बिहार पुलिस निरक्षर व्यक्तियों को न्याय दिलाने और गवाहों को बयान बदलने से रोकने के लिए अब न केवल उनके बयान लिखेगी, बल्कि उनकी वीडियोग्राफी भी कराई जाएगी। इससे न केवल निरक्षरों को न्याय मिल सकेगा, बल्कि अधिकारियों की मनमानी पर भी लगाम लग सकेगा। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को अक्सर यह शिकायत मिलती रहती थी कि निरक्षरों के बयानों को तोड़मरोड़ कर कागज पर लिख दिया गया है और फिर उस पर भुक्तभोगी के अंगूठे का निशान लगा दिया गया। इस तरह लोगों के संगीन आरोप भी हल्के कर दिए जाते थे।
गौरतलब है कि बिहार में अक्सर जब थानों में कोई निरक्षर मामला दर्ज कराने आता है तो पुलिसकर्मी ही उसका बयान लिखते हैं और फिर उनके अंगूठे का निशान ले लिया जाता है। ऐसे में अक्सर शिकायत रहती थी कि जो वह व्यक्ति कहना चाहता था वह नहीं लिखा गया। इस बात का पता तब चलता है जब आरोपी गिरफ्तार नहीं होता है या फिर कोई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अनुसंधान के क्रम में भुक्तभोगी के सामने बयान लेने पहुंचता है। राज्य के पुलिस महानिदेशक अभयानंद भी ऐसी शिकायतों की पुष्टि करते हुए कहते हैं कि ऐसी शिकायतों को रोकने के लिए ही यह नियम बनाया गया है कि अब निरक्षर व्यक्ति का न केवल बयान लिखा जाएगा, बल्कि उसकी रिकार्डिंग (वीडियोग्राफी) भी होगी।
इसके बाद कोई व्यक्ति बयान लिखने में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं कर सकेगा। बयान की सीडी तैयार कर उसे सुनवाई के लिए रख दिया जाएगा। ऐसा करने से गड़बड़ी की गुंजाइश कम होगी। वह कहते हैं कि इसके बावजूद अगर कोई पुलिस अधिकारी दर्ज बयान में अपनी मनमानी करता है तो साक्ष्य के आधार पर उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि राज्य के सभी पुलिस अधीक्षकों को इस पर आने वाले खर्च की राशि भेज दी गई है। एक अन्य अधिकारी ने बताया कि शुरुआत में ऐसी वीडियोग्राफी केवल संगीन मामलों में ही कराई जाएगी परंतु भविष्य में सभी मामलों में ऐसा किया जाएगा। उन्होंने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के तहत बयान दर्ज करने की प्रक्रिया में वीडियाग्राफी भी कराने का फैसला लिया गया है। ऐसे रिकार्ड किए गए बयानों को अनुसंधान के साथ ही न्यायालय में सुनवाई के दौरान बतौर सबूत रखा जाएगा जिससे आरोपियों को सजा दिलाने में मदद मिलेगी।
उन्होंने कहा कि इस व्यवस्था से गवाहों को बयान बदलना मुश्किल हो जाएगा। अधिकारियों के मुताबिक कानून में बदलाव कर तीन वर्ष पूर्व ही रिकार्डिग का अधिकार पुलिस को दे दिया गया था, लेकिन अब तक बिहार में पुलिस इस कानून का इस्तेमाल नहीं कर रही थी।

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