शहीदों हम शर्मिंदा हैं, तुम्हारे कातिल जिंदा हैं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 2 अक्टूबर 2012

शहीदों हम शर्मिंदा हैं, तुम्हारे कातिल जिंदा हैं


देहरादून, 2 अक्टूबर। यह राज्य का दुर्भाग्य ही है कि राज्य आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसाने वाले और मां बहनों की अस्मत लूटने वालों के साथ आज कांग्रेस सरकार खड़ी है। यह वही कांग्रेस सरकार है, जिसने दो अक्टूबर 1994 को मुजफ्फनगर कांड के सहयोगी मुलायम सिंह यादव को अपनी गोदी में बिठा रखा है। उत्तराखण्ड में हो रहे लोकसभा उपचुनाव में जहां तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार की पार्टी कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के पुत्र साकेत बहुगुणा मैदान में हैं, तो वहीं इस सरकार से  गलबहियां करने वाले समाजवादी पार्टी और बहुजुन समाज पार्टी ने कांग्रेस के पक्ष में अपना प्रत्याशी खड़ा नहीं किया है। ‘‘चोर-चोर मौसेरे भाई‘‘ का मुहावरा उत्तराखण्ड की राजनीति में साफ दिखाई दे रहा है कि उत्तराखण्ड आंदोलनकारियों पर जुल्मो सितम करने वाले जहां आज एक साथ खड़े हैं, वहीं उत्तराखण्ड की परिकल्पना को धूर धूश्रित करने वाली भारतीय जनता पार्टी दूसरी ओर। उत्तराखण्ड की अपनी समझे जाने वाली पार्टी उत्तराखण्ड क्रांति दल अपने जन्म से लेकर आज तक कई बार फाड़-फाड़ होने के बाद भी चुनाव मैदान में अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रही है। वहीं उत्तराखण्ड रक्षा मोर्चा ने ऐसे व्यक्ति पर दांव लगाया है जो न कभी उत्तराखण्डी था और न ही उसके मन में उत्तराखण्ड की कोई सोच ही रही है। बस कहने को ही वह उत्तराखण्डी है। वैसे इस चुनावी समर पर और भी बहुत लोग लड़ रहे हैं, लेकिन इनका वजूद न के बराबर है।

एक अक्टूबर की रात राज्य प्राप्ति आंदोलन के लिए उत्तराखण्ड के तमाम क्षेत्रों से राज्य आंदोलनकारी दिल्ली में अपनी मांगे मनवाने के लिए जा रहे थे कि राज्य आंदोलनकारियों को मुजफ्फनगर के पास रामपुर तिराहे पर रोक लिया गया और उन पर जो जुल्मो सितम किया गया, वह आज भी सच्चे उत्तराखण्ड वासियों के शरीर में सीहरन पैदा कर देता है। तमाम आंदोलनकारियों को जहां गोलियांे से भुना गया वहीं राज्य की महिलाओं अथवा राज्य की अस्तम के साथ खिलवाड़ भी किया गया। उस समय से लेकर आज तक 18 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन राज्य आंदोलनकारियों पर बर्बरता करने वाले आरोपियों को न तो फांसी ही हुई है और न ही वे जेल की सलाखों के पीछे ही पहुंच पाए हैं। छः अक्टूबर 1994 को उत्तराखण्ड संघर्ष समिति की याचिका पर हाईकोर्ट से सीबीआई जांच के आदेश दिए थे। इसी दिन मौके पर महिला आयोग की टीम पहुंची थी, 60 लोगों सहित 47 महिलाओं के बयान दर्ज हुए, जिसमें 72 लोगों ने व्यक्तिगत और 30 ने सामुहिक बयान दर्ज कराए, वहीं इस मामले पर उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय ने कई आरोपियों को सार्वजनिक किया जिनमें अनंत कुमार सिंह सहित पुलिस अधिकारी बुआ सिंह और भी कई आरोपी थे।

नौ नवम्बर 2000 को राज्य के अस्तित्व में आने के बाद राज्य आंदोलनकारियों सहित प्रदेश के लोगों में यह उम्मीद जगी थी कि अब राज्य आंदोलनकारियों पर जुल्म करने वालों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया जाएगा, लेकिन ऐसा राज्य बनने के बारह साल बाद भी नहीं हो पाया और आरोपी आज भी खुले घूम रहे हैं। नैनीताल उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता राजेन्द्र कोटियाल का कहना है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड की सरकारों की अदला-बदली के चलते आरोपियों को बचने का मौका मिलता रहा और राज्य सरकार ने इस मामले की पैरवी ठीक ढंग से नहीं की। इसे इस राज्य की विडंबना ही कहा जाएगा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार, जिसके प्रधानमंत्री जिसके प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव थे और वर्तमान में वही कांग्रेस समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की बैसाखियों के सहारे मनमोहन सरकार को ऑक्सीजन दे रही है। यही कारण है कि टिहरी लोकसभा के लिए 10 अक्टूबर को होने वाले मतदान के लिए हो रहे चुनाव प्रचार में कांग्रेस को उसी समाजवादी पार्टी का समर्थन प्राप्त है, जिसके जुल्मो सितम से राज्य आंदोलनकारियों को एक अक्टूबर की रात दो-चार होना पड़ा था। राज्यवासी यह भली भांति समझ चुके हैं कि भले ही ये राजनैतिक दल अलग-अलग दिखाई देते हों, लेकिन वोट की राजनीति में ये सब एक हैं। जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है भले ही वह उत्तराखण्ड राज्य बनाने का श्रेय लेती रही है, लेकिन उसने भी राज्यवासियों की भावनाओं पर जमकर कुठाराघात किया है। पृथक पर्वतीय राज्य की मांग को दरकिनार करते हुए भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखण्ड जैसा एक ऐसा राज्य दे दिया है, जो न पर्वतीय लोगों की भावनाओं के साथ ईमानदारी के साथ न्याय ही कर पाया और न ही तराई के लोगों के साथ। राज्य के अस्तित्व में आने के 12 साल बाद भी आज राज्य के लिए राज्य की भौगोलिक स्थिति से संतुष्ट नहीं है, इसे राज्य का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि 36 विधानसभा सीटों के पर्वतीय क्षेत्रों में होने के बावजूद पहले परीसीमन में पर्वतीय क्षेत्र की लगभग एक दर्जन सीटें कम हो गई। जिस पर राजनैतिक दलों की रहस्यमयी चुप्पी आज भी उत्तराखण्ड वासियों को कचोट रही है। देश के उत्तर पूर्वी राज्यों की तर्ज पर उत्तराखण्ड में परीसीमन जनसंख्या पर न होकर क्षेत्रफल के आधार पर होना चाहिए था, ऐसा राज्यवासी मानते हैं।

माया और मुलायम के साथ गलबहियां करने वाली कांग्रेस को टिहरी लोकसभा क्षेत्र के वासी कितना महत्व दंेगे यह तो भविष्य पर निर्भर है, लेकिन राज्य में बाहरी प्रत्याशियों को थोपे जाने को लेकर पूर्व सांसद व स्वतंत्रता संग्राम सैनानी परिपूर्णानन्द पैन्यूली खासे आहात हैं। उन्होंने टिहरी संसदीय क्षेत्र की जनता से चुनाव बहिष्कार की अपील की है। उन्होंने अपनी अपील में कहा कि आज टिहरी, उत्तरकाशी की जो हालत है, उसे देखकर मेरा मन बगावत कर रहा है। टिहरी लोकसभा सीट जिसका कार्यालय नई टिहरी में था उसे वहां से हटाकर देहरादून ला दिया गया है, यह छोटी बात नहीं है। उन्होंने इसे टिहरी, उत्तरकाशी का नामोनिशां खत्म करने की साजिश करार दिया है। उनका कहना है कि आज दफ्तर बदला है कल इस संसदीय सीट का नाम टिहरी से हटाकर देहरादून संसदीय सीट कर दिया जाएगा। उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि उत्तरकाशी और रूद्रप्रयाग के हजारों लोग आपदा से पीड़ित हैं, कईयों ने अपने परिजन खो दिए हैं, कईयों के घर नेस्तनाबूद हो गए हैं, लेकिन सरकार को चुनाव से फुरसत नहीं। उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि पिछले 62 साल से हम लोग वोट ही तो रहे हैं, क्या हमारे वोट देने से कुछ हुआ। उन्होंने इस बार वोट न देकर भ्रष्ट राजनीति और खानदान वाद के खिलाफ चुनाव बहिष्कार की अपील की है। ऐसे में राज्य में राज्य आंदोलनकारियों और राज्यवासियों की मनोदशा साफ झलकती है कि वह राज्य सरकारों से कितने नाखुश हैं।


(राजेन्द्र जोशी)

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