निराशा एक महामारी और छूत की बीमारी के समान है। लोगों के पास
बहुत पैसा है पर वे सदा निराश रहते हैं। वे हमेशा विषाद्ग्रस्त और
चिडचिडे रहते हैं। वे सदैव वेदना से भरे हुए हैं। एक दुखी व्यक्ति चारों
ओर वेदना और निराशा ही फैलाता है। उसका मन किसी कार्य में
नही लगता। नैराश्य उसकी सारी शक्ति छीन लेता है। इसके विपरीत
प्रसन्नता के विषय मे सोचिये –प्रसन्न व्यक्ति सदैव हंसता रहता है
और सभी को प्रसन्न बनाये रखता है।
(स्वामी शिवानन्द)
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