पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम को राहत देते हुए उच्चतम न्यायालय ने उनकी अंतरिम जमानत की अवधि सोमवार को सात अगस्त तक बढ़ा दी। वर्ष 1993 के दूरसंचार घोटाले में सुखराम को तीन साल कारावास की सजा सुनाई गई थी।
न्यायमूर्ति पी सदाशिवम ने पूर्व नौकरशाह रूनू घोष और हैदराबाद के उद्योगपति पी रामा राव को भी राहत दे दी। रूनू और रामा राव को इसी मामले में दोषी ठहराया गया था। सभी आरोपियों ने खुद को दोषी ठहराए जाने तथा सजा सुनाए जाने के फैसले को चुनौती दी थी और उनकी अपीलों पर पीठ सात अगस्त को सुनवाई करेगी।
नौ जनवरी को उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई को नोटिस जारी किया था और तीनों आरोपियों को अंतरिम जमानत दे दी थी। अंतरिम जमानत की अवधि सोमवार तक के लिए थी। बहरहाल, मामले में और पीठ द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में सीबीआई ने अपना जवाब दाखिल नहीं किया है। अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल विवेक तनखा ने इस बारे में अनभिज्ञता जताई कि क्या एजेंसी मामले में अपील दायर करेगी या नहीं। तनखा ने कहा कि वह एजेंसी से निर्देश ले लेंगे।
86 वर्षीय सुखराम ने दूरसंचार घोटाला मामले में तीन साल की सजा मिलने के बाद निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था जिसके बाद उन्हें उच्चतम न्यायालय ने अंतरिम जमानत दी। रूनू घोष और राव ने अपनी क्रमश: दो साल और तीन साल की सजा काटने के लिए आत्मसमर्पण कर दिया था। 21 दिसंबर को दिल्ली उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के 2002 में दिए गए फैसले को बरकरार रखा था। निचली अदालत ने सुखराम, रूनू घोष और रामा राव को उस आपराधिक षडयंत्र में शामिल होने का दोषी ठहराया था जिसमें हैदराबाद की एडवान्स्ड रेडियो मास्टस कंपनी को दूरसंचार उपकरणों की आपूर्ति का ठेका दे कर राजकोष को नुकसान पहुंचाया गया था।
इस कंपनी ने कम गुणवत्ता वाले सामान की उंची दर पर दूरसंचार विभाग को आपूर्ति की थी। सुखराम 18 जनवरी 1993 से 16 मई 1996 तक तत्कालीन पी वी नरसिंह राव सरकार में दूरसंचार मंत्री थे। सीबीआई ने मार्च 1997 में आरोपपत्र दाखिल किया जिसमें सुखराम और रूनू घोष पर राव के साथ आपराधिक षडयंत्र में शामिल होने का आरोप लगाया गया था। वर्ष 1996 में सीबीआई ने सुखराम के आवास से थैलों और सूटकेसों में छिपा कर रखी गई 3.6 करोड़ रूपये की नगद राशि जब्त की थी।

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