सर्वोच्च न्यायालय ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को राहत देते हुए शुक्रवार को उनके खिलाफ 2002 के गुजरात दंगों से सम्बंधित एक मामले में सभी कार्यवाही पर रोक लगा दी। यह मामला राज्य के लूनावाड़ा में दफन अज्ञात शवों को खोद कर निकाले जाने से सम्बंधित है। न्यायालय ने कहा कि वास्तव में मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए मुकदमा गुजरात सरकार के खिलाफ चलाया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की पीठ ने गुजरात सरकार के वकील से कहा कि आप प्राथमिकी पढ़िए। आरोपी दूसरा पक्ष (राज्य सरकार) होना चाहिए था। राज्य के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघनों का मुकदमा चलाया जाना चाहिए था।
न्यायालय ने कहा कि हम बहुत असंतुष्ट हैं। मामला प्रशासन के खिलाफ बनता है। यदि समग्र दृष्टिकोण से देखा जाए, तो प्राथमिकी प्रशासन के खिलाफ होनी चाहिए थी। इस मामले में गुजरात सरकार ने तीस्ता सीतलवाड़ के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी। सरकार ने आरोप लगाया था कि 2002 के गुजरात दंगों में मारे गए लोगों के शव सीतलवाड़ के कहने पर कब्र से खोदे गए थे। सीतलवाड़ के खिलाफ पूरा मामला एक व्यक्ति रईस खान के बयान पर आधारित था। खान, सीतलवाड की संस्था, कमेटी फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) में काम करता था।
न्यायालय ने कहा कि तीस्ता के खिलाफ पूरा मामला गलत इरादे से बनाया गया है। पीठ ने कहा कि यह गलत इरादे से बनाया हुआ मामला है। सामूहिक कब्र खोदने का मामला 27 दिसम्बर, 2005 को घटी उस घटना से सम्बंधित है, जिसके तहत सीजेपी के तत्कालीन स्थानीय समन्वयक, रईस खान पठान के नेतृत्व में छह लोगों ने गुजरात में पंचमहाल जिले के लूनावाड़ा में पनाम नदी की तलहटी के पास 28 अज्ञात शवों को कब्र से खोद डाला था। कब्र खोदने वालों ने दावा किया था कि वे शव पंधरवाड़ा नरसंहार के लापता पीड़ितों के थे और वे उनके रिश्तेदार थे। शवों की पहचान के लिए उनके डीएनए परीक्षण हुए थे और उसके बाद कब्र खोदने वालों ने इस्लामिक रीति-रिवाज के अनुसार, शवों को वापस दफना दिया था। उस समय पठान ने कहा था कि उसने सीतलवाड के कहने पर शवों को खोदकर निकाला था। ज्ञात हो कि पंचमहाल जिले के पंधरवाड़ा के रहने वाले कुल 32 लोगों को पहली मार्च, 2002 को, राज्यभर में भड़के साम्प्रदायिक दंगों के दौरान मार डाला गया था। लेकिन इनमें से 28 शवों के बारे में पता नहीं चल पाया था।
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