मुख्यमंत्री ही क्यों लूटे, लूटने के लिए उपमुख्यमंत्री भी होना चाहिए
कांग्रेस के विधानसभा के उपनेता तिलकराज बेहड़ तथा भाजपा के मंत्री मदन कौशिक की मॉग तराई से उपमुख्यमंत्री होना चाहिए इस कांग्रेस ने जिस तरह से पल्ला झाड़ा है। यह सबसे अधिक सोचनीय व शर्मनाक है। राज्यवासियों का मानना है कि उत्तराखण्ड राज्य बने 11 वर्ष हो गये है। राज्य निर्माण के आन्दोलन के लिए दिल्ली जा रहे आन्दोलनकारी मुज्जफर नगर के पास शहीद हो गये। महिला आन्दोलनकारियों के साथ दुराचार किया गया। आज भी इसके आरोपी सीना तान कर घूम रहे हैं। उस राज्य में तिलकराज बेहड़ तथा भाजपा नेता मदन कौशिक के इस बयान पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। जिस प्रकार से उत्तराखण्ड राज्य की मूल भावनाओं को तहस नहस किया गया उस पर कोई चर्चा करने को तैयार नहीं है। आज उत्तराखण्ड में सरकार तथा विधानसभा में बैठने वाले लूट - खसोट में लगे हुये हैं। बेहड़ तथा मदन कौशिक भी चाहते हैं कि एक मुख्यमंत्री ही क्यों लूटे, लूटने के लिए एक उपमुख्यमंत्री भी होना चाहिए। हांलाकि पहाड़ बनाम तराई का जो बंटवारा करते हुए आगे इस मांग को रखा गया है यह राज्य की एकता के लिए कलंक है।

उत्तराखण्ड राज्य की मॉग के पीछे उत्तराखण्ड की जनता ने केवल हरिद्वार के कुम्भ क्षेत्र को ही उत्तराखण्ड में शामिल करने की मॉग की थी। राज्य तथा केन्द्र मै भाजपा की सरकारे थी , दोनो ने इस पर्वतीय राज्य की अवधारणा को दरकिनार करते हुए उत्तराखण्ड को अटपटा राज्य बना दिया। राजधानी के लिए देहरादून को अस्थायी जो अब स्थायी जैसा हो गया है,बना दिया गया। राजधानी के लाभों को देखते हुए अब राज्य की राजधानी से लगे उत्तर प्रदेश के कई इलाके उत्तराखण्ड में शामिल होने की बाद करने लगे हैं जबकि राज्य निर्माण का विधेयक संसद में पारित हो रहा था,तब रूद्रपुर तथा हरिद्वार के मैदानी क्षेत्र के प्रतिनिधि उत्तराखण्ड में शामिल नहीं होने के लिए दबाव बना रहे थे। रूद्रपुर को कभी भी पर्वतीय राज्य से अलग नहीं समझा गया। तराई को उत्तराखण्ड का धान का कटोरा मानते हुए तराई को बसाने में जो त्याग पर्वतीय क्षेत्र के लोगांे ने किया है। उसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। उत्तराखण्ड में जो परसीमन हुए है उससे पर्वतीय क्षेत्र की छह विधानसभाऐं मैदानी क्षेत्र में चली गयी है। इस पर भाजपा व कांग्रेस का मौन बरकरार है। उक्रांद के लोग इस परिसीमन का विरोध करने का नाटक करते रहे। लेकिन इसके पक्ष के भाजपा व कांग्रेस की गोद में बैठकर उक्रांद ने अपना राजनीतिक आधार खो दिया। छह मार्च को तीसरे विधानसभा चुनाव के परिणाम सामने आयेगंे। अभी से उक्रांद तथा उत्तराखण्ड रक्षा मोर्चा ने शर्त के आधार पर समर्थन देने का बयान दे दिया है। भाजपा के साथ सत्ता की मलाई चाट चुके उक्रांद को पहले यह बताना होगा कि पिछली बार भाजपा के साथ हुए उसके शर्तनामे का क्या हुआ। परिसीमन के बाद तराई क्षेत्र में विधानसभा की सीटें निष्चितरूप से बढ़ी हैं। इसका फायदा उठाने की नियत से कांग्रेस के नेता बेहड़ तथा भाजपा नेता मदन कौशिक पहाड़ बनाम तराई कर अपना कद बढ़ाना चाहते हैं। लेकिन यह बात भी सच है कि इस तरह की खोखली तथा बिना मुद्दों की राजनीति ज्यादा दिन तक नहीं चलती है। 11 वर्षो से उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्र का विधानसभा में सर्वाधिक प्रतिनिधित्व रहा। नित्यानंद स्वामी को छोड़कर चार मुख्यमंत्री पहाड़ के ही रहे लेकिन यह बात भी दीगर है कि नित्यानंद स्वामी को भी कभी मैदान के मुख्यमंत्री के रूप में यहां की जनता ने नहीं देखा और न ही स्वामी ने कभी इस तरह की बात की। इन 11 वर्षों में पहाड़ के विकास तथा तराई के विकास को तौले तो तराई क्षेत्र का पलड़ा ही भारी मिलेगा।
असल बात यह है कि भूगोल के हिसाब से तराई में विकास करना आसान है। लेकिन तराई के मुख्य मुद्दे आज भी समाधान की आशा में लटके हुये हैं। इन दोनों दलों भाजपा व कांग्रेस को बताना होगा कि इन्होनें दस सालों की सत्ता में तराई के साथ कितना न्याय किया। तराई में जमीनेां का मामला हो , आमआदमी के विकास का मामला हो, मजदूर किसानों के बस्तियों में मुख्य सुविधाओं की मौजूदगी का मामला हो, स्थायी निवास प्रमाण पत्र का मामला हो , इस पर कांग्रेस और भाजपा ने क्या किया। इसका जवाब न बेहड़ के पास है और न ही तिवारी के पास और न ही मदन कौशिक के पास। इसलिए दोनों ही दलों की कमियां छुपी रहे इसलिए पहले बेहड़ ने व फिर मदन कौशिक ने इस तरह का गैरजिम्मेदाराना बयान दिया है। इस बयान से कांग्रेस की राजनीति का पर्दाफाष तो हो ही गया है वहीं भाजपा की राजनीति का भी।
राज्यवासी मानते हैं कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष इसे बेहड़ का निजी बयान बताकर बच नहीं सकते। इस बयान से उत्तराखण्ड राज्य की जनता की चली आ रही एकता को कोई ठेस पहुॅचने वाली नहीं है। लेकिन यह बात साफ हो गयी है कि कंाग्रेस में कोई कुछ भी कहें उसकी पार्टी राज्य के हित एवं अहित की तुलना करने की समझ तक नहीं रखती है। कमोवेष यही हाल भाजपा का भी है। यहां उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्र का जिक्र करना भी जरूरी है। इस क्षेत्र की सर्वाधिक मुख्यमंत्री रहे उनको यह बताना चाहिए कि आज पहाड़ के कितने गॉव सुविधाओं सेे लैस हुए है। प्रतिवर्ष आपदा में जान गवांने, घरबार से बिछुड़ने वाले परिवारों को आजतक एक इंच जमीन नहीं मिली। उत्तराखण्ड हिमालय के 40 फीसदी आबादी को बॉध एवं सुरंग वाली परियोंजना के बनने के बाद अपना घर, जंगल , पानी को छोड़कर जाना है। इस तरह की सैकड़ों समस्याऐं पर्वतीय क्षेत्र मे ंव्याप्त है। जिन पर 11 वर्षों की उपेक्षा पर किताब भी लिखी जा सकती है। इसका जवाब भी बेहड़ तथा मदन कौशिक को देना होेगा। एक प्रसंग के द्वारा तराई तथा पहाड़ के दर्द को रखते हुए यह कहना उचित है कि पहाड़ व तराई भूगोल को परिभाषित करने वाले षब्द हो सकते है कि लेकिन इन षब्दों के आधार पर उत्तराखण्ड को बॉटना कतई अनुचित है।
पिथौरागढ़ के सामाजिक कार्यकर्ता जगत मर्तोलिया का कहना है कि तराई में हाथी किसानों की फसल को चौपट कर रहे है तो पहाड़ों में बन्दर,जंगली जानवर , आवारा पशु । दोनांे ही इलाकों के किसान इससे जूझ रहे है ,लेकिन किसानों की इस समस्या का 11 वर्षो में क्या हुआ। बात यह है कि उत्तराखण्ड के समग्र विकास तथा प्रत्येक इलाके में जनसुविधाओं की गारन्टी , संर्कीणता से उपर उठकर उत्तराखण्ड के प्रत्येक नागरिको की सुरक्षा , प्रत्येक परिवार को रोजगार तथा षिक्षा की गारंटी देने सहित अनगिनत सवालों पर एक स्पष्ट नीति और सोच की सरकार तथा विधानसभा के भीतर विपक्ष की आवष्यकता समय मांग बनी हुयी है इससे लोगो का ध्यान भटकाने के लिए इस प्रकार की बचकानी हरकतें की जा रही है। इसे उत्तराखण्ड की जनता समझते हुये ऐसे दलों को सबक सिखाऐगी, जो 11 वर्षो से उत्तराखण्ड की जनता को ठग रहे है। ऐसा ही कुछ छह मार्च को इवीएम खुलने पर परिणामों के आने की संभावना है।
राजेन्द्र जोशी

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