इससे बचें, वरना गये काम से
मनुष्य के बड़े शत्रुओं में अहंकार को सर्वोपरि माना गया है। मनुष्य के लिए अहंकार से मुक्ति पाना असंभव तो नहीं लेकिन असहज जरूर है। अहंकार के लिए जरूरी नहीं कि यह बीमारी बड़े कहे जाने वाले प्रतिष्ठित श्रेष्ठीजनों, लोकप्रिय हस्तियों या धनाढ्यों में ही हो, यह हर किसी को हो सकता है। इसके लिए न छोेटे का भेद है न बड़े का, और न ही किसी और किस्म का। गृहस्थी का भार ढोने वाले सांसारिकों से लेकर संसार को छोड़ देने वाले त्यागी-वैरागियों तक में अहंकार किसी न किसी रूप में विद्यमान रहता ही है। बिरले ही लोग दुनिया में ऐसे होते हैं जो अहंकार से मुक्त होते हैं।
मनुष्य को स्वाभिमानी जरूर होना चाहिए, यह उसका प्रमुख गुण भी है लेकिन अहंकारी कभी नहीं। अहंकार को कभी दंभ, घमण्ड, कभी अभिमान और कभी कुछ कहा जाता रहा है। एक जमाना था जब लोग स्वाभिमानी ज्यादा हुआ करते थे और अहंकारी कम। अब समय बदलता जा रहा है। स्वाभिमान गायब होता जा रहा है और अभिमान ऊँची छलांगें मार रहा है। जो कुछ हैं उनमें भी अहंकार है, जो कुछ नहीं हैं उनमें भी, और जो आधे-अधूरे हैं उनमें भी। अहंकार से कौन बचा हुआ है। अहंकार की मौजूदगी के लिए कई कारण सामने हैं। कुछ न कुछ पाते रहकर आगे बढ़ते चले जाने की अंधी दौड़ में अहंकार का ग्राफ भी लगातार रफ्तार पाता जा रहा है। मनुष्यों की भीड़ में आज सारे आधे-अधूरे हैं लेकिन एक बात सभी में किसी न किसी हद तक भरी हुई है और वह है अहंकार।
पद, प्रतिष्ठा और पैसों के अहंकार के अलावा अहंकार के कई कारण हैं। कहीं सुन्दरता, गौरेपन, गुरुत्व-शिष्यत्व, छरहरी काया, शारीरिक सौष्ठव, बौद्धिक सामर्थ्य का अहंकार है तो साधु-संतों, महात्माओं, मठाधीशों और बाबाओं में चमत्कारिक व्यक्तित्व और साधना का अहंकार व्याप्त है। मनुष्यों की एक किस्म और है जिनमें खुद का कोई हुनर नहीं होता बल्कि दूसरों के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने, परिक्रमा करने, बड़े लोगों के आस-पास रहने, उनकी हर प्रकार की ‘सेवा’ करने तथा उनके नाम पर ही जीने-मरने में दिन-रात लदे रहते हैं। बड़े लोगों के चरणस्पर्श को अपनी रोजमर्रा की आदत में ढाल चुके इन सेवाभावी लोगों को आम लोग कभी नौकर-चाकर या कि जन भाषा में चमचा-चापलूस भले कहें या और कोई उपनाम रख लें मगर ऐसे लोगों को अपने इन कामों से न लाज आती है, न कभी पछतावा होता है।
दूसरों के आभामण्डल से प्रकाशित होने वाले इन लोगों के अहंकार का स्वरूप ‘छाया अहंकार’ होता है। ये छाया अहंकार पूरे समाज पर धुंध की तरह छाया होता है। जहाँ ऐसे अहंकारी लोगों का जमावड़ा होता है वहाँ धुंध और अंधकार का आलम ऐसा हो जाता है जैसे सूर्य और चन्द्र को राहु द्वारा ग्रस लिए जाने के वक्त दिखता है। बस अन्तर सिर्फ इतना भर है कि यहाँ राहुओं और उनके अनुचरों की संख्या अनगिनत होती है। परायी छायाओं में रहने वाले ऐसे अजीब किस्म के अहंकारी लोगों के लिए उनके आका वैतरणी पार करने वाले बड़े-बड़े महिषों से कम नहीं होते जिनकी पूँछ पकड़ कर वे भवसागर को पार करने के मोह में दिन-रात में कई बार डूबते-उतराते रहते हैं।
यों देखा जाए तो अहंकार लोगों की बॉडी लैंग्वेज भी कुछ अलग ही हो जाती है। वे वैसे नहीं रहते जैसे भगवान ने उन्हें भेजा होता है। किसी भी अहंकारी व्यक्ति को आप गौर से देखेंगे तो उसमें कहीं न कहीं शारीरिक संरचना परिवर्तन दिखता ही है, बौद्धिक स्तर तो रामभरोसे रहता ही है, तभी तो परिभ्रमण के आदी हो गए हैं। जो जितना बड़ा अहंकारी उतनी उसकी बॉडी लैंग्वेज अलग। इनका चलन देख कर थोड़ा बहुत समझदार आदमी भी कह सकता है कि ये घमण्डी हैं। फिर इनकी चाल भी अपने आप बदल ही जाती है। ‘हम चौड़े - बाजार संकरा’ की तर्ज पर ये चलेंगे भी तो ऐसे जैसे परेड़ के पूर्वाभ्यास का सारा जिम्मा इनके माथे पर ही हो। अकड़ कर चलते हुए ऐसे खूब लोग हमसे रोज टकराते हैं जिनके बारे में और ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं है।
पांच साल की गारंटी वाले भी और साठ साल तक राज करने वालों से लेकर रोजाना कूआ खोद कर रोज पानी पीने वाले भी अहंकार से मुक्त नहीं हैं। कई तो ऐसे हैं जो गुणों की खान हैं। पूरा जीवन मिठास से भरा है लेकिन अहंकार की लाल सूर्ख मिर्ची ने सारा कबाड़ा कर रखा है। अहंकारी व्यक्ति अपने ही बारे में सोचता और बातें करता है, अपने बारे में ही सुनना पसंद करता है, दूसरों की बातें और प्रशस्ति उसे कभी सुहाती नहीं। वह चाहता है उसके बारे में पूरा जमाना मीठा-मीठा बोलता रहे और उसे अपूर्व और महानतम लोकप्रियता की कुर्सी पर बिठाये रखे।
अहंकारी लोग उन सारी खिड़कियों को बंद कर रखते हैं जो अंदर की ओर खुलती हैं। अहंकार के सिक्स लेन राजमार्ग पर सरपट भागते इन लोगों को कुछ दूसरा दिखता ही नहीं सिवा अपने अक्स और अपनी परछाइयों के। अहंकार का आगमन इस बात का स्पष्ट सूचक है कि अब ईश्वर ने किश्तों-किश्तों में उनके पराभव के लिए वह बैक डोर खोल दिया है जहाँ से अब जो भी रास्ते निकल रहे हैं वे पतन की ओर ही जाने वाले हैं। मनुष्य में जब अहंकार आ जाता है तब यह मान लेना चाहिए कि भगवान ने उसका साथ छोड़ दिया है और धकेल दिया है उस भँवर में जहाँ से कोई वापस निकल नहीं सका है। अहंकार स्वयं कभी अकेला नहीं आता। वह अपने साथ ईर्ष्या, व्यभिचार, स्वेच्छाचार, भ्रष्टाचार, कुरुपता और वे सारे अवगुण भी लाता है जिनसे आदमी के खोखलेपन का प्रमाण मिलता है।
अहंकार चाहे किसी भी परिमाण में आए, वह आत्मघाती ही होता है। अहंकार के वशीभूत होकर लोग ऐसे-ऐसे कृत्य कर लेते हैं जिनसे पूरे जीवन पछतावा होता है और कई बार पीढ़ियों को भुगतना पड़ता है। हमारे आस-पास विद्यमान अहंकारी लोगों के बारे में जान लेने पर अहंकार से उत्पन्न दुष्प्रभावों को अच्छी तरह समझा जा सकता है। जब भी अहंकार अपना स्पर्श करने लगे तब अपने समानधर्मा और समानकर्मा लोगों को देखना चाहिए और यह भी देखना चाहिए कि देश और दुनिया में ऐसे लोगों की भरमार है और हम हैं कि इन सारी हकीकतों को नज़रअंदाज कर फूल के कूप्पा हुए जा रहे हैं और गाल बजा-बजा कर अपना कीर्तिगान करने में जुटे हैं।
जो लोग अहंकार धारण कर लेते हैं उनके लिए किसी और को कुछ करने की जरूरत ही नहीं होती। यह अपने आप में सबसे बड़ा शत्रु है। यकीन मानियें कि भगवान के घर इन लोगों की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और किश्तों-किश्तों में इनके क्षरण का इंतजाम विधाता ने कर दिया है। किसी भी व्यक्ति के यशस्वी जीवन के बारे में निर्णायक भविष्यवाणी करनी हो तो उसके अहंकार के ग्राफ को सामने रखना चाहिए। इससे जो निर्णय सामने आएगा वह सटीक और सच्चाई के करीब होगा। ऐसे लोगों के लिए देहपात के बाद लकड़ियाँ की भी कम आवश्यकता होती है क्योंकि राग-द्वेष और ईर्ष्या के मारे ये पहले से ही जले और मरे हुए होते हैं।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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