एक के बाद एक दुखों का मूल कारण तृष्णा ही है।
इसलिए एक विचारवान व्यक्ति को सांसारिक तृष्णाओं
के आकर्षण से एकदम दूर रहना चाहिए| सच्चा धन
केवल वही है जिससे प्रसन्नता मिलती है| संतोष ही
वह धन है| उसे सच्चा सुख कैसे मिल सकता है
जिसके मन में शान्ति नहीं है?
(हनुमान प्रसाद पोद्दार)
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