घोटालों की जांच के नाम पर खानापूर्ति - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 20 मार्च 2013

घोटालों की जांच के नाम पर खानापूर्ति


आखिर सीबीआई जांच से क्यों घबरा रही है सरकार!


देहरादून, 20 मार्च। उत्तराखण्ड राज्य के साढ़े बारह साल के इतिहास में यहां की भाजपा और कांग्रेस की सरकारों पर लगातार घोटाले के आरोप लगते आए हैं, वहीं इन घोटालों पर जंाच के नाम पर केवल खानापूर्ति ही होती नजर आ रही है और इन घोटालों में लिप्त किसी भी नेता या अधिकारी के खिलाफ आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। वहीं प्रदेश में चाहे भाजपा की सरकार रही हो अथवा कांग्रेस की दोनों ही दलों की सरकारों ने भ्रष्ट नौकरशाहों को इस बार भाटी आयोग की जांच रिपोर्ट की तरह या तो क्लीन चिट दी है अथवा उन पर कार्यवाही करने ही हिम्मत नहीं दिखाई है। 

ताजा मामला सिडकुल में जमीनों में हुए घोटालों का है, जिसके बाद कांग्रेस सरकार पर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं, जिसकी गूंज विपक्षी दल भाजपा द्वारा सड़क से सदन के भीतर के साथ ही राजभवन तक पहुंचाई गई और मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग भी की। वहीं अब सबकी निगाहें कांग्रेस पर टिकी है वह इस मुद्दे पर कड़ा रूख अख्तियार कर जांच कराती है या भाजपा के साथ गोल-मोल करके मामले को दबाने की कोशिश करती है, फिलहाल यह घोटाला लगातार प्रदेश की राजनीतिक सुर्खियां बटोरता नजर आ रहा है। सबसे हास्यास्पद बात तो यह है कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और कांग्रेस का ही मण्डी परिषद का अध्यक्ष व विधायक विपक्षी दल के नेताओं पर एफ.आई.आर. कराने की मांग को लेकर विधानमण्डप के गेट पर धरना दे रहा है।

यह पहला मौका नहीं है जब कांग्रेस सरकार पर घोटाले का आरोप लगा हो इससे पहले भी 2001 के विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में सरकार बनाने वाली कांग्रेस सरकार पर 56 बड़े घोटाले करने का आरोप लगे थे। 2007 के विधानसभा चुनाव में सत्ता पर वापस लौटी भाजपा ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने इन घोटालों की जांच के लिए वर्मा आयोग का गठन किया था, लेकिन यह आयोग पांच सालों तक सिर्फ सरकार के धन की बर्बादी करने में लगा रहा। अब फिर 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा, निर्दलीय व उक्रांद विधायकों के समर्थन से प्रदेश में कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई और वर्मा आयोग की जांच जो की शुरू ही नहीं हुई थी अब बंद हो गई है। लेकिन पिछले एक साल से प्रदेश में काबिज विजय बहुगुणा सरकार में वर्तमान में सिडकुल में हुए बड़े घोटाले को लेकर भाजपा ने सरकार की सड़क से सदन तक घेराबंदी कर रखी है, जिसके बाद कांग्रेस के दो मंत्री इस मामले में मुख्यमंत्री का बचाव करते नजर आए। वहीं इन घोटालों की सीबीआई जांच की मांग को लेकर भाजपा ने राज्यपाल का दरवाजा खटखटाया, जिससे यह संकेत मिलने लगे हैं कि प्रदेश सरकार की मुश्किलें बढ़ने लगी हैं। विपक्ष लगातार पंतनगर और हरिद्वार में सिडकुल की जमीनों की बिक्री को लेकर सरकार पर हमला बोल रहा है। सरकार दावे कर रही है कि जमीनों की बिक्री की प्रक्रिया पारदर्शी थी, जिसके लिए निविदाएं आमंत्रित की गई थी, लेकिन भाजपा ने कांग्रेस सरकार के इन तर्कों को मानने से साफ इंकार कर दिया है। भाजपा ने आरोप लगाया है कि निविदाएं आमंत्रित करने के बावजूद मात्र गिनी चुनी कंपनियों के सामने आने और पारदर्शिता के लिहाज से इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के बजाय चुनिन्दा कम्पनियों को ही बेची गयी। इतना ही नहीं इस मामले में भाजपा का आरोप है कि जिन कंपनियों ने निविदा प्रक्रिया में भाग लिया, उन तीनों कंपनियों के निदेशक मण्डल लगभग एक ही जैसे हैं। ऐसे में सरकार की परदर्शिता पर सवालिया निशान लगना लाजमी है। 

वहीं अब देखना यह होगा कि भाजपा ने सरकार की जिस तरह से सिडकुल की जमीनों में हुए बड़े घोटाले को लेकर घेराबंदी कर रखी है उससे कांग्रेस सरकार कैसे उभरेगी। वहीं बीते दिन कृषि एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री डा. हरक सिंह रावत ने भाजपा को डराने के लिए भाटी आयोग द्वारा टीडीसी में हुए घोटाले पर पुलिस में एफआईआर करने का ऐलान किया था। हालांकि भाजपा कैबिनेट मंत्री की इस हुंकार से डरे हुए नजर नहीं आए और भाजपा ने पलटवार करते हुए टीडीसी के चेयरमैन पद तैनात हरक सिंह रावत को ही हटाने की मांग कर डाली।

 सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि सिडकुल की जमीनों में घोटाला नहीं हुआ है तो सरकार सीबीआई जांच कराने से आखिर क्यों कदम पीछे खींच रही है। जहां तक इस मुद्दे का राजनीतिकरण का सवाल है, भाजपा सदन में कह चुकी है कि सरकार भाटी आयोग और सिडकुल जमीनों के मामले की सीबीआई जांच कराए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके, लेकिन विपक्ष के जांच के प्रस्ताव पर सरकार द्वारा किसी भी तरह की जांच से इंकार किए जाने से यह मामला स्वतः ही विवादित नजर आ रहा है कि आखिर सरकार सीबीआई जांच कराने से क्यों डर रही है।




(राजेन्द्र जोशी)

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