खुराफातियों को बेकार न रहने दें ! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 5 सितंबर 2012

खुराफातियों को बेकार न रहने दें !


लगाए रखें किसी न किसी काम में !!


समाज में आज सबसे बड़ी समस्या उन लोगों से नही है जो किसी न किसी प्रवृत्ति में रमे हुए हैं और अपना काम अच्छी तरह करते हुए समुदाय और देश की सेवा कर रहे हैं। सभी प्रकार की व्यवस्थाओं में ऎसे लोग श्रेष्ठ माने जाते हैं जो अपने काम से काम रखते हैं और मस्त रहते हैं। घर-परिवार और समाज से लेकर क्षेत्र तथा  देश के लिए सर्वाधिक समस्या आज उन लोगों की है जो न कहीं काम-काज कर रहे हैं न उन्हें कहीं स्थापित किया हुआ है। जीवनलक्ष्योें को जाने बिना मनुष्य शरीर धारण कर चुके इन्हीं लोगों की वजह से शेष समाज और परिवेश में प्रदूषण फैलता जा रहा है। ऎसे लोगों में दो तरह के लोग होते हैें। एक तो वे हैं जिनके पास कोई काम ही नहीं है इसलिए ‘‘खाली दिमाग शैतान का घर...’’ वाली कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। लेकिन इन लोगोें से समाज को कोई ज्यादा खतरा नहीं हुआ करता। खतरा और भय तो उन लोगों से है जो कमाने-खाने और सेवाओं में लगे हुए होने के बावजूद अपना काम ढंग से नहीं करते हैं और कार्यविहीन संस्कृति का परचम लहराते हुए अपनी ड्यूटी के सिवा उन सारे कामों में जुटे हुए हैं जिन्हें खुराफात माना जाता है। इस किस्म के लोग किसी भी दफ्तर, प्रतिष्ठान और सामाजिक, गैर सरकारी संगठनों, साहित्यिक-सांस्कृतिक-धार्मिक संस्थाओं तथा उन सभी क्षेत्रों में पाए जाते हैं जो आम जनता से सीधे जुड़े हुए हैं।

अपने इलाके में और अपने आस-पास बने रहने वाले लोगों को ही इस नज़रिये से देख लें तो हमें भी आश्चर्य होने लगता है कि हम भी ऎसे-ऎसे लोगों से घिरे हुए हैं जो अपना काम करने में तो रुचि नहीं दिखाते और अपनी ड्यूटी करने में तो मौत आती है लेकिन खुराफात और चर्चाएं दुनिया भर की इनसे करा लो, कभी थकेंगे तक नहीं।
इस किस्म लोगों की आजकल हर कहीं बाढ़ आयी हुई है। दिखने में भोले-भाले और इस तरह दयनीय अवस्था का प्रकटीकरण करते हैं जैसे भगवान ने इन्हीं बेचारों को निरीह बनाकर भेजा है। कई लोग ऎसे हैं जो काम नहीं करने के लिए सौ-सौ बहाने बना लेते हैं। कभी गंभीर बीमारी का बहाना बनाते हुए रोनी सूरत लेकर ही कार्यस्थल पर आते हैं और दिन भर बीमारी की चर्चा करते हुए काम-काज से जी चुराते रहते हैं लेकिन अनर्गल चर्चाओं और खुराफात के काम ये बिना किसी के बताए हर क्षण करते ही रहते हैं। जीवन में कभी ईमानदारी से ड्यूटी नहीं करने वाले ऎसे लोगों को दिन भर खुराफात का टॉनिक चाहिए। इसीलिए वे ऎसे-ऎसे लोगों को अपने पास बुलाकर इनसे घिरे हुए वो सारी चर्चाएं करने में मशगुल रहते हैं जिसे खुराफात की श्रेणी में माना गया है।

अपने कार्यस्थल पर यह टॉनिक कभी नहीं मिलने पर इस किस्म के लोग किसी न किसी काम का बहाना बनाकर घण्टों गायब हो जाते हैं और पूछे जाने पर एक ही काम का बहाना कई-कई दिन चला देते हैंं। कुछ लोगों के चरित्र को देखने पर साफ पता चलता है कि हर क्षेत्र में कई ऎसे दुर्भाग्यशाली लोग होते हैं जो जहां रहते हैं वहां उनके रहते हुए या उनके जीते जी कभी प्रसन्नता या सुकून का माहौल रह ही नहीं सकता। इन लोगों को दुर्भाग्यशाली पाँवों वाला कहा जा सकता है। जहां इनके पाँव पड़ते हैं वहाँ की शांति भंग हो जाती है, काम-काज उल्टे होने लगते हैं, बुराइयों, भ्रष्टाचार और कुतर्कों का डेरा जम जाता है, नकारात्मक किस्म के लोगों का आवागमन और जमघट रहने लगता है, नित नए फिजूल के संघर्ष और लड़ाई-झगड़े होने लगते हैं। कहीं इन लोगों को ‘खोडीलं पोगं वारो आदमी’, कहीं ‘दुर्भगा आदमी’, कहीं कुछ और कहा जाता है। लेकिन इतना तय है कि इन लोगों की मौजूदगी मात्र ही कहीं की भी शांति भंग कर देने को काफी है।  ऎसे लोगों का सान्निध्य पाकर फूले नहीं समाने वाले लोगों को भी मानना चाहिए कि भले ही ये उनके लिए कमाऊ पूत या भोग-विलास की सारी सुविधाओं के सहज सुलभ दाता हों मगर यह सारी स्थितियां इस बात को ही इंगित करती हैं कि उनका सम्पर्क और सान्निध्य ही अपने दुर्भाग्य दिनों के जागरण के तमाम पिछले द्वार खोलने लगा है।

देखने और व्यवहार में ये खुराफाती लोग बड़े ही विनम्र, उच्चतम आदरसूचक संबोधनों में निपुण, सामने वाले को प्रभावित करने के लिए हर काम करने और करा लेने में सहज तैयार, दोहरे-तिहरे चरित्र इतने कि गिरगिटों की सारी प्रजातियां इनके आगे विफल रहती हैं। उनके इन सभी प्रकार के आडम्बरों और पाखण्डों का मायाजाल इतना बिखरा होता है कि उनसे मिलने वाले बाहरी लोग तो उन्हें देवदूत ही मानने लगते हैं। हकीकत से अनजान होने की वजह से ही लोग इनके मायापाश में बंधते चले जाते हैं। सच का पता तो तब चलता है जब इन्हें इन्द्रधनुष समझ कर पास आए लोग इनके अजगरी पाश में बंधकर मरोड़ खाने लगते हैं। इन खुराफातियों के खुर आफत वाले होते हैं और इसीलिए कहा गया है कि इनके खुर (पाँव) जहाँ पड़ेंगे वहां आफत का आना और रहना तय ही है। इन लोगों के जीवन का मकसद ही अपनी प्रतिष्ठा और कद बनाए रखने के लिए सारे हथकण्डों और स्टंटों, दंद-फंदों को अपनाए रखना होता है। और यही कारण है कि इनका मन वहीं लगता है जहां हराम की कमाई मिलने वाली हो या मावा-मिठाई और चाशनी। इसके सिवा इन्हें अपने काम-काज करने तक में मौत आती है और वे कोई न कोई बहाना बनाते हुए कामों से सायास दूरी बनाने के पूरे प्रयास ताजिन्दगी करते रहते हैं।

इनका सबसे बड़ा गुण यह भी होता है कि ये अपने जिम्मे के कामों को दूसरे के मत्थे डाल देने मेें माहिर होते हैं। अपने लिए निर्धारित सारे काम-काज से दूरी बनाये रखते हुए नकारात्मक सोच के साथ फिजूल के काम करना, अपनी किस्म के नुगरों और नाकाराओं को जमा करते हुए कुतर्कों और अनर्गल चर्चाओं के दौर चलाना, पूरे समय निठल्ले बैठे रहकर विध्वंस की कल्पनाओं में जीना और अपनी इस लत के पूरी नहीं होने पर कार्यस्थलों से घण्टों गायब रहकर जहाँ-तहाँ डेरा जमाकर अपने नापाक इरादों के लिए माहौल तैयार करना इस किस्म के लोगों की खास विशेषताओं में शुमार है। अच्छे लोग इन्हें कभी नहीं सुहाते। इन लोगों की वजह से समाज, परिवेश आदि का पूरा का पूरा माहौल अशांत, अधीर और उद्विग्न बना रहता है। ऎसे में इस किस्म के लोगों से अपना किसी न किसी बहाने का सामीप्य हमें हमारे पूर्वजन्म के किसी गंभीर पाप के परिणाम की ही ओर इंगित करता है। इन लोगों से उचित दूरी बनाए रखते हुए इन्हें उपेक्षित रखें, इसी में अपना और समाज का भला है। इन लोगों मेें सुधार की कोई गुंजाइश शेष नहीं रहती है इसलिए इस दिशा में प्रयास कभी न करें।  भगवान से कहें कि यह सामीप्य जितना जल्द खत्म हो उतना अच्छा। यह शाश्वत सच है कि खुराफातियों के खुर जहाँ पड़ेंगे, वहाँ कपट, कलह और कुटिलताओं के साथ अशांति होगी ही। इन लोगों को किसी न किसी काम-धन्धे से जोड़ें रखें ताकि इनका दिमाग वहीं लगा रहे और कम से कम उतने समय तो बाकी लोग शांति और चैन से रह सकें।


---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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