बुधवार को प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने सेना के करीबी रक्षा सचिव को बर्खास्त कर दिया था। जिसके बाद आज रावलपिंडी में सेना के प्रमुख स्टाफ की बैठक चल रही है। माना जा रहा है कि इस बैठक में सेना तख्तापलट पर अंतिम फैसला ले सकती है। दूसरी तरफ अमेरिका ने कहा कि वो पाकिस्तान के वर्तमान हालात पर नजर बनाए हुए है। दूसरी तरफ तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के नेता इमरान खान ने कहा है कि वो पाकिस्तान सेना द्वारा होने वाले तख्तापलट का समर्थन नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि वो पाकिस्तान फ्री एंड फेयर चुनाव के पक्ष में हैं।
पाकिस्तानी सेना के बयान कि "प्रधानमंत्री गिलानी का बयान बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है, इसके नतीजे बेहद गंभीर हो सकते हैं", ने साल 1958, 1969, 1977 और 1999 की याद ताजा कर दी है। जब पाकिस्तान में सेना प्रमुखों ने लोकतंत्र को उखाड़ फेंका था और खुद सत्ता पर काबिज हो गए थे।
सेना के कड़े बयान के बाद और तख्तापलट की तेज होती खबरों के बीच प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने पद के दुरुपयोग के आरोप में केंद्रीय रक्षा सचिव रिटायर्ड लेफ्टीनेंट जनरल नईम खालिद लोधी को बर्खास्त कर दिया और कैबिनेट सचिव नर्गिस सेठी को रक्षा सचिव के पद का अतिरिक्त कार्यभार सौंप दिया। लोधी सेना और आईएसआई दोनों के बेहद करीबी हैं। हालांकि गिलानी ने कहा कि उन्होंने लोधी को इसलिए हटाया क्योंकि उन्होंने सरकारी महकमों में गलतफहमी पैदा की।
दरअसल मेमोगेट विवाद के बाद गिलानी ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख और आईएसआई चीफ पर जो बयान दिया था उससे सेना बेहद खफा है। माना जा रहा है कि गिलानी का बयान सरकार और सेना के रिश्तों में अंतिम कील साबित हो सकता है। गौरतलब है कि कियानी ने कहा था कि प्रधानमंत्री की तरफ से गोपनीय पत्र विवाद पर सेना प्रमुख और आईएसआई के मुखिया के खिलाफ लगाए गए आरोप से गंभीर कुछ भी नहीं हो सकता, दुर्भाग्य से अधिकारियों पर देश के संविधान के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है, इसके नतीजा बेहद गंभीर हो सकते हैं।
असल में रक्षा सचिव ने 15 दिसंबर 2011 को सुप्रीम कोर्ट में मेमो केस की सुनवाई के दौरान कहा था कि उनके मंत्रालय का पाकिस्तानी सेना और ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई पर कोई नियंत्रण नहीं है। जिस पर गिलानी ने खुद संसद में इस बात को नकारा था। मेमोगेट मामले में ही अमेरिका में पाकिस्तानी राजदूत हुसैन हक्कानी को इस्तीफा देना पड़ा था। लेकिन ताजा विवाद की जड़ कुछ दिनों पहले गिलानी का वो बयान है जिसमें उन्होंने कहा था कि 'मेमोगेट' प्रकरण में सेना और आईएसआई प्रमुख के सुप्रीम कोर्ट में दिए गए जवाब अवैध और असंवैधानिक हैं क्योंकि ये सरकार की मंजूरी के बिना भेजे गए थे।
जरदारी और गिलानी पर मंडराते तख्तापलट के बादल के बीच पाकिस्तान में सियासी सरगर्मी भी तेज हो गई है। जहां एक तरफ सरकार की सहयोगी पार्टी एमक्यूएम ने आरोप लगाया है कि गिलानी ने उनसे बिना कोई सलाह-मशविरा लिए बगैर ये कदम उठाया है। वहीं, नवाज शरीफ ने विपक्षी दलों से इस सरकार को उखाड़ फेंकने की अपील करते हुए फौरन चुनाव कराने की मांग की है।
पाकिस्तानी सेना के एक कदम ने तख्तापलट की तैयारी को और बल दे दिया है। रावलपिंडी की यूनिट 111 ब्रिगेड के कमांडर को कियानी ने बदल दिया है। माना जाता है कि पाकिस्तानी सेना की एक्स कोर की ये इन्फैंट्री यूनिट अब तक पाकिस्तान में हुए तख्ता पलटों में अहम भूमिका निभाती रही है और इसे इस्लामाबाद और रावलपिंडी की अहम इमारतों पर कब्जे के लिए बुलाया जाता रहा है। सरकार के साथ बढ़ते तनाव के बीच आर्मी चीफ अशफाक परवेज कियानी ने आज अपने कोर कमांडरों की बेहद अहम बैठक भी बुलाई है। दूसरी तरफ अमेरिका ने कहा है कि वो पाकिस्तान के वर्तमान हालात पर नजर बनाए हुए है।

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