मिथिला राज्य की माँग कितना सार्थक ? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


गुरुवार, 4 अक्टूबर 2012

मिथिला राज्य की माँग कितना सार्थक ?


मेरी सदा से आदत रही है मैं किसी को बिना पूछे सलाह नहीं देती, न ही अपनी भावनाओं को लोगों के ऊपर थोपने की कोशिश करती हूँ। सुनती सबकी हूँ पर उसे अमल में लाऊँ यह जरूरी नहीं है। मेरी आत्मा जिस काम को करने की गवाही नहीं देती वह कतई नहीं करती हूँ। जिसके परिणाम स्वरुप मुझको सलाह देने वाले बहुत से लोग रहते हैं और उन्हें लगता है मैं उनके उपदेशों से प्रभावित हो जाऊँगी। कहते हैं, परोपदेश देना बहुत आसान होता है परन्तु जब खुद करने की बारी आती है तो नजरिया ही बदल जाता है। पर लोगों की बातें सुनने से एक फायदा है, भिन्न भिन्न लोगों के विचार जानने से अभिव्यक्त करना आसान हो जाता है साथ ही आत्म विश्वास भी बढ़ता है।  

एक कहावत है "कोठा चढ़ी चढ़ी देखा सब घर एकहि लेखा" यह बात कुछ हद्द तक सही है।  कमी या खामियां किस मनुष्य में नहीं रहता, परन्तु जो जितना नजदीक होता है उसकी गल्तियाँ उतनी ही जल्दी सामने आ जाती है। यही कारण है कि हम अपने परिवार अपने समाज को ज्यादा अच्छी तरह से जानते हैं। पारिवारिक हो , सामाजिक हो या देश की बातें हो आपस में वैचारिक मतान्तर तो होना मनुष्य मात्र के लिए स्वाभाविक है और होना भी चाहिए। लोगों के भिन्न-भिन्न विचार जब सामने आते हैं तो उनमे कुछ अच्छे  विचार भी होते हैं, पर आजकल मनुष्य के विचार बदल गए हैं। आजकल स्वार्थ सर्वोपरि हो गया है लोगों के लिए देश समाज से ऊपर स्वार्थ हो गया है, हर स्तर पर लोभ और भ्रष्टाचार का बोलबाला है।   

संस्था और न्यास की स्थापना होती है सामाजिक उत्थान के लिए परन्तु यह भी आजकल व्यवसाय का जरिया हो गया है। मैं यह नहीं कहती कि एक भी संस्था या न्यास अच्छे काम नहीं करते, परन्तु वे गिने चुने हैं। आजकल संस्थाओं की कमी नहीं है और हर शहर में बराबर नए नए संस्थाओं की स्थापना होती रहती है। संस्था और न्यास की स्थापना के साथ ही अध्यक्ष पद, कार्यकारिणी में शामिल होने के लिए राजनीति शुरू हो जाती है और एक संस्था में कई गुट हो जाते हैं। वे इनसब में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि उन्हें संस्कृति और सामाजिक कार्यों के लिए फुर्सत ही कहाँ मिलती है, उसके बावजूद जब उन्हें यह महसूस होने लगता कि वहाँ उनका दाल नहीं गलने वाला तो एक नई संस्था की स्थापना कर लेते हैं।  काम के नामपर साल में एक दो सांस्कृतिक कार्यक्रम कर लेते हैं और समझते हैं समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं।  कार्यक्रम में बड़ी बड़ी हस्तियों, नेताओं को बुला अपनी वाह वाही लूट लेते हैं और साल भर गुटबाजी और यह साबित करने में बिता देते हैं कि उनके कायकाल में कार्यक्रम ज्यादा सफल रहा। मानती हूँ कार्यक्रम हमारी संस्कृति का आईना होता है परन्तु वह स्थानीय कलाकारों से भी किया जा सकता है। यह कैसा उत्थान, मांग कर कोष इकट्ठा किया जाए और उसे मात्र कार्यक्रम में खर्च कर दी जाए ? हमारे शहर गाँव या समाज में कई ऐसे बच्चे हैं जो पैसे के अभाव में पढाई पूरा नहीं का पाते, अनेको बच्चे ऐसे हैं जिन्हें भर पेट खाने को नहीं मिलता , दवाई के अभाव में कितनो की जान चली जाती है। कहने को हम  महान हस्ती का जन्मदिवस माना रहे हैं.....क्या भूखों को तृप्त कर महान हस्ती को श्रद्धांजलि नहीं दिया जा सकता ? ऐसे कई सामाजिक कार्य हैं जिन्हें किया जा सकता है और यह उस महान हस्ती को सच्ची श्रधांजलि होगी। समाज के उत्थान की इच्छा हो तो उसके लिए संस्था की नहीं भावना की जरूरत होती है। 

नित्य नए - नए राज्यों की मांग हो रही है......उनमे मिथिला राज्य की माँग भी है। मुझसे भी बराबर लोग पूछते रहते हैं मिथिला राज्य पर आपकी क्या राय है। मेरा उनसे एक ही प्रश्न होता है.......क्या मिथिला राज्य बन जाने से मिथिला का उद्धार हो जायेगा ? यह सुनते हो लोगों को होता है मैं मिथिला और मैथिली की शुभचिंतक नहीं हूँ।  ऐसा लगता है या यूं कहूँ कि लोगों की धारण है कि मिथिला की तरक्की रूकी हुई है और राज्य बन जाने से मिथिलांचल का उद्धार हो जाएगा चहु दिशाओं में तरक्की होने लगेगी। एक व्यक्ति जो अपने आप को मिथिला के लिए समर्पित कहते हैं उन्होंने बातों ही बातों में  कहा " जो प्रेम मिथिला के लिए एक मैथिल को होगा वह दूसरे को नहीं।  मैंने उनसे प्रश्न किया " क्या अबतक बिहार में मिथिला के मुख्यमंत्री नहीं हुए ? उनका जवाब था अबतक जो भी मुख्यमंत्री हुए वे मैथिल थे मिथिला के नहीं।  अलग राज्य बनने के बाद जो भी मुख्यमंत्री होंगे वे मिथिला के होंगे और सिर्फ मिथिला के बारे में ही सोचेंगे। 

मैं एक बात नहीं समझ पाती लोगों की संकीर्ण मानसिकता को कैसे कोई बदला सकता है ?  आज वह दरभंगा का है, वह सहरसा का है.........वह मुंगेर का है........क्या अलग राज्य हो जाने के बाद लोगों के मन में इस तरह के भेद भाव नहीं आएंगे ? फिर पूरे राज्य का विकास किस प्रकार होगा ? क्या मैथिल होते हुए भी सम्पूर्ण मिथिला के विकास की लोग सोच पाएंगे ?

छोटे छोटे राज्य के पक्ष में मैं भी हूँ लेकिन बिना राज्य के बंटवारा के भी राज्य हित समाज हित के कार्य किये जा सकते हैं, यदि इच्छा हो तो। वैसे लोग अपनी स्वार्थ सिद्धि में लगे रहते हैं यह बात अलग है। क्या बिना राज्य के बंटवारा के अच्छे स्कूल, कॉलेज, कारखानों के लिए प्रयास नहीं किया जा सकता है ? मात्र मिथिला राज्य अलग हो जाने से मिथिला का उद्धार हो जाएगा ? अलग मिथिला राज्य के लिए आन्दोलन में कई लोग सक्रीय हैं और अपने आपको मिथिला की संस्कृति से प्रेम करने वाले एवम शुभचिंतक कहते हैं......उनसे मेरा एक ही प्रश्न है..........वे अपनी आत्मा से पूछें क्या वे सच में मात्र राज्य और समाज की भलाई के विषय में सोचते हैं क्या उनमे लेस मात्र भी स्वार्थ की भावना नहीं है? 

कई  अलग राज्य बने लेकिन उनमे से ज्यादा की स्थिति पहले से  भी ख़राब हो गई है, झारखण्ड उसका उदाहरण है।  खनिज संपदा से संपन्न राज्य की स्थिति बिहार से अलग होने के बाद और भी ख़राब हो गई है। इस राज्य में ११ साल के भीतर ८ मुख्यमंत्री बन चुके हैं। लोगों को उम्मीद थी १० साल के भीतर इस राज्य की उन्नति हो जाएगी, यहाँ की आदिवासियों को उनका हक़ मिलेगा। उन्नति हुई है..........लेकिन राज्य की या आदिवासियों की नहीं बल्कि नेताओं की। चोर, उचक्का, खूनी आज नेता बन गए हैं खुलकर खूब ऐश कर रहे हैं,  बड़ी बड़ी गाड़ियों में घूम रहे हैं। उन्हें राज्य की उन्नति या आदिवासियों से क्या मतलब.........देश और जनता की संपत्ति का खुलकर खूब उपभोग कर रहे हैं क्या यह उन्नति नहीं है ?



---कुसुम ठाकुर---
प्रधान सम्पादक 
आर्यावर्त 

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

आप सौ फीसदी मिथिला बिरोधी हैं

naresh sharma ने कहा…

जब झारखंड,उतराखंड और रायगढ बना तब आप कहाँ थे ? तेलंगाना के लोगों को आप क्यों नही समझाते ? कुछ लोगों की वजह से ही मिथिला के प्राथमिक विद्यालय में मातृभाषा मैथिली की पढाई नही होती है । मिथिला के ग्रामीण बच्चों को 3-4 साल हिन्दी य़ा अंग्रेजी सिखने में ही लग जाती है और बच्चे पढ़ाई में कमजोर हो जाते हैं । दुसरे राज्यों के लोग अपनी भाषा में शिक्षा ग्रहण करते हैं तो हम मिथिलावासी क्यों वंचित हैं ? संविधान के अष्टम अनुसुची में शामिल होने के बाद भी बिहार सरकार हमारी भाषा को स्कुलों में पढाती क्यों नहीं हैं ? ये सब मिथिलांचल राज्य के बिना संभव नही है । आप खुद ही छोटे राज्यों से सहमत हैं फिर आप खुद फैसला करें कि आपका ये लेख कितना उचित है ?

naresh sharma ने कहा…

जब झारखंड,उतराखंड और रायगढ बना तब आप कहाँ थे ? तेलंगाना के लोगों को आप क्यों नही समझाते ? कुछ लोगों की वजह से ही मिथिला के प्राथमिक विद्यालय में मातृभाषा मैथिली की पढाई नही होती है । मिथिला के ग्रामीण बच्चों को 3-4 साल हिन्दी य़ा अंग्रेजी सिखने में ही लग जाती है और बच्चे पढ़ाई में कमजोर हो जाते हैं । दुसरे राज्यों के लोग अपनी भाषा में शिक्षा ग्रहण करते हैं तो हम मिथिलावासी क्यों वंचित हैं ? संविधान के अष्टम अनुसुची में शामिल होने के बाद भी बिहार सरकार हमारी भाषा को स्कुलों में पढाती क्यों नहीं हैं ? ये सब मिथिलांचल राज्य के बिना संभव नही है । आप खुद ही छोटे राज्यों से सहमत हैं फिर आप खुद फैसला करें कि आपका ये लेख कितना उचित है ?

बेनामी ने कहा…

ye mang pata nahi kiw ho raha hai kis liye ho raha hai ye samjh se pare hai koi is liye naraj hai ki wahan par pahli class se mithla nahi padhaya jata hai agar unko pata ho ki bihar ke baki schoolo me bhi padhai hindi me hota hai jo baki ke jile hai
ek to jharkhand ko alag kar diya fie mithla rajy ki mang kar rahe hai mujhe pata nahi unki majburi kya lekin isse humare rajy ke vikash ki gati par asar padega