पूरी दुनिया में धर्म के नाम जो कुछ हो रहा है उससे समूची मानव जाति ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण परिवेश प्रभावित हो रहा है। धर्म के नाम पर जो हो रहा है उसे देखते रहना अलग बात है और धर्म के मूल मर्म को आत्मसात करना दूसरी बात। वास्तविक रूप में धर्मी लोग वही कहे जा सकते हैं जो धर्म के मूल तत्व को हृदयंगम करें और उसी के अनुरूप आचरण करें। धर्म की बातें तो सदियों से कही जा रही हैं, परम्पराओं का निर्वाह भी हो रहा है लेकिन धर्म के रहस्य को जानकर उसके अनुरूप जीवनयापन करने वाले और धार्मिक आचरणों को अपनाने वाले लोगों की संख्या कितने अनुपात में है यह सब जानते हैं।
आजकल धर्म ऐसा अभेद्य सुरक्षा कवच हो गया है जिसकी आड़ में वह सब कुछ हो जाता है जो धर्म की किसी परंपरा में कभी नहीं रहा, न किसी धार्मिक ग्र्रंथ में उल्लिखित है। बावजूद इसके धर्म शाश्वत है और यह न्यूनाधिक स्वरूप में हर युग में अपना वजूद बनाए रखता हैै। घर के मन्दिरों से लेकर सार्वजनिक धर्म-धामों तक और पुजारियों व सेवकों तथा भौंपों-भल्लों से लेकर संत-महात्माओं, साधकों, महंतों, मठाधीशों और विभिन्न धर्मों के महापुरुषों की कई-कई श्रृंखलाएँ धार्मिक परंपराओं की
रक्षा में दिन-रात रमी हुई हैं। इसके अलावा कई चैनल्स, प्रवचनों, सत्संगों और धार्मिक उत्सव आयोजनों की भरमार हमेशा बनी रहती है।
धर्म-सम्प्रदायों और पंथों तथा साम्प्रदायिक समरसता में देखी जाने वाली बाधाओं के बावजूद अपने इलाकों में हमारे बीच से लेकर उच्चतम स्तरों तक ऐसे लोगों का वजूद आज भी है जो सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक समरसता की सरिताएं बहाने को अपने जीवन का ध्येय मानकर अपने सर्वधर्मी कर्मयोग में लगे हुए हैं। हर आयु वर्ग और विद्वत्ता की श्रेणी वाले ऐसे महापुरुष सभी जगह अपनी छाप छोड़ रहे हैं। इन्हें बुद्धिजीवियों का ऐसा तीसरा वर्ग मानना चाहिए जिनका आविर्भाव जगत के कल्याण के लिए ही हुआ है।
सर्वधर्मी लोग किसी एक धर्म की बात नहीं करते, वे सभी धर्मों, सम्प्रदायों और मतों के प्रति समान आदर भाव रखते हैं और इनके आयोजनों में पूरे मन से शिरकत करते हैं। ऐसे सर्वस्पर्शी आदरणीय महानुभावों को सभी धर्मों के लोग पूजनीय मानकर सम्मान देते हैं। धर्म निरपेक्षता से भी हजार गुना ज्यादा प्रभाव छोड़ता है सर्वधर्मी व्यक्तित्व। इसमें हर कहीं लाभ ही लाभ है, टके भर भी न हानि न कोई खतरा। जहाँ से जो मिल जाए वो अपना। ज्ञान जब चरम अवस्था में व्यक्ति के भीतर स्थायी जगह बना लेता है तभी इस प्रकार की उदारता और सहिष्णुता के बीज अंकुरित होने लगते हैं। यह औदार्य ही है जो उन्हें लोकप्रियता के शिखरों का स्पर्श कराता है और यशस्वी बनाता है।
अपने आस-पास भी ऐसे कई-कई महान बुद्धिजीवी उपलब्ध हैं जिन्हें सर्वधर्मी कहा जा सकता है। क्षेत्र में कहीं भी, कभी भी और किसी भी प्रकार के आयोजनों में हिस्सेदारी करने से नहीं चूकने वाले ऐसे लोगों का ही कमाल है कि उनकी विद्वत्ता और वाणी माधुर्य की वजह से सामाजिक सहिष्णुता और समरसता को सम्बल मिलता रहा है।
उदारता की प्रतिमूर्त्ति के रूप में पूजित ये शख़्सियतें स्व-धर्म या किसी एक धर्म के प्रति आसक्त होने की संकीर्णताओं से काफी ऊपर उठ चुके होते हैं। इनके लिए सभी धर्म अपने हैं। इनकी यह भावना सभी के लिए अनुकरणीय है। कहा गया है- ‘धर्मों रक्षति रक्षितः’ । फिर इनके लिए तो सारे धर्म इनकी रक्षा करने वाले ही नहीं अपितु परिपुष्ट करने वाले होते हैं।
इनके महान कर्मयोग, ऐतिहासिक भागीदारी और यशस्वी परंपराओं से भरे-पूरे व्यक्तित्व से बेखबर या कि नासमझ लोग भले ही इनके लिए यह मानते रहें कि ये किसी न किसी ऐषणा या स्वार्थ के बिना कहीं कदम भी नहीं रखते, इनके लिए धर्म तो एक माध्यम है जिसके सहारे वे क्या-क्या नहीं कर गुजरते, खुद का धरम तो निभता नहीं और हर कहीं टाँग फँसा लेने में माहिर हैं। अपनी ड्यूटी तो ढंग से होती नहीं और चले हैं धरम की बातें करने। घर वालों को तो गाँठते नहीं और डींगें हाँकते हैं ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की। आदि....आदि...।
लोगों को किसी के भी बारे में सोचने और कहने का पूरा अधिकार है। पब्लिक पर किसका बस चल पाया है आज तक। लोगों को यह सोचना चाहिए कि ये हस्तियाँ हमारे बीच नहीं होती तो आज क्या होता। इनकी बदौलत ही तो सब कुछ नया-नया देखने-सुनने को मिल रहा है। फिर क्या फर्क पड़ता है कि ये किनके आयोजन में भाग ले रहे हैं, क्यों ले रहे हैं, नाम कमाने और फोटो छपास की भूख मिटा रहे हैं या कुछ पाने के फेर में ये सब कर रहे हैं। इनके कैसे भी स्वार्थ हों, इससे दुनिया वालों को क्या लेना-देना। आम लोगों को इनके बारे में ऐसी बातें नहीं सोचनी चाहिए। यों भी दुनिया में जो भी महान लोग अवतरित हुए हैं उनमें से अधिकांश को अपने जमाने के लोगों ने भला-बुरा कहने और करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। हम कृतज्ञ हैं उन लोगों के जो अपनी विद्वत्ता और अनूठे कर्मयोग के सहारे सर्वधर्मी व्यवहार अपनाते हुए हमें मनुष्य जीवन को धन्य करने की कलाओं से युक्त नित नए व्यवहारिक प्रयोगों और ज्ञान से लाभान्वित कर रहे हैं।
हमारी पावन धरा भी इन महापुरुषों की ऋणी है जो सर्वधर्म समभाव का पैगाम गुँजाते हुए गर्व और गौरव का अहसास करा रहे हैं।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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