तालिबान के साथ शांति वार्ता को लेकर अमेरिका सचेत रहे : राजनाथ सिंह - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


बुधवार, 24 जुलाई 2013

तालिबान के साथ शांति वार्ता को लेकर अमेरिका सचेत रहे : राजनाथ सिंह

भाजपा ने अमेरिका को तालिबान के साथ शांति वार्ता को लेकर सचेत करते हुए कहा कि इस आतंकी संगठन का व्यवहार बदलने की उम्मीद नहीं है और ऐसे में सुलह की यह प्रयास बेकार ही साबित होगी। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के कल यहां कहा, अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक नेतृत्व को कमजोर करने के इरादे से इसे दोबारा इस्लामिक अमीरात का दर्जा दिलाने के इच्छुक तत्वों के साथ वार्ता को लेकर उत्सुकता इस क्षेत्र के लिए उपयुक्त नहीं होगा।
     
राजनाथ कैपिटल हिल में फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायसपोरा स्टडीज, यूएस इंडिया पॉलिटिकल एक्शन कमेटी और अमेरिकन फॉरेन पॉलिसी काउंसिल की ओर से अफगानिस्तान पर संयुक्त रूप से आयोजित एक सम्मेलन में बोल रहे थे। सिंह ने कहा कि पाकिस्तानी सेना की मदद से अगर तालिबान के साथ यह वार्ता आगे बढ़ाई जाती है, जैसे की यह प्रतीत होता है तो हालात और भी खतरनाक हो जाएंगे। ऐसे में कई लोग कहेंगे कि अफगानिस्तान को अपने नियंत्रण में लेने की यह पाकिस्तानी सेना की रणनीतिक महत्वकांक्षा है, जो कि वहां के टकराव की मूल वजह है। 
     
भाजपा अध्यक्ष ने सचेत किया कि वर्तमान प्रजातांत्रिक व्यवस्था की जगह अधिनायकवादी और सांप्रदायिक तालिबानी शासन लाने का कोई भी प्रयास न सिर्फ अफगानिस्तान के लोगों और उसके पड़ाेसियों बल्कि भारत, रूस, चीन और यहां तक कि अमेरिका के लिए भी नुकसानदेह साबित होगा। उन्होंने कहा, पूरी दुनिया का ही यह अनुभव रहा है कि आतंकवाद की कोई सीमा नहीं होती। अंग्रेजी में भाषण दे रहे सिंह ने कहा कि भारत-पाकिस्तान के बीच की वहां प्रतिद्वंद्विता को एक बार फिर से अफगान संघर्ष का असली कारण बताने की कोशिश की जा रही है, जो अफसोसनाक बात है।

कोई टिप्पणी नहीं: