दिल्ली हाई कोर्ट की न्यायाधीश गीता मित्तल ने मृत्यदंड सुनाने के मामले में दिशानिर्देश नहीं होने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि इससे मौत की सजा के मामले में निर्णय करने के लिए न्यायाधीशों के विवेक पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ जाती है।
जज मित्तल ने कहा कि दोषियों को फांसी के फंदे पर भेजने के लिए यह जरूरी है कि निर्णय के बारे में यह तय किया जाए कि वह दुलर्भतम मामलों के दायरे में आता है। यह तय करना भी न्यायाधीशों के विवेक पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि चूंकि इस तरह के दिशानिर्देश नहीं हैं, इसके कारण न्यायाधीशों के विवेक पर बड़ी जिम्मेदारी आ जाती है।
जिंदल ग्लोबल ला स्कूल द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में वरिष्ठ न्यायाधीश के हवाले से कहा गया कि प्रत्येक न्यायाधीश का अपना दर्शन होता है और न्याय से संबंधित मुद्दों पर अपना नैतिक विश्वास होता है। इसका किसी भी मामले में मौत की सजा सुनाने संबंधी निर्णय करने पर प्रभाव होता है। वरिष्ठ न्यायाधीश ने अमेरिका एवं विश्व में मत्युदंड का भविष्य विषय पर दिए अपने भाषण में कहा कि कानून संबंधी किसी भी सुधार और मत्यदंड के प्रचलन के परिप्रेक्ष्य में कानून बनाने की प्रक्रिया में विधायिका की भूमिका की जांच किए जाने की जरूरत है।
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