बच्चों की पढ़ाई के खर्च को लेकर अभिभावक हैरान और परेशान हैं। शहर के पब्लिक स्कूल जहां पुस्तक विक्रेताओं से साठगांठ करके उनकी जेब काट रहे हैं, वहीं स्कूलों ने फीस में भी भारी वृद्धि कर दी है। स्कूलों का दावा है कि फीस वृद्धि के लिए कोई स्पष्ट नियम नहीं है, लिहाजा महंगाई के हिसाब से इसमें वृद्धि की गई है। महानगर में करीब दर्जन भर पब्लिक स्कूल हैं। इनमें कुछ नर्सरी में दाखिले के भी हजारों की रकम ले रहे हैं। मासिक फीस भी हजार रुपये कम नहीं है। लगभग हर साल बढ़ रहे इस शुल्क में इस साल भी तीन सौ रुपये की तक की वृद्धि की गई है। इसका खुलासा स्कूलों द्वारा प्रशासन को सौंपे गए ब्योरे से हुआ है। कक्षा आठ की ही बात करें तो एक स्कूल कुछ फीस वसूली रहा है तो दूसरा उसकी दूनी। पब्लिक स्कूलों ने कोई मद ऐसा नहीं छोड़ा है जिसमें फीस न बढ़ाई गई हो। रजिस्ट्रेशन, महीने की फीस, एडमीशन, डवलपमेंट, इलेक्ट्रानिक लर्निग, ट्रांसपोर्ट शुल्क सभी में बढ़ोत्तरी की है। नेशविला रोड निवासी संजीव उनियाल सरकारी विभाग में लिपिक हैं, कहते हैं कि जो इंक्रीमेंट लगता है वह स्कूल वाले छीन लेते हैं, घर के अन्य खर्चाे की महंगाई तो छोड़ ही दीजिए। धामवाला निवासी सीमा अरोड़ा कहती हैं कि इतनी साल भी की जितनी फीस प्रोफेशनल कोर्स की बैठती है उसके बराबर नर्सरी की फीस है। आशियाना निवासी रजनी भटनागर कहती हैं कि शायद सीबीएसई व आइसीएसई का कोई नियम व कानून इन स्कूलों पर लागू नहीं होता। यही दर्द अन्य अभिभावकों का भी है। उनका कहना है कि कोई तो कानून इन स्कूलों पर लागू होना चाहिए। आखिर जब ये बोर्ड से संबंद्धता लेते हैं, तो उस बोर्ड के कुछ नियम कानून भी होंगे, जो इन स्कूलों पर लागू होते होंगे या ये सिर्फ मुनाफे के निर्मम बाजार से ही संचालित होते हैं, जिसमें हजारों अभिभावकों की जेब कटती है।
यहां भी किया खेल रू कई स्कूलों ने ब्योरा सौंपने में प्रशासन की आंखों में धूल झोंकी है। कुछ स्कूलों ने 2012-13 में 100 से 200 रुपये तक महीने की फीस, रजिस्ट्रेशन, वार्षिक शुल्क में बढ़ोत्तरी की है, लेकिन प्रशासन से इस साल का सच छुपाया है। इन स्कूलों ने पिछले साल का ब्योरा सौंप दिया है। इनमें दून के दो नामचीन स्कूल भी बताए जा रहे हैं। कई ने ट्यूशन फीस का ब्योरा दिया लेकिन प्रवेश के समय लिए जाने वाला ब्योरा छुपा गए।
कहां गया शिक्षक-अभिभावक संघ पिछले साल जिला प्रशासन ने पब्लिक स्कूल संचालकों को निर्देश दिए थे कि फीस वृद्धि से पहले विद्यालय गठित शिक्षक अभिभावक संघ की सहमति भी ली जाए। जिस बैठक में फीस बढ़ाने का फैसला हो, उसमें अभिभावकों का प्रतिनिधि भी मौजूद होना चाहिए मगर स्कूलों ने इस पर गौर नहीं किया। तमाम स्कूलों में ऐसे संघों का भी गठन नहीं किया गया है।
सरकारी स्कूल आठवीं तक मुफ्त रू केंद्रीय विद्यालय समेत प्रदेश के सभी सरकार विद्यालयों में आठवीं तक शिक्षा मुफ्त मिलती है। वहीं महानगर के महंगे पब्लिक स्कूल में नर्सरी में ही दाखिले के लिए हजारों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। सीमित दायरे में बढ़े शुल्करू केंद्रीय विद्यालय के प्रिसिंपल का कहना है कि सीबीएसई बोर्ड की ओर से निजी विद्यालयों की शुल्क वृद्धि के बारे में साफ कहा गया है कि यह वृद्धि सीमित दायरे में होनी चाहिए। हमारा सीधा नियंत्रण नहींरू शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सीबीएसई और आइसीएसई के विद्यालय सीधे उनके नियंत्रण में नहीं आते हैं। उन्हें केवल विद्यालयों को नोटिस भेजने का अधिकार है। सीधे कार्रवाई बोर्ड के स्तर से ही हो सकती है। फिर अपने अधिकारों के तहत इन स्कूलों से ब्योरा मांगा गया है।
(राजेन्द्र जोशी)

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