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सोमवार, 26 अगस्त 2013

क्योंकि हम हैं अंधेरा उलीचने के आदी ...!!

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कहते हैं अंधेरे का कोई अस्तित्व नहीं होता, बल्कि उजाले की कमी ही अंधेरे को जन्म देता है। इसी तरह नाव के पानी को उलीचने से ज्यादा जरूरी उसके छेद को बंद करना होता है। लेकिन लगता है हमारे देश व समाज का एक बड़ा हिस्सा अंधेरे को उलीचने की कवायद में जुटा है। नारी उत्पीड़न व आए दिन हो रहे दुष्कर्म की वारदातों को देखते हुए तो ऐसा ही प्रतीत होता है। तिस पर विडंबना यह कि हंगामा सिर्फ महानगरों में होने वाली दुष्कर्म की वारदातों पर होता है।  जबकि  देश के दूसरे हिस्सों में होने वाली इससे भी जघन्य व वीभत्स अपराध की घटनाएं रोजमर्रा की राजनीतिक , क्रिकेट व बालीवुड की खबरों के बीच दम तोड़ जाती है। महानगरों के हाइप्रोफाइल समाज से जुड़ी घटनाओं का आलम यह कि वारदात के बाद बनने वाली सुखिर्यां पूरे देश में सनसनी पैदा करने की कोशिश के बीच नामचीन लोगों को एक बार फिर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने का सहज ही अवसर दे देता है। कदाचित यही वजह है कि सामूहिक दुष्कर्म की वारदात के बाद चैनलों पर जहां नामचीन लोगों के बयान घंटों दिखाए जाते हैं। वहीं उनके द्वारा किए गए ट्वीटस भी चर्चा में बने रहते हैं। 

यही नहीं लगातार कई दिनों तक ऐसे लोगों के कथित ट्वीट्स और बयानों से अखबार रंगे नजर आते हैं। यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि  गैंगरेप जैसे जघन्य अपराधों पर उपदेश वाले बयान उन्हीं लोगों के लिए जाते हैं, जो माहौल को कामांध और विषाक्त बनाने के लिए कहीं न कहीं जिम्मेदार हैं। आश्चर्य की बात है कि फिल्मों में नंगई और बेहयाई की खुल कर नुमाइशें करने वाली हीरोइनें भी लोगों को नजरें सुधारने, और महिलाओं  को सम्मान की नजर से देखने का उपदेश देती  है। कहा जाता है कि दोष प्रदर्शन का नहीं, बल्कि देखने वालों की नजरों का है। ऐसे उपदेशों का समाज पर कोई असर होता है या नहीं,यह अलग बहस का विषय हो सकता है।  लेकिन  कुछ दिनों के हो - हल्ले के बाद फिर वही पुरानी लीक, और मानो फिर किसी गैंगरेप का इंतजार। लेकिन सवाल उठता है कि क्या अंधेरा उलीचने जैसी इस कवायद से समाज में नारी उत्पीड़न की घटनाएं वास्तव में कम हो पाएंगी।  या फिर  पुलिसिंग पर जोर के साथ ही माहौल को उत्तेजक बनाने और अपराधों को  प्रेरित करने वाले कारक तत्वों को दूर करने की ओर भी नीति - नियंताओं का ध्यान जाएगा। जो कि  समाज में बढ़ रहे अपराधों का मुख्य कारण है। 




तारकेश कुमार ओझा, 
खड़गपुर ( प शिचम बंगाल) 
संपर्कः 09434453934
लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं। 

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