पहाड़ का भोलापन पहाड़ियों की ईमानदारी विश्वविख्यात है सेना से लेकर राजनीति तक, उद्योगपतियों के कारखाने से लेकर हवेलियों तक पहाड़ियों की ईमानदारी हमेशा हिमालय की तरह ऊँची और अटल रही है। पहाड़ ने देश को एक से बढ़कर एक ईमानदार राजनीतिज्ञ, नोकरशाह, सेन्य अधिकारी, बीर-सैनिक, ईमानदार कर्मचारी, ईमानदार सेवक दिए हैं जिन्होंने अपनी ईमानदारी और कर्मठता से पहाड़ का नाम विश्व में रोशन किया है।
पिछले कुछ शालों से इसी पहाड़ में जन्में लोगों ने पहाड़ को विश्वपटल पर शर्म-शार किया है। भौतिक सुख-सुविधाओं और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने यहाँ के लोगों का भोलापन छीन लिया है। जिस प्रकार पवित्र गंगा मैली हो गई है उसी प्रकार पहाड़ का भोलापन पर भी मैला हो गया है। रिश्वतखोरी, चोरी, डकेती, लूट, बलात्कार, घोटाले, हत्या, स्मगलिंग, नशाखोरी, फरेब, मिलावटखोरी आदि पहाड़ में उसी तेजी से बढ़ रही है, जिस तेजी से देश में महंगाई डायन बढ़ रही है। उदारीकरण, केबल टी.वी., मोबाइल, इन्टरनेट, जैसी संचारक्रांति भी इसके प्रमुख कारण हैं सास-बहु के डेली सीरियलों को देखकर भोली-भली महिलाएं भी चतुर-चालाक-चालबाज हो गई हैं।
युवाओं में नशीले पदार्थों के प्रति इस कदर जुनून हो गया है की वो कोई भी रास्ता अख्तियार करने से बाज नहीं आ रहे हैं जिसे देखकर लग रहा है आने वाले कुछ सालों में युवा पीढ़ी शारीरिक रूप से पूरी तरह अक्षम हो जायेगी। राजनीति का स्तर इतना गिर चुका है की अब पहाड़ में भाई-भाई को भाई नहीं समझता है फिर जनता उसके लिये क्या मायने रखती है। नेता कुर्सी के लिये पहाड़ को उसी तरह विभाजित करते हैं जिस तरह अंग्रेज किसी जमाने में हिंदुस्तानियों को अपने फायदे के लिये करते थे।
कुल मिलाकर जो आज पहाड़ का हाल हो गया है उसे देखकर यही लग रहा है की पहाड़ का भोलापन गंगा की धारा में बह गया है और इसे बचाने के लिये कोई भी नेता, अधिकारी, कर्मचारी प्रतिबद्ध नहीं दिख रहा है केवल राजनीति की जा रही है इसके सिवाय कुछ नहीं।
(राजेन्द्र जोशी)

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