निगाह घर की तरफ और कदम सफर की तरफ: फैजुल हसन फैज - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 3 अप्रैल 2013

निगाह घर की तरफ और कदम सफर की तरफ: फैजुल हसन फैज


निंद आये आँखों में कैसे, जितना सोना है सो चुका हूं मैं: डाॅ. मुस्लिम


नरकटियागंज, इलाके में उर्दू अदब व जुबान की जिन्दा मिशाल फैजुल हसन फैज के नरकटियागंज आगमन पर शहर के शिवगंज स्थित आदर्श विद्यालय कैम्पस मंे एक शेरी निशस्त का आयोजन किया गया। फैजुल हसन फैज ने 1982 में अदबी संस्था “बज्म ए कहकशाँ” की स्थापना की थी। बज्म ए कहकशाँ के सेक्रेटरी जफ़र कासिमी ने एक शाम फैज साहब के नाम से काब्य बैठक का आयोजन किया, इसकेे पूर्व उर्दू के विकास पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन भी किया गया। जिसकी अध्यक्षता फैजुल हसन फैज ने किया। उर्दू का फरोग विषय पर आयोजित गोष्ठी में बोलते हुए वक्ताओ ने उर्दू के विकास में बाधक उर्दूदाँ को बताया और कहा कि उर्दू आम लोगो की भाषा है, इसे खास लोगो ने अपनी भाषा बताकर और खास जगहो पर सिमट कर रख दिया है जिससे इसके विकास की धार कुन्द हो गयी है। नुर आलम ने कहा कि उर्दू का फरोग मीटिंग व काॅन्फ्रेन्स करने से नहीं होगा। इसे मजहब व मस्जिद की चाहरदिवारी से बाहर निकालने पर ही उर्दू का विकास संभव है। इसके लिए उर्दू के चाहने वालों को प्रश्रय देने की जरूरत है। गोष्ठी में डाॅ. मुस्लिम शहजाद, हकीम महम्मद अख्तर हुसैन घायल, महम्मद मुस्तुफा, डाॅ.नौशाद आलम, जफ़र कासिमी व अन्य ने हिस्सा लिया।

उसके बाद शेरी निशस्त”एक शाम फैजुल हसन फैज के नाम“ का आगाज नाते पाक से किया गया। मोतिहारी से चलकर आए बुजुर्ग शायर जफ़र मुजीबी ने जख्म अपनो ने दिया, उसको छुपाये रखिए, दर्द अपना है इसे दिल में दबाए रखिए। लोग हर बात का अफसाना बना देते है, यूँ नजरे मेरी नजरों से मिलाए रखिए। बेवफाओं से भी अब वफा किजीए, जालिमों से भी हँसकर मिला किजीए। दिल से अपनी खलीस न रखा किजीए,दोस्ती का भी हक अदा किजीए पढकर जैसे सुनाया मानो बज्म में रौनक आ गयी। स्थानीय बुजुर्ग शायर डाॅ.मुस्लिम शहजाद नें “बे परो बाल हो चुका हूँ मैं, कभी बर्बाद हो चुुका हुुँ मैं, निंद आँखों में आए कैसे, जितना सोना है सो चुका हुँ मै, अपने होने न होने का शहजाद सारा एहसास खो चुका हुँ मै”। राजकिशोर यादव“इन्सान होकर इंसानों से कैसे नफरत करूंगा, हर आदमी के अन्दर खुदा है, कैसे खुदा को डंँसूगां”। मशहूर शायर फैजुल हसन फैज ने कहा कि उर्दू जबान नहीं तहजीब है, इसे संजोकर रखना पड़ेगा। अपने तीस वर्ष बाद नरकटियागंज लौटने पर श्री फैज ने कहा कि रामायण में श्री राम को 12 वर्ष का वनवास मिला था मुझे 30 वर्षाें का वनवास मिला है। मुझे भी लम्हे हिजरत ने कर दिया तक्फीस, कि निगाहे घर की तरफ और कदम सफर की तरफ।....................चाहतो को नित्य नये अंदाज से देखा करो...........पूछा था फैज ने बेचारगी का राज  जैसे शेर पढ कर उन्होने अपनी जिंदगी के अनछुए पहलुओं से नरकटियागंज के लोगों को अवगत कराया। 

शायर अख्तर हुसैन घायल की शेर ”दमे रूखसत तेरी आँखों से आँसू निकल जाना निगाहों ने मेरी देखा है पत्थर का पिघल जाना“ बेतिया के शायर प्रो. कमरूज्जमा कमर की गजल इनकी हरकत से बिखर जाएगा घर लगता है, मुझको गैरो से नहीं अपनोें से डर लगता है। हरिद्वार मस्ताना ने हास्य कविता पति मोबाईल, पत्नी सीम कार्ड, दोनो मिले तो हुए रिचार्ज, बेटा इनकमींग तो बेटी आउटगोईंग कुछ नही ंतो मिस काॅल और जफर कासिमी की मैं हुँ माॅडर्न टीचर अपने वतन का, मिले मुझे सम्मान भारत रतन का ने लोगो को गुदगुदाया और सोचने पर विवश कर दिया कि ऐसे हालात में भारत की शिक्षा का क्या हश्र होगां।  धन्यवाद ज्ञापन बज्म ए कहकशाँ के अध्यक्ष डाॅ.नौशाद आलम ने किया, जबकि संचालय प्रो. कमरूज्ज्मा कमर ने किया। कार्यक्रम मंे तिस्ना एजाज, जफर कासिमी, राजकिशोर यादव जैसे शायरों ने अपने कलाम पेश किया, डाॅ. आफताब आलम खाँ, डाॅ.फैसल सिद्धिकी, एम.एच.दिलशाद, म.मुस्तफा, नूर आलम और जफर कासिमी की भूमिका सराहनीय रही।



(अवधेश कुमार शर्मा) 

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