उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) ने भारत को अपनी मिसाइल रक्षा प्रौद्योगिकी प्रदान करने का प्रस्ताव दिया है, ताकि भारत अपनी ओर आने वाली शत्रु की मिसाइलों को मार गिराने की क्षमता विकसित कर सके। नाटो ने यह प्रस्ताव भारत के समक्ष सम्भावित खतरों को देखते हुए दिया है। इस तरह भारत, नाटो से बाहर रूस के बाद दूसरा ऐसा देश बन गया है, जिसके साथ अमेरिका के नेतृत्व वाले इस सैन्य गठबंधन ने महत्वपूर्ण मिसाइल रक्षा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काम करने की इच्छा जाहिर की है।
मई 2001 में शुरू हुई नाटो की मिसाइल रक्षा परियोजना का लक्ष्य मिसाइल हमलों से खुद को बचाने की गठबंधन की जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए सदस्य देशों के साथ काम करना है। भारत भी इस क्षेत्र में अपने प्रतिद्वंद्वियों से उपस्थित मिसाइल खतरों को देखते हुए अपनी पृथ्वी बैलिस्टिक मिसाइल प्लेटफॉर्म पर आधारित खुद की बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली विकसित करने की प्रक्रिया में है।
नाटो के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भारतीय पत्रकारों के एक समूह के साथ यहां अपने मुख्यालय में बातचीत में कहा, ''आपके (भारत) सामने मिसाइल का खतरा है। हमारे (नाटो) सामने भी मिसाइल का खतरा है। इन मिसाइलों से रक्षा की हमारी जरूरतें समान हैं।'' यह पूछने पर कि नाटो मिसाइल रक्षा के मुद्दे पर किस क्षेत्र में भारत के साथ सहयोग कर सकता है, अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, ''एक क्षेत्र रक्षा प्रौद्योगिकी का होगा।'' अधिकारी ने कहा कि भारत और नाटो के समक्ष खतरें विभिन्न दिशाओं से आ सकते हैं और यह जरूरी नहीं कि भारत जिन खतरों को देखता हो, उसे नाटो भी देख रहा हो।
अधिकारी ने कहा, ''ऐसा इसलिए है क्योंकि आपकी रणनीतिक स्थिति हमसे भिन्न है। लेकिन मिसाइल का पता लगाने और उसे मार गिराने की तकनीक समान है।''
अधिकारी ने हालांकि स्वीकार किया कि यह सहयोग अमेरिका के नेतृत्व में ही होगा। नाटो में शामिल अन्य किसी भी सदस्य देश की तुलना में अमेरिका के पास आधुनिक बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा विकास परियोजना है, जबकि भारत का फ्रांस और ब्रिटेन सहित कई अन्य नाटो देशों के साथ भी समान रूप से मजबूत द्विपक्षीय सम्बंध हैं।

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