स्थानीय लोगों की उपेक्षा कर रही सरकार!
देहरादून, 26 जून। तीर्थयात्रियों के लिए चल रहा आपदा राहत का कार्य लगभग अंतिम चरण पर है, लेकिन सरकार को अभी तक यह नहीं मालूम कि उसके प्रदेश के कितने गांव इस ज़लजले में तबाह हो गए और उसके अपने प्रदेश के कितने लोगों को इस भीषण आपदा ने लील लिया है। आपदा के 11 दिन बीतने को हैं, अतिथि देवो भवः कि परम्पराओं का निर्वहन करते हुए राज्य के आपदा प्रभावित सैकड़ों गांवों ने तीर्थयात्रियों को राहत पहुंचाने के लिए जो कुछ किया वह काबिले तारीफ है, वहीं आपदा ग्रस्त इलाकों में लगी सेना के जज्बे को पूरा देश सलाम कर रहा है। आपदा आई और वह अपने साथ हजारों लोगों को जहां बहा कर ले गई, वहीं हजारों लोगों को वह मझधार में छोड़ भी गई। किसी का पिता अपने बच्चों से जुदा हो गया तो किसी की मां, किसी का बच्चा को किसी का पति और किसी की पत्नी और कईयों ने तो अपने भाई-बहन और दोस्तों को खो दिया। पहाड़ों से बहकर शव मैदान की ओर आ रहे हैं, यहां ये शव इतनी बुरी तरह क्षत-विक्षित हो चुके हैं कि उनकी पहचान करना मुश्किल है। सबसे बड़ा सवाल अब यह खड़ा हो गया है कि इन शवों में यह कैसे पहचाना जाए कि कौन स्थानीय है और कौन यात्री। यात्रियों की पहचान के लिए प्रदेश सरकार द्वारा शवों को डीएनए सैंपल लेने की व्यवस्था की गई है। बढ़ते शवों की संख्या देखते हुए सामुहिक दाह संस्कार की योजना भी सरकार की है, क्योंकि सर्वाधिक प्रभावित मदांकिनी घाटी में शवों में सड़ने और दुर्दशा के बाद महामारी फैलने का खतरा पैदा हो गया है।
पर्वतीय क्षेत्र के सैकड़ों गांव इस प्रकृति के प्रकोप के शिकार हुए हैं और वहां के निवासी भी। प्रदेश सरकार के पास अभी तक कोई भी ऐसी रिपोर्ट नहीं है, जिससे यह पता चल सके कि कितने स्थानीय लोग इस विनाशलीला की भेंट चढ़ गए और कितने गांव तबाह हो गए। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि प्रदेश सरकार के पास तमाम स्त्रोत और कर्मचारी और अधिकारियों का लावलश्कर होने के बावजूद भी वह इन 11 दिनों में स्थानीय लोगों की सुध नहीं ले पाई है। केदारनाथ विधायक शैला रानी रावत ने तो प्रशासन और सरकार के रवैये पर ही सवालिया निशान लगाते हुए अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए बदइंतजामी के आरोप सरकार पर लगाए। वहीं केदारनाथ क्षेत्र की पूर्व विधायक आशा नौटियाल ने भी कहा कि केदारनाथपुरी में सैकड़ों ब्राहम्ण परिवार रहते थे, जिनका कहीं अता-पता नहीं है। लमगोंडी, बामसू, मस्ता, सीतापुर आदि गांवों के उन लोगों का भी कोई पता नहीं है जो केदारनाथ में रहकर पण्डिताई का कार्य करते थे। वहीं उनका कहना है कि सरकार मृतकों की संख्या छिपा रही है। इसी बात का भाजपा नेता व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने भी समर्थन किया है। उनका कहना है कि प्रदेश सरकार ने स्थानीय लोगों को भगवान भरोसे छोड़ दिया है, जबकि चार धाम यात्रा का दारोमदार इन्हीं स्थानीय लोगों के कंधों पर था। उन्होंने कहा केदारनाथ में लगभग 15 हजार से ज्यादा काल कलवित हुए हैं। वहीं रामबाड़ा में लगभग पांच हजार से ज्यादा लोग और जंगलचट्टी में तीन हजार से ज्यादा लोग सहित गौरीकुण्ड और सौनप्रयाग में हजारों लोग इस विनाशलीला की भेंट चढ़ गए, लेकिन सरकार का आंकड़ा अभी भी एक हजार से उपर नहीं पहुंच पाया है। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि आखिर सरकार मृतकों की संख्या छिपाकर क्या जताना चाहती है। वहीं भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने भी प्रदेश सरकार पर स्थानीय लोगों की उपेक्षा का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि क्षेत्र के अधिकांश गांवों का संपर्क टूट चुका है, गांवों के लोगों के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। ऐसे में सरकार को सबसे पहले इन गांवों की ओर रूख कर गांवों के ग्रामीणों को भोजन उपलब्ध कराना चाहिए। ठीक इसी तरह बद्रीनाथ से कांग्रेस विधायक राजेन्द्र भंडारी ने भी अपनी ही सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि भ्यूडार घाटी में लगभग छहः गांव बुरी तरह तबाह हो चुके हैं, इस क्षेत्र के ग्रामीणों की रोजी-रोटी भी हेमकुंड यात्रा से जुड़ी हुई थी, लेकिन प्रदेश सरकार के पास उनका कोई रिकार्ड नहीं है। बहरहाल राज्य सरकार के पास तीर्थयात्रियों को बचाने के बाद सबसे बड़ा संकट स्थानीय लोगों की शिनाख्त और जलजले में गायब हुए लोगों की जानकारी के साथ ही उन गांवों का पुनर्वास का मुद्दा सबसे ज्यादा गरम होने वाला है, जिन गांवों के लोग अथवा जो गांव बुरी तरह खतरे की जद में है। प्रदेश सरकार का अभी रूख इस ओर दिखाई नहीं दे रहा है और वह स्थानीय लोगों की बुरी तरह उपेक्षा करने पर उतारू प्रतीत होती है।
उत्तराखण्ड त्रासदी का आखिर कौन है जिम्मेदार!
देहरादून, 26 जून, । उत्तराखण्ड में आयी त्रासदी ने हजारों का जीवन लील लिया है। सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक ताना-बाना बुरी तरह से ध्वस्त हो गया है। गंगोत्री-यमुनोत्री, बद्रीनाथ-केदारनाथ की यात्रा जब अपने चरम पर थी तब लाखों देषी-विदेषी यात्रियों से देवभूमि ठसाठस भरी थी। एकाएक ऐसा जलजला आया कि पूरा देष इस हादसे से हिल गया। आधुनिक दुनिया और विज्ञान के युग के दौर में प्रमाणित हो गया कि यहां सब कुछ भगवान भरोसे था। 15 जून को षुरू हुई अतिवृश्टि ने 17 जून तक सब कुछ बदल कर रख दिया। मानसून एडवांस था और मौसम विभाग ने उत्तराखण्ड में भारी बारिष की सम्भावनाओं की भविश्यवाणी कर दी थी। इस भविश्यवाणी से सजग हो राज्य सरकार ने कोई सुरक्षा उपाय नही किये और न ही यात्रियों व स्थानीय जनता को सुरक्षित स्थानों में जाने के लिए आगाह किया। केदारनाथ मंदिर के उपर पर्वत में जो अतिवृश्टि हुई उसे जरूर प्राकृतिक आपदा कहा जा सकता है। लेकिन बाकी उत्तराखण्ड में हुई तबाही पूर्णतया मानवजनित व जनविरोधी विकास की देन है। सन् 2004 में केन्द्र सरकार ने उत्तराखण्ड में मसूरी और नैनीताल में मौसम का पूर्वानुमान लगाने हेतु 2 रडार स्थापित करने हेतु 30 करोड़ रूपया राज्य सरकार को दिया था। लेकिन पिछले 9 साल में देहरादून में सत्तासीन नारायणदत्त तिवारी, भुवन चन्द्र खण्डुड़ी, रमेष पोखरियाल, विजय बहुगुणा की सरकार रडार के लिए जमीन तक मुहैया नहीं करा सकी। आज जब कि मौसम का सटीक अनुमान लगाने के लिए विष्वसनीय डोपलर प्रणाली मौजूद है। उत्तराखण्ड में इस प्रणाली के बारे में सरकार के एक काबीना मंत्री सुरेन्द्र सिंह नेगी ने एक प्रसिद्ध टीवी चैनल पर अपनी अनभिज्ञता जतायी। समझा जा सकता है कि प्रदेष सरकार की अज्ञानता व पिछड़ापन कितना षर्मनाक है। 50 करोड़ रूपये खर्च कर यदि इस उपकरण को स्थापित किया गया होता तो मौजूदा विनाषलीला से हजारों जान बचायी जा सकती थी। हजारों के जीवन को संकट में डालने से रोका जा सकता था। जो सरकारें उपलब्ध धन से रडार तक के लिए जमीन मुहैय्या न करा सकी, जिसने आम जनता को भगवान भरोसे छोड़ दिया तथा कॉरपोरेट घरानों व धन्नासेठों की सेवा को अपना धर्म मान लिया- उससे क्या उम्मीद की जा सकती है। पिछले वर्श उत्तरकाषी में जब असीगंगा ने तबाही मचायी थी तो मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने पीड़ितों को भजन करने की सलाह दी थी। इस त्रासदी से कुछ दिन पूर्व हल्दूचौड़ हल्द्वानी में उन्होंने भरी सभा में तंत्र-मंत्र सीख समस्याओं के समाधान की बात कही थी।
इतने बड़े पैमाने पर आयी तबाही के बाद केन्द्र सरकार ने मात्र एक हजार करोड़ रूपया राहत फंड में दिया है। इसे राश्ट्रीय आपदा मानने से इंकार कर दिया है। सेना, वायुसेना, आईटीबीपी व अन्य संस्थाओं के मैदान में उतरने से राहत कार्यक्रम षुरू जरूर हुए हैं। लेकिन जिस पैमाने पर जान-माल का नुकसान हुआ है, इसे नाकाफी कहा जायेगा। सबसे षर्मनाक बात तो यह है कि प्रदेष सरकार के मंत्री, विधायक व छुटभैय्ये नेता उपलब्ध हैलीकॉप्टरों का दुरूपयोग करने से बाज नही आ रहें हैं। यात्रा मार्ग में फंसे यात्रियों और प्रदेष की पीड़ित जनता ने इसका कड़ा विरोध किया है। इसके बावजूद गत 23 जून को देहरादून के सहस्त्रधारा हैलीपैड से राहत सामग्री लेकर जाने वाले हैलीकॉप्टर पर प्रदेष के कृशि मंत्री हरक सिंह रावत दो पत्रकारों को लेकर चढ़ गये। पायलट ने वजन ज्यादा होने की बात कही तो मंत्री ने राहत सामग्री उतारकर वजन कम करवा दिया । यह उदाहरण सरकार की मानसिकता को समझने के लिए काफी है। अभी भी हजारों यात्री विभिन्न मार्गों पर फंसे हैं। कईं बीमारी व भूख व अन्य अभावों से दम तोड़ रहे हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्टाें से पता चल रहा है कि कई यात्रियों के पेट खाली थे। खुले आसमान के नीचे तमाम अभावों के बीच हजारों का जीवन अभी भी संकट में है। जगह-जगह स़ड़ रही लाषों के ढ़ेर और उन पर टूटते जंगली जानवरों को नरभक्षी हो जाने का डर निष्चित है। सड़ती लाषों से महामारी फैलने का डर अलग है। उत्तराखण्ड में अतीत में आयी हुई आपदाओं में सरकारों और नुमाइंदों ने राहत राषि व सामग्री की जो बंदरबाट की है उसे उत्तराखण्ड की जनता आज तक नही भूली है। अबकि बार भी बड़ी त्रासदी के साथ ही एक बड़े घोटाले की सम्भावना से इंकार नही किया जा सकता है। चारधाम यात्रा राज्य की अर्थव्यवस्था का एक खास पहलू रहा है। स्थानीय लोगों की आमदनी में भी इसका खासा योगदान रहता है। लेकिन इस बार जो मार पड़ी है उससे उबर पाने में काफी समय लगेगा। केदारनाथ धाम की यात्रा सुचारू रूप से षुरू होने में वर्शों लग सकते हैं।
उत्तराखण्ड में आयी इस त्रासदी ने विकास की रणनीति की बहस को राश्ट्रीय पटल पर ला दिया है। उत्तराखण्ड की जल विद्युत परियोजनाएं, भीशण विस्फोटों द्वारा बनायी जा रही सड़कों, बड़े पैमाने पर हो रहा खनन , नदी किनारे किये गये अवैध निर्माणों और पर्वतीय क्षेत्र में बन रहे अभयारण्यों पर अब जोरदार ढंग से सवालिया निषान लगने लगे हैं। यद्यपि यह सवाल पहले भी उठते रहे हैं और जोरदार विरोध भी होता रहा है। लेकिन अबकि बार उत्तराखण्ड के विकास पर हो रही राश्ट्रीय बहस उत्तराखण्ड में विकास की दिषा पर जनगोलबंदी को बड़ा आयाम दे सकती है। उत्तराखण्ड राज्य निर्माण की लड़ाई में जल-जंगल-जमीन और बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन केन्द्रीय विशय थे। लेकिन राज्य बनने के बाद देहरादून बैठने वाली सरकारों की कार्यप्रणाली ने जल-जंगल-जमीन को आम जनता से दूर कर दिया है। इन संसाधनों पर लूटेरे वर्ग की पकड़़ और मजबूत हुई है। कांग्रेस-भाजपा की सरकार ने लूट-खसोट की राजनीति को परवान चढ़ाते हुए माफिया राज को इतना मजबूत कर दिया है कि आम आदमी संत्रास में जीने या पलायन के लिए मजबूर हो गया है। विकासमान मध्य हिमालय के इस क्षेत्र के भूगर्भीय अध्ययन के सबसे विष्वसनीय भूगर्भ षास्त्री खड़ग सिंह वल्दिया ने उत्तराखण्ड में समय समय पर आयी आपदाओं के बाद अपने सुझाव दिये हैं। लेकिन सरकारें कानों में रूई डालकर इस क्षेत्र की बर्बादी पर आमादा रही हैं। अभी आयी आपदा के बाद जो डा0 वल्दिया ने कहा है कि भविश्य के लिए उसे गाइडलाइन मान कर गम्भीरता से विचार करना जरूरी है। ऐतिहासिक रूप से देखें तो अंग्रेजों ने पर्वतीय क्षेत्र के जंगलों का बड़े पैमाने पर व्यवसायिक दोहन किया और बाद में आजाद देष की सरकारों ने उसी परिपाटी को जारी रखा। सन् 1960 में पर्वतीय क्षेत्र के चीड़ के जंगलों को 40 पैसा कुन्टल के हिसाब से सहारनपुर के बाजुरिया की पेपर मिल से अनुबंध किया गया था तो तत्कालीन उत्तर प्रदेष की विधानसभा में उत्तराखण्ड के सभी विधायकों ने इसका अनुमोदन किया था। सन् 1980 में छात्र युवाओं के जबरदस्त विरोध के कारण इस समझौते का नवीनीकरण नही हो सका था। लेकिन सरकारों के मानसिक दिवालियापन के चलते सड़कों, जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण में निर्मम व अवैज्ञानिक तरीके से अबाध गति से जंगलों का दोहन हुआ है। इसने पहाड़ों में होने वाले लैंड स्लाइड की घटनाओं की तीव्रता को कई गुना बढ़ा दिया है।
विकास का ढोल पीटने वाले भाजपा-कांग्रेस के लोग अपने विकास के तर्क को चीन के पर्वतीय क्षेत्र में चीन द्वारा पंहुचाई गई सड़कों व रेलमार्ग को राश्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़े खतरे की तरह पेष करते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि चीन कि पीपुल्स आर्मी ने वहां तबाही के लिए मषहुर रही हव्ांग हो नदी के किनारे युद्ध स्तर पर वृक्ष लगाकर पाट दिये। जिससे वहां बराबर हो रही तबाही पर विराम लगा। चीन ने अवष्य ही हिमालयी क्षेत्रों में सड़कों, रेलमार्ग का निर्माण किया है और आधुनिक खेती करके दिखायी है। इसका मुख्य कारण उनके सोच में आम जनता की भलाई और वैज्ञानिक दृश्टिकोण रहा है। अपने देष के षासकवर्ग ने उत्तराखण्ड में अंग्रेजों के विकास के औपनिवेषिक नजरिये को पल्लवित करने का काम किया है। नतीजा सामने है- विनाष और पलायन। राजा बहुगुणा केंद्रीय कमेटी सदस्य भाकपा (माले) ने कहा 25 जून को दिए एक समाचार पत्र को साक्षात्कार में प्रदेष के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने प्रदेश में आयी आपदा को पूर्णतया प्राकृतिक बताया है। यह बयान सच्चाई से मुंह मोड़ने वाला है। सच्चाई यह है कि बद्रीनाथ के गोविंदघाट इलाके में जो तबाही आयी है, उसका मुख्य कारण लामबगड़ में जेपी कम्पनी की विश्णुप्रयाग के लिए बनी जल विद्युत परियोजना के बैराज का पूर्णतया ध्वस्त हो जाना है। साथ ही उत्तरकाषी की मुख्य बर्बादी का कारण पिछले वर्श असीगंगा पर बन रही जल विद्युत परियोजना से आयी तबाही का ही विस्तार है । श्रीनगर में हुई तबाही के लिए जीवीके कम्पनी की जल विद्युत परियोजना पूर्णतया जिम्मेदार है। इसके अलावा पिथौरागढ़ जिले व अन्य स्थानों पर जन-विरोधी विकास ने ही पलटवार किया है। इन तथ्यों से प्रदेष सरकार कितना ही मुंह मोड़े स्थानीय जनता उ से छोड़ने वाली नही है। 3 वर्श पहले सीएजी ने भी जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण पर अपनी आपत्ति जाहिर की थी। जिस पर राज्य सरकार ने कोई गौर नही किया। उत्तराखण्ड में बन रही जल विद्युत परियोजनाओं, बड़े पैमाने पर हो रहे खनन, नदियों के किनारे हुए अवैध निर्माण और विस्फोटों के दम पर बनी सड़कों और उनसे निकलने वाले मलवे का नदियों में डम्प किया जाना इस तबाही का एक केन्द्रिय कारक है।
यह एक तथ्य है कि हिमालय क्षेत्र की नदियों का आयतन गल रही बर्फ से पहले ही अधिक था और एडवांस में आये मानसून की अतिवृश्टि ने नदियों के आयतन को बर्फ को और बड़े पैमाने पर गलाते हुए बढ़ा दिया था। अपने तर्काें पर पैबंद लगाने के लिए प्रदेष सरकार कह रही है कि टिहरी बांध की वजह से बड़ी तबाही होने से बच गयी। छोटी परियोजनाओं से मौजूदा त्रासदी की भूमिका अबकी बार आयी तबाही से स्पश्ट हो चुकी है। यदि भविश्य में कभी टिहरी बांध का बैराज टूटा तो ऋशिकेष, हरिद्वार सहित पष्चिमी उत्तर प्रदेष तक तबाही मच जाएगी। सर्वविदित है कि मध्य हिमालय के क्षेत्र में बना विषालकाय टिहरी बांध हमेषा ही विवादों के घेरे मेें रहा है। हिमालय क्षेत्र का बदलता मिजाज टिहरी बांध पर कभी भी प्रहार कर सकता है। उत्तराखण्ड में वर्शो से हो रही तबाही के चलते सैकड़ों गांव को सुरक्षित स्थानों पर पुर्नवासित करने की योजना के बावजूद प्रदेष सरकार पिछले वर्श एक गांव की आधी जनता को ही पुर्नवासित कर सकी। अबकि बार हुई तबाही से काफी संख्या में आबादी घरविहीन हो गई है। इसके अलावा सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक गांव पर्वतीय क्षेत्र में असुरक्षित स्थानों पर हैं। लेकिन सरकार की सूची में उन्हें षामिल नही किया गया है। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन को यह त्रासदी और बढ़ायेगी। पुर्नवास की बाट जोह रहे गांव यूं ही जिंदगी और मौत के बीच झूलने के लिए विवष रहेंगे। पर्वतीय क्षेत्र के ऊपरी इलाके अभयारण्यों के लिए और नदी घाटी के इलाके जल विद्युत परियोजनाओं के लिए रिजर्व कर दिये गये हैं। आखिर आम जनता कहां जायेगी? योजनाकारों के औपनिवेषिक नजरिये ने उत्तराखण्ड की जनता को हर तरह से विस्थापन का दंष झेलने को विवष कर दिया है। उत्तराखण्ड की बर्बादी के लिए जिम्मेदार कंाग्रेस-भाजपा अब त्रासदी से उत्पन्न स्थिति पर घटिया राजनीति करने पर उतारू हो गयी हैं। बर्बादी के इतने बड़े मंजर के बीच नरेन्द्र मोदी केदारनाथ मंदिर के परिसर निर्माण की जिम्मेदारी लेने के बयान से बाज नही आये। जबकि राहत के लिए सबसे सम्पन्न राज्य का मुख्यमंत्री होने का दावा करने वाले मोदी ने मात्र 2 करोड़ रूपये ही दिये। लाषों के ढेर , हजारों यात्रियों के खतरनाक स्थितियों में फंसे होने, व स्थानीय आबादी के बड़े हिस्से के बेघरबार हो जाने के बीच मंदिर को लेकर भाजपा और कांग्रेस में होड़ षुरू होना उनके चरित्र का परिचायक है। संकट में फंसी जिंदगियों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना तथा अनियोजित व शणयंत्रकारी विकास को खारिज कर जन केन्द्रित विकास ही आज उत्तराखण्ड का प्राथमिक एजेण्डा है। इससे किसी भी तरह का विचलन लोकतंत्र की हत्या ही कहा जायेगा।
आखिरी व्यक्ति तक नहीं रूकेगा ऑपरेशन: ब्राउन
- शहीद हुए जवानों के सम्मान में उत्तराखण्ड में एक दिन का राजकीय शोक घोषित
देहरादून, 26 जून, । गौरीकुण्ड के पास बीते दिन दुर्घटना ग्रस्त हुए हैलीकाप्ट के मलबे से समाचार लिखे जाने तक 13 शव निकाले जा चुके हैं, इस हैलीकाप्टर दुर्घटना में 20 लोग मारे गए थे, बाकी सात की तलाश जारी है, बुधवार सुबह वायुसेना प्रमुख एन.ए.के. ब्राउन देहरादून पहुंचने के बाद गौचर गए, जहां राज्य में चलाए जा रहे ऑपरेशन के तहत भारतीय वायु सेना के 45 हैलीकाप्टर आपदा एंव राहत कार्य लगे हुए हैं और गौचर ऐयरबेस के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। इस दर्दनाक हादसे में मारे गए वायु सैनिकों के नाम पता चल गए हैं। वायु सेना के अनुसार इस एम.आई.-17 वी 5 हैलीकाप्टर के पाईलेट विंग कमांडर डैरिल कैस्टेलिनो, सह पाईलेट फ्लाईट लैफिटिनेंट के. प्रवीन, फ्लाईट लैफिटिनेंट तपन कपूर, जूनियर वारंट ऑफिसर ए.के. सिंह और सार्रेजेंट सुधाकर यादव की मौत हो गई। इनके शव मलबे से बरामद हुए हैं। वहीं वायु सेना प्रमुख एन.ए.के. ब्राउन ने हादसे का शिकार हुए इस हैलीकाप्टर पर सवार 20 लोगों में से किसी एक के भी बचने की संभावना से इंकार किया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार लगभग 40 कमाण्डो शेष शवों को ढूंढने में लगे हैं, वहीं ब्राउन ने कहा कि हमने कॉकपिट वॉइस रिकार्डर और फ्लाईट डाटा रिकार्डर बरामद कर दिया है और मुझे लगता है कि हम कुछ दिनों में इस दुर्घटना के सभी कारणों का पता लगा लेंगे, उन्होंने कहा कि इस दुर्घटना के पीछे के कारणों पर अभी टिप्पणी करना जल्दबाजीहोगी। ज्ञात हो कि इस हैलीकाप्टर ने बीते दिन दोपहर साढ़े बाहर बजे केदारनाथ से उड़ान भरी थी और ये हैलीकाप्टर गौचर से केदारनाथ में मारे गए तीर्थयात्रियों के अंतिम संस्कार का सामान लेकर सकुशल पहुंचा था, लेकिन वापसी में गौरीकुण्ड के पास यह हादसा हो गया। इस हैलीकाप्टर में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल (एनडीआरएफ) के नौ तथा भारत तिब्बत सीमा पुलिस के छहः जवान सवार थे। वहीं राज्य सरकार द्वारा आपदा राहत कार्य में जुटे इस हैलीकाप्टर दुर्घटना में षहीद हुए जवानों के सम्मान में उत्तराखण्ड में एक दिन का राजकीय शोक घोषित किया और मृतकों के परिजनों को 10-10 लाख रूपये मुआवजा देने का ऐलान भी किया है। वहीं मुख्यमंत्री ने कहा कि शहीद जवानों के बच्चें यदि उत्तराखण्ड में शिक्षा ग्रहण करते है, उनकी पूरी शिक्षा का व्यय राज्य सरकार वहन करेगी। वहीं गौचर ऐयरबेस पर वायुसेना प्रमुख एन.ए.के. ब्राउन ने कहा कि आखिरी आपदा प्रभावित को सुरक्षित बचाने तक यह आपरेशन जारी रहेगा। वायुसेना प्रवक्ता के अनुसार इस हादसे के पीछे के कारणों का पता लगाने के लिए कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी का आदेश दे दिया गया है। इधर वायु सेना अध्यक्ष एनएकेब्राउन और आइटीबीपी के डीआइजी इंद्र सिंह नेगी ने राहत की खबर दी है। ब्राउन ने बुधवार को गौचर में कहा कि केदारनाथ से सभी लोगों को सुरक्षित निकाल लिया गया है। अब बदरीनाथ में राहत कार्य चलाया जाएगा। उन्होंने बताया कि मौसम ने साथ दिया तो चार दिन के अंतराल में राहत एवं बचाव कार्य पूरा कर लिया जाएगा। बदरीनाथ में अभी भी करीब चार हजार लोग अलग-अलग स्थानों में फंसे हुए हैं।
सीएम ने की एयरफोर्स, एनडीआरएफ, आईटीबीपी व पुलिस के जवानों से मुलाकात
देहरादून, 26 जून, । मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने बुधवार को जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर एयरफोर्स, एनडीआरएफ, आईटीबीपी व पुलिस के जवानों से मुलाकात की। उन्होंने मंगलवार को आपदा बचाव कार्यों में लगे हेलीकाप्टर के क्रेश होने से शहीद हुए अधिकारियों व जवानों को दो मिनिट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी । उन्होंने कहा कि पूरे देश को अपने वीर एवं साहसी सैनिकों पर गर्व है। उŸाराखण्ड मे जिस विषम परिस्थिति में जवान दैवीय आपदा के बचाव कार्यों में दिन रात लगे हैं, वह सराहनीय है। अपने प्राणों की परवाह ना करते हुए सेना, वायुसेना, आईटीबीपी, एनडीआरएफ, पुलिस के जवान लोगों को बचाने में लगे हैं। हम सभी को इनसे मानवता की सेवा की प्रेरणा मिलती है। पूरा देश अपने वीर सैनिकों की क्षति पर शोकसंतप्त है। आपदा राहत के अभियान को पूरा करना ही शहीद सैनिकों व अधिकारियों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि ना केवल उŸाराखण्ड बल्कि पूरा देश अपने इन वीर सपूतों की शहादत को याद रखेगा। राज्य सरकार की ओर से 26 जून को राजकीय शोक रखा गया है। घटना में प्रत्येक शहीद के परिजनों को 10-10 लाख रूपए की राशि स्वीकृत की गई है। यदि इन शहीदों के बच्चे उŸाराखण्ड में शिक्षा प्राप्त करते हैं तो उनकी शिक्षा का समस्त व्यय राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाएगा। वायुसेना, आईटीबीपी, एनडीआरएफ व पुलिस के जवानो द्वारा पूरे मनोबल के साथ अभियान को निरंतर जारी रखने का संकल्प व्यक्त किया गया। इस अवसर पर एनडीएमए के सदस्य वीके दुग्गल, मुख्य सचिव सुभाष कुमार सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे।
देगी एक दिन का वेतन
देहरादून, 26 जून, । सहस्त्राधारा हेलीपेड पर आपदाग्रस्त इलाकों से रेस्क्यू कर लाए लोगों को उतारा जा रहा है, वहीं जॉलीग्रांट एयरपोर्ट पर भी पीड़ितों को लाया जा रहा है। पुलिस द्वारा घायलों के उपचार को लेकर उन्हें अस्पताल में भिजवाया जा रहा। वहीं पुलिस लाइन स्थित आपदा राहत केंद्र में पीड़ित परिजनों को जानकारी देने के लिए स्वयं एसएसपी केवल खुराना व अन्य अधिकारी मौजूद हैं। पुलिस लाइन स्थित आपदा राहत केंद्र में आने वाले पीड़ित परिवार के सदस्यों को उनके परिजनों के बारे में जानकारी भली तरह दी जा रही है। इसके लिए पीड़ितों के फोटोग्राफ, वीडियो फुटेज के साथ ही पर्दे पर फिल्म चलाकर पीड़ितों की जानकारी दी जा रही है। अनेक परिवार अपने लोगों की जानकारी लेने के लिए पुलिस लाइन पहुंच रहे हैं। बुधवार को भी काफी संख्या में लोग अपने परिजनों-संबंधियों की जानकारी लेने को यहां जुटे रहे। एसएसपी सहित सीओ जया बलूनी व अन्य अधिकारियों ने पीड़ित परिजनों को हर संभव मदद दी। एसएसपी ने बताया कि चोटिल लोगों को पुलिस की ओर से अस्पताल में भरती कराया जा रहा है। वहीं परिजनों के आने-जाने के लिए वाहनों की व्यवस्था की गई है। ऐसे लोगों के रहने-खाने की व्यवस्था भी दून पुलिस की ओर से की गई है। पुलिस लाइन आए परिजनों को सहस्त्रधारा हेलीपेड या जॉलीग्रंाट एयरपोर्ट तक पहुंचाने के बंदोबस्त भी पुलिस की ओर से किए गए हैं। आपदा पीड़ितों को राहत प्रदान करने को दून पुलिस की ओर से अपने स्तर से कार्यवाही शुरू कर दी गई है। पुलिस कार्यालय व अन्य पुलिस के अन्य दफ्तरों से करीब सौ अधिकारियों और कर्मचारियों को पीड़ितों को राहत पहुंचाने के लिए सहस्त्रधारा हेलीपेड, ऋषिकेश सामुदायिक अस्पताल, जॉलीग्रंाट हवाई अड्डे पर तैनात किया गया है। सभी पुलिस कर्मचारी पूरी शिद्दत से कार्य में जुटे हुए हैं। उत्तराखण्ड पुलिस विभाग के समस्त अधिकारियों-कर्मचारियों के एक दिन का वेतन आपदा पीड़ितों को दिया जाएगा। पुलिस मुख्यालय से मिली जानकारी के अनुसार विभाग के सभी अधिकारियों व कर्मचारियों के एक दिन का वेतन श्मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में दिया जाएगा।
सरकार की पूरी सहायता करेगा हिमालयन अस्पताल
देहरादून, 26 जून, । स्वामी राम द्वारा स्थापित हिमालयन अस्पताल उत्तराखण्ड में आपदा प्रभावित क्षेत्रों से बरामद क्षत-विक्षित शवों की पहचान करने के लिए डीएनए नमूने प्राप्त करने में सरकार का सहयोग करेगा, अस्पताल में 277 आपदा प्रभावितों का इलाज चल रहा है और ऐसे यात्रियों के नाम और पते गूगल फाइन्डर में डालने की पहल की जा रही है। बुधवार को यहां एक होटल में पत्रकारों से बातचीत करते हुए हिमालय अस्पतालन ट्रस्ट के निदेशक विजय धस्माना ने कहा कि आपदा पीड़ितों को तुरंत चिकित्सा सुविधाएं देने के लिए हिमालयन अस्पताल में चिकित्सकों की अत्याधुनिक एंबुलेंस, सचल चिकित्सा वाहन एवं कुशल चिकित्सकों की एक टीम गठित की गई है। यह टीम जौलीग्रांट एयर पोर्ट पर तैनात है जो हैलीकाप्टर से आने वाले पीड़ित लोगों को लेकर सीधे अस्पताल आ रही है और उनका इलाज कर रही है। उन्होंने कहा कि अस्पताल में पीड़ितों के उपचार के लिए निशुल्क दवाएं एवं खाने पीने की व्यवस्था की गई है। ऋषिकेश के रेलवे स्टेशन पर भी इसी प्रकार की एक टीम काम कर रही है। आपदा पीड़ितों के लिए अस्पताल में 250 बैड़ों की विशेष व्यवस्था की गई है। इसके अलावा एक आपातकालीन चिकित्सा कक्ष की भी व्यवस्था की है। पीड़ितों के रिश्तेदारों के ठहरने के लिए व्यवस्था की गई है। पीड़ितों को 24 घण्टे सहायता के लिए लोक संपर्क अधिकारी को नियुक्त किया गया है। विजय धस्माना ने कहा कि सिर पर गंभीर चोट लगने और दिन का दौरा पड़ने वाले मरीजों को गहन चिकित्सा केंद्र में भर्ती कराया गया है। अस्पताल में भर्ती अलग राज्यों के भी मरीज हैं, जो हिंदी नहीं जानते हैं। ऐसे व्यक्तियों की सहायता के लिए संबंधित राज्यों के राहत प्रकोष्ठ से मदद मांगी गई है। उन्होंने कहा कि आपदा में घायल हुए लोगों के चोटों के कारण इनकों इंफेक्शन हुआ है, ऐसे लोगों का तेजी से उपचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अस्तपाल में 277 पीड़ितों का इलाज किया जा रहा है और उन्हें अस्पताल में सभी सुविधाएं निशुल्क दी जा रही है। पीड़ितों के परिजनों को किसी भी प्रकार की असुविधाएं न हो इसके लिए अस्पताल में उनके ठहरने और खाने की भी निशुल्क व्यवस्था की गई है। उन्होंने कहा कि आपदा प्रभावित क्षेत्रों से मिले शवों की पहचान और जांच करने में भी अस्पताल सरकार की पूरी मदद करेगा। इसके लिए अस्पताल के न्याय विधि शास्त्र के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर संजय दास को मृतकों की पहचान करने के लिए सरकार के साथ डीएनए नमूनों लेने के लिए कहा गया है। इसके लिए दो हजार डीएनए किट भी उपलब्ध कराई गई है। इसके अलावा अस्पताल ने आपदा प्रभावित 50 गांवों को गोद लेने का निर्णय लिया है। इन गांवों की सफाई, पेयजल व्यवस्था के सुधार के लिए कार्य योजना बनाई जाएगी। आपदा में मारे गए लोगों के बच्चों को शिक्षा देने के साथ ही उन्हें छात्रवृत्ति भी दी जाएगी। गौरतलब हो कि विश्व के महान योगी और दाशर्निक ब्रम्हलीन स्वामी राम ने स्वास्थ्य सेवाओ से वंचित दून घाटी के जौलीग्रांट क्षेत्र में जब राज्य की चरमराती स्वास्थ्य व्यवस्था को देखते हुए विश्व स्तरीय अत्याधुनिक सुविधाओं युक्त स्वास्थ्य नगरी का सपना देखा था, उस समय कोई भी यह नहीं कह सकता था कि यह हॉस्पिटल उत्तराखण्ड ही नहीं बल्कि देश के जाने-माने आयुर्विज्ञान के क्षेत्र में जाना जाएगा। यह स्वामी राम की कल्पना ही थी, जिसे उन्होंने साकार किया और यह अस्पताल आज उत्तराखण्ड ही नहीं बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश और देश के जटिल रोगों का उपचार कर रहा है।
संभावित बीमारियों की चुनौती के लिए रेडक्रॉस को सक्रिय किया
देहरादून, 26 जून,। उत्तराखण्ड के राज्यपाल तथा भारतीय रेडक्रॉस समिति उत्तराखण्ड के अध्यक्ष डॉ. अजीज कुरैशी ने विगत सायं उत्तराखण्ड रेडक्रॉस सोसाइटी के कुछ प्रमुख पदाधिकारियों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक की। बैठक में, 16 जून से प्राकृतिक प्रकोप से पीड़ित उत्तराखण्ड के स्थानीय नागरिकों तथा देश के विभिन्न राज्यों से आये हजारों तीर्थ यात्रियों, पर्यटकों के बचाव अभियान के पूर्ण हाने के बाद संभावित स्वास्थ्य, खाद्यान्न व पुनर्वास जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए विस्तृत कार्ययोजना बनाये जाने पर गहरा वैचारिक मंथन हुआ। राज्य में रेडक्रॉस के मुखिया की हैसियत से राज्यपाल ने कहा कि आपदा प्रभावित क्षेत्रों में फैले मलबे और मृतक मानव व पशु शवों के विघटित होने से विभिन्न प्रकार के संक्रामक रोगों के फैलने के संभावित खतरों से बचाव के लिए तत्काल प्रभाव से सावधानी बरती जानी आवश्यक है। राज्यपाल ने आपदा जैसी विपरीत परिस्थितियों में रेडक्रॉस को सर्वाधिक प्रभावशाली व सक्रिय स्वयंसेवी संस्था बताते हुए कहा कि स्थानीय स्तर पर अन्य सभी सहयोगी स्वयं सेवी संस्थाओं, पूर्व सैनिकों, जूनियर/यूथ रेडक्रॉस के साथ-साथ शिक्षकों को सक्रिय करके जन अभियान चलाकर आगे आने वाली चुनौतियों का सामना करना होगा। राज्यपाल ने कहा कि आपात स्थिति में सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं तथा संचार व्यवस्था के ध्वस्त/बाधित होने पर प्रशिक्षित स्वयंसेवियों तथा अन्य संगठनों का समन्वय व सहयोग ही आपदा प्रभावितों को तत्काल बचाव व राहत दे पाता है इसलिए सघन जन-जागरूकता अभियान व प्रशिक्षण कार्यक्रम निरंतर चलाया जाना भी आवश्यक है। आगामी महीनों में और अधिक वर्षा तथा ऊंची पर्वतीय चोटियों पर बर्फबारी की आशंका के दृष्टिगत अतिरिक्त तैयारियों व सावधानी को आवश्यक मानते हुए राज्यपाल शीघ्र ही सभी जिलाधिकारियों से वीडियों कांफ्रेंसिंग के माध्यम से रेडक्रॉस की जिला इकाईयों को युद्धस्तर पर तैयारियां करने तथा प्रभावितों को पुनर्वासित करने सम्बन्धी निर्देश देंगे। राज्यपाल ने, आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जल-जनित संक्रामक रोगों से बचाव के लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था व जीवन रक्षक दवाईयों की उपलब्धता को शीर्ष प्राथमिकता मानते हुए तथा उनके वितरण की व्यवस्था को सुनिश्चित करने के साथ ही राहत एवं पुनर्वास कार्य में सरकार को सहयोग देने के लिए जन-सहभागिता को जन-आन्दोलन का रूप दिया जाना आवश्यक बताया। उन्होंने जन-औषधि केन्द्रों में सभी आवश्यक दवाईयों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के साथ ही आम जनता के लिए ’’क्या करना है’’ और ’’क्या नहीं’’ जैसे सतत् जागरूकता अभियान चलाने के निर्देश भी दिये। बैठक में पिथौरागढ़ जनपद से आये रेडक्रॉस सोसाइटी के आजीवन सदस्य श्री नंदन सिंह टोलिया द्वारा यह बताये जाने पर कि जनपद के धारचूला व मुन्स्यारी तहसील के चौदांस, जोहार, दारमा तथा व्यास घाटी में तेज वर्षा व भू-स्खलन से भारी तबाही में हाई एल्टीट्यूट के इन गाँवों के संपर्क के सभी संसाधन ध्वस्त हो चुके हैं इन्हें हवाई सेवा से सहायता पहुंचाना आवश्यक है, इस पर राज्यपाल ने तत्काल आयुक्त कुमाऊं से दूरभाष पर संपर्क कर आवश्यक निर्देश दिए। संस्था के महासचिव डॉ. आईएस पाल ने बताया कि रेडक्रॉस द्वारा आपदा प्रभावितों की मदद के लिए ऋषिकेश में एक शिविर संचालित किया गया है। बैठक में, राज्यपाल के सचिव अरूण ढौंढियाल, उपाध्यक्ष रणजीत सिंह, शिक्षा निदेशक डॉ. ग्वाल, श्रीमती शांति बहुगुणा, डॉ. छाया शुक्ला तथा डॉ. एमएस अंसारी सहित अनेक सदस्य उपस्थित थे।
राज्यपाल को दी आपदा पीड़ितों के सहायतार्थ सामग्री एवं धनराशि
देहरादून, 26 जून, । 16 जून को उत्तराखण्ड में आयी भारी तबाही में फंसे हजारों यात्रियों तथा स्थानीय जनसमुदाय की मदद के लिए संस्थाओं/लोगों ने सहयोग करना शुरू कर दिया है। इसी क्रम में उत्तराखण्ड तकनीकी वि0वि0 की ओर से कुलपति प्रो0 डी.एस. चौहान ने राज्य आपदा सहायता कोष हेतु 25 लाख रूपये का ड्राफ्ट राज्यपाल डॉ. अज़ीज़ कुरैशी को सौंपा है। कृपया संबंधित फोटो अपने ई-मेल से संकलित करें। सुरभि क्लब जालन्धर कैन्ट के जसबीर एवं कनिष्क गर्ग तथा अक्षत फाउन्डेशन के चन्द्रमौलि द्वारा एक ट्रक खाद्य सामग्री तथा एक पेयजल की बोतलों से भरा ट्रक आपदा पीड़ितों की सहायतार्थ उपलब्ध कराया गया जिसे रेडक्रॉस के माध्यम से प्रभावित लोगों में वितरित किया जाएगा। राज्यपाल ने उक्त संस्थाओं के प्रतिनिधियों का आभार व्यक्त किया।
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