वो थोड़े समय के लिए जेल क्यों न आया हो." उनका दावा है की इस संकल्प की वजह से कैदियों में एक नयी सोच पैदा करने की दिशा में जेल प्रशासन को काफी सफलता मिली है. शायद यही वजह है की सोमनाथ पाटिल नें 1976 में आठवीं पास की थी फिर रोज़मर्रा की ज़िंदगी में उलझ कर रह जाने की वजह से आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए. किसी जुर्म में गिरफ़्तार होने के बाद उन्हें जेल हो गयी और बाद में सजा मिली थी. लेकिन जेल में ३४ साल रहने के बाद सोमनाथ को दसवीं कक्षा पास करने का मौक़ा मिल गया था. 

उसी तरह हत्या के अपराध में उम्र क़ैद की सज़ा काट रही खेम बाई नें पहली श्रेणी से दसवीं कक्षा पास की है तो उधर शिक्षा ने सात साल की सज़ा काट रहे जीतेंद्र पर भी गहरी छाप छोड़ी है. उन्हें अपने किये पर पछतावा है और वह अच्छा जीवन जीना चाहते है.

बोधन राम यादव और देवेन्द्र चौहान इस बार एमएससी (गणित) से परीक्षा दे रहे हैं. बोधन राम को चार साल पहले सज़ा सुनाई गई थी. जेल में शिक्षा के माहौल नें उन्हें अपनी एम्एससी पूरी करने की प्रेरणा दी है. इन दोनों का मानना है की अगर वह सामान्य छात्र की तरह एमएससी देने कॉलेज जाते तो उन्हें काफ़ी पापड बेलने पढ़ते. जेल में उन्हें फार्म भरने से लेकर किताबों तक की सुविधा मिल रही है इसलिए उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने का मन बनाया है.

देवेन्द्र चौहान कहते हैं, "यहाँ के माहौल को अगर आप क़रीब से देखें तो सहसा यह सुझाव मन में आता है कि इस जेल का नाम बदल कर गुणात्मक सुधार केंद्र कर दिया जाए और यहाँ के स्कूल का नाम गुणात्मक सुधार स्कूल."

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