जीवन की मस्ती चाहें तो.... - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2012

जीवन की मस्ती चाहें तो....


शरीर पर न रखें फालतू का बोझ !!!


भगवान द्वारा जो शरीर दिया हुआ है उसका पूरा-पूरा  दैहिक, दैविक और भौतिक लाभ प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि शरीर पर अनावश्यक बोझ न हो। चाहे फिर वह वस्त्रों का हो, कागजों और पर्स का हो या और किसी तरह की सामग्री का। हम ऐसे खूब सारे लोगों को देखते हैं जो बिना किसी काम के भी बहुत सारी सामग्री अपने शरीर पर ढोये रहते हैं। इस अनावश्यक सामग्री का होना शरीर की चुम्बकीय क्षमताओं और कर्षण शक्ति तथा वैचारिक तरंगों के आवागमन पर गहरा कुप्रभाव डालता है। शरीर पर उतने ही परिधान जरूरी हैं जिनसे लज्जा न आए और मौसम के अनुकूल आसानी से सहजतापूर्वक रहा भी जा सके। इतनी जरूरतों के सिवा अपने शरीर पर फालतू की कोई चीज नहीं होने पर ही जीवन का असली आनंद लिया जा सकता है। जिन लोगों को मनुष्य जीवन का पूरा-पूरा आनंद प्राप्त करना हो और अपनी अलग ही मस्ती में बिंदास जीवनयापन करने की इच्छा हो उन लोगों को चाहिए कि गैर जरूरी पदार्थों से अपने शरीर को दूर रखें। शरीर को प्राप्त होेने वाली दैवीय ऊर्जाओं और ईश्वरीय सुचालकता के लिए जरूरी है कि शरीर पर बिना काम का बोझ न रहे और ऐसा होने पर ही दिव्य शक्तियों का प्रवाह अपने शरीर की ओर बना हुआ रह सकता है। जिस अनुपात में शरीर का स्पर्श फालतू वस्तुओं से कम से कम होगा, उसी अनुपात में दिव्य और दैवीय ऊर्जाओं का आगमन ज्यादा होगा। लेकिन जैसे ही हम अपने शरीर पर अनुपयोगी पदार्थों का बोझ ढोना शुरू कर देते हैं, शरीर की सुचालकता भी प्रभावित होती है और उसकी ग्राह्यता का सामर्थ्य घटने लगता है। ऐसे में शरीर पर धारण की जाने वाली गैर जरूरी चीजों की वजह से हम कई बार अपने लायक विचारों और तरंगों को प्राप्त नहीं कर पाते हैं जिनका हमारे जीवन निर्माण और हमारी समस्याओं के निराकरण से गहरा रिश्ता हुआ करता है। 

शरीर पर कम से कम वजन रखें और जिन चीजों के बगैर भी हम रह सकते हैं, उन चीजों को अपने से दूर ही रखें, तभी हम कई ऐसी दिव्य शक्तियों का लाभ और आनंद प्राप्त कर सकते हैं जो हमारी कल्पनाओं से भी परे और अथाह हुआ करती हैं। हममें से अधिकांश लोग इस मर्म से अनजान होते हैं और इस कारण हम ब्रह्माण्ड और ईश्वरीय केन्द्रों से हमारे लिए उत्सर्जित की गई किरणों या तरंगों का पूरा लाभ प्राप्त नहीें कर पाते हैं। इस मर्म को आत्मसात करना जरूरी है कि हमारी आवश्यकताओं और हमारे लिए कल्याणकारी विचारों का सतत प्रवाह हमारी ओर सदैव बना रहता है लेकिन हमारी अज्ञानता या मूर्खता अथवा संसार में बुरी तरह रम जाने की स्थितियां ही हमारी सबसे बड़ी शत्रु होती हैं जिनकी वजह से हम उन तत्वों का ज्ञान भी नहीं कर पाते हैं जो हमारे लिए अत्यन्त उपयोगी और रामबाण हुआ करते हैं। इसमें दोष प्रकृति या ईश्वरीय शक्तियों का नहीं है बल्कि दोष हमारा ही है जो कि इन दिव्य संकेतों की ग्राह्यता के लिए जरूरी तत्वों को भुला बैठे हैं। फैशनपरस्ती के मौजूदा दौर ने हमारा इतना कबाड़ा कर दिया है कि हम कहीं के नहीं रहे हैं। न हम संास्कृतिक रहे हैं, न असांस्कृतिक, न भारतीय और न ही पश्चिमी। हकीकत तो यह हो गई है कि हम कभी आधे-अधूरे होते हैं, कभी कुछ नहीं, और कभी तो हमें भी पता नहीं रहता कि आखिर हम क्या होकर रह गए हैं। खैर हम जो भी हैं, जैसे भी हैं, आखिर जिन्दगी तो जैसे-तैसे पूरी करनी ही है। कई लोग प्रसन्नता के साथ करते हैं, कई लोग रोज मर-मरकर जीने का स्वाँग रच रहे हैं। कुछ ही बिरले हैं जो जीते भी हैं तो शान से, और मरते भी हैं तो शान से।

जो लोग शान से जीना और मरना चाहते हैं उन्हें सबसे पहले अपनी आवश्यकताओं के साथ ही शरीर के बोझ को सीमित करना होगा। एक-दूसरे की देखादेखी फैशन के अंधे कूए में मेंढ़कों की तरह टर्र-टर्र करने वाले लोगों की सबसे बड़ी ख़ासियत यह होती है कि वे अपने पास उन पदार्थों को रखने के आदी हो जाते हैं जिन पदार्थों के बगैर उनका जीवन अच्छे से चल जाता है। कई लोग पतले पेट के होने के बावजूद मोटा सा चमड़े का बैल्ट बाँधते रहते हैं, जबकि इनके लिए इसकी कोई जरूरत नहीं होती। कई लोग छाया में रहने के बावजूद धूप का काला चश्मा चढ़ाये होते हैं। कइयों की जेब में भारी भरकम पर्स होता है तो कइयों के जेब में जाने कितने दिनों के कागज ठूँसे हुए रहते हैं। फिर कितनों के जेब में तम्बाकू, गुटके और जाने कैसी-कैसी डिब्बियां और दवाइयां। कई लोग बिना किसी काम के भी अपने साथ बैग, डायरी और थैलियाँ लेकर चलते हैं। कइयों की तो आदत ही हो गई है कि हमेशा डायरी हाथ में या काँख में दबाए घूमते हैं जैसे इनके मुकाबले के लाट साहब और कहीं हो ही नहीं। कइयों की जेब में चाबियों के भारी-भरकम गुच्छे बजते रहते हैं। कई ऐसे हैं जिन्हें अकारण टोपियां और साफों, पगड़ियों का शौक होता है, तो कई बड़े लोग अपनी आयु और बुजुर्गियत तथा टाल को ढंकने के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं। सार्वजनिक जीवन में अपनी शेखी बघारने वाले ऐसे खूब लोग हैं जो अपने बुढ़ापे और उड़े हुए बालों वाले सर को ढंकने के लिए टोपियों, पगड़ियों और साफों का दिन-रात प्रयोग करने के आदी हैं। कई लोग कितने सारे मोबाइल साथ रखा करते हैं जबकि कितने ही लोग ऐसे देखे जा सकते हैं जिनके लिए घड़ी का कोई उपयोग है ही नहीं, फिर भी बड़े-बड़े डायल की भारी घड़ियां उनकी कलाइयों में फबती रहती हैं।

फिर सोने-चांदी के जेवरातों और माला-मनकों, गण्डे-ताबीजों से लदे लोगों की संख्या तो गिनी ही नहीं जा सकती। कई लोग तो इस कदर जेवरात और मालाएं-ताबीज पहने रहते हैं जैसे माला-ताबीजों की कोई चलती-फिरती छोटी-मोटी दुकान ही  हो। ऐसे कई लोग तो साक्षात भैरवजी ही नज़र आते हैं। उन्हें खुद को पता नहीं कि इस सारे भार का क्या मतलब है, पर क्या करें, जिसने जो कहा वह पहन लिया। कइयों के पास विजिटिंग काडर््स का बहुत बड़ा जखीरा हमेशा जेबों में ठूंसा होता है। यहाँ बात आदमियों की ही क्यों?  इस मामले में आधा आसमाँ तो और भी ज्यादा आगे है। बात जेवरातों की नहीं भी करें तो कई महिलाओं की आदत हुआ करती है हमेशा भारी-भरकम पर्स लटकाए चलना। अपने आपको बॉस, मैम, मैडम कहलाने का शौक फरमाने वाली इन महिलाओं में से अधिकतर जहां भी जाएंगी, वहां बड़ा सा पर्स कंधे पर झूलता मिलेगा। कइयों के पास तो हर वार के हिसाब से अलग-अलग रंग के पर्स हैं जो सातों दिनों को धन्य करते हैं। फिर कामकाजी महिला हो तो बात और भी कई कदम आगे। दफ्तर-स्कूल-कॉलेज के पर्स अलग और घर के भी जुदा-जुदा। यह तय मानकर चलियें कि जो वस्तुएं हमारे आस-पास अक्सर बनी रहती हैं उनके प्रति हमारी घोर आसक्ति होती ही है और ऐसे में इनकी वजह से ग्रहों-नक्षत्रों का अच्छा-बुरा प्रभाव भी पड़ता ही है। ख़ासकर जो लोग ध्यान, ईश्वर की भक्ति और योग मार्ग में जाना चाहें या जीवन में प्रत्येक क्षण को आनंद के साथ गुजारने का सुकून पाना चाहे, उनके लिए यह जरूरी है कि कोई भी गैर जरूरी पदार्थ अपने पास न रखें ताकि दैवीय ऊर्जाओं और तरंगों का सतत प्रवाह निरन्तर बना रहे।


---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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