चने में जैव उर्वरक एवं मौलिब्डेनम उपयोग पर तकनीकी बुलैटिन का विमोचन
अखिल भारतीय समन्वित चना अनुसंधान परियोजना की राष्ट्रीय स्तर की समूह बैठक जवाहरलाल नेहरू कृषि विष्वविद्यालय, जबलपुर में गत दिवस सम्पन्न हुई, जिसमें राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विष्वविद्यालय, ग्वालियर अन्तर्गत आर.ए.के कृषि महाविद्यालय, सीहोर के चना अनुसंधान से जुड़ेे हुए वैज्ञानिकों नें भाग लिया। इस अवसर पर कृषि महाविद्यालय सीहोर में प्रमुख वैज्ञानिक डाॅ. एस.सी.गुप्ता एवं सहयोगियों द्वारा चना उत्पादन बढ़ाने के लिए विकसित उत्कृष्ट तकनीक पर लिखित एवं प्रो. ऐ.के.सिंह, कुलपति रा.वि.सि.कृषि विष्वविद्यालय, ग्वालियर, डाॅ. एच.एस.यादव, निदेषक अनुसंधान सेवाएं, एवं डाॅ एन.पी.सिंह, चना परियोजना समन्वयक द्वारा संपादित पुस्तक ‘‘जैव उर्वरक एवं मौलिब्डेनम द्वारा चना उत्पादकता वृद्धि तकनीक’’ का विमोचन कार्यक्रम में डाॅ. रामकृष्ण कुसमरिया, मंत्री, किसान कल्याण एवं कृषि विकास, श्री ईष्वर दास रोहाणी, स्पीकर म.प्र. विधान सभा, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान मे उप महानिदेषक डाॅ. स्वपपन के.दŸाा, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर के निदेषक डाॅ. एन.नादराजन, कुलपति डाॅ. व्ही.एस.तोमर, सह महानिदेषक डाॅ. वी.वी.सिंह एवं चना परियोजना समन्वयक डाॅ. एन.पी.सिंह के द्वारा किया गया कृषि मंत्री डाॅ. रामकृष्ण कुसमरिया ने तकनीकी बुलैटिन की प्रषंसा करते हुए कहा कि हिन्दी में लिखी गई इस तरह की पुस्तकें किसानों के लिए बहुत उपयोगी एवं लाभकारी साबित होगी। डाॅ. स्वपपन के.दŸाा जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि इस तरह की तकनीकों को कृषकों तक पहुॅचाया जाना चाहिए जिससे जैव उर्वरक एवं सूक्ष्म तत्व उपयोग से चना उत्पादन बढ़ाया जा सके। जवाहरलाल नेहरू कृषि विष्वविद्यालय, जबलपुर के कुलपति डाॅ. व्ही.एस.तोमर ने कहा कि वर्तमान समय में इस तरह की पुस्तकों की आवष्यकता है जिसमें एक तकनीक पर एक पुस्तक हो जिसमें तकनीक के बारे में विस्तृत विवरण हो। चना परियोजना समन्वयक डाॅ. एन.पी.सिंह ने इस तकनीक के महत्व एवं इसकी सफलता पर प्रकाष डाला। इस तकनीक में चना बीज को राइजोवियम एवं पी.एस.बी. कल्चर से निवेषित करने के बाद 01 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के मान से अमोनियम मोैलिब्डेट मिलाकर बोनी करने पर चने की उपज में 25 प्रतिषत तक की वृद्धि प्राप्त होती है। यह तकनीक विषेषकर ऐसी भूमियों में जहां सोेयाबीन-चना कई वर्षो से लिया जा रहा है तथा जहां चने की फसल कमजोर होती है, वहां कारगर साबित होती है साथ ही ऐसी जमीनों में जहां मौलिब्डेनम का स्तर कम हो वहां अच्छे परिणाम देती है। यह तकनीक प्रमुख वैज्ञानिक डाॅ. एस.सी.गुप्ता, आर.ए.के कृषि महाविद्यालय, सीहोर द्वारा विकसित की गई। जोकि कृषकों के खेतों पर भी अच्छे परिणाम दे रही है। वैज्ञानिकोें की समूह बैठक में चना अनुसंधान में आने वाले वर्ष में किये जाने वाले कार्य की रूपरेखा को अन्तिम रूप दिया गया। इस अवसर पर सम्पूर्ण भारत से आये हुए कृषि वैज्ञानि क, आर.ए.के कृषि महाविद्यालय, सीहोर के अधिष्ठाता डाॅ. व्ही.एस.गौतम, प्रमुख वैज्ञानिक डाॅ.डी.आर.सक्सेना, डाॅ.एम.यासीन, डाॅ.आर.पी.सिंह. डाॅ. संदीप षर्मा प्रमुखरूप से उपस्थिति थे।
बिजली बिल माफी की दीनबँधु योजना
विद्युत वितरण कम्पनियों द्वारा बीपीएल श्रेणी के बिजली उपभोक्ताओं के लिये 30 जून, 2013 तक की बकाया बिल राशि माफ करने के लिये दीनबँधु योजना लागू की गई है। कम्पनियों द्वारा अपने-अपने कार्य-क्षेत्र में शिविर लगाकर बीपीएल उपभोक्ताओं के बिलों की राशि माफ की जा रही है। शिविर में संबंधित उपभोक्ताओं के बिलों की राशि निरंक दर्शाकर जीरो बिल भी जारी किये जाने की कार्यवाही की जा रही है। ऐसे उपभोक्ता, जो बिजली कार्यालय के वितरण केन्द्र में उपस्थित नहीं हुए हैं, उनसे दीनबँधु योजना का लाभ उठाने की अपील की गई है। उपभोक्ताओं से कहा गया है कि जून, 2013 तक की बिजली बिल की बकाया राशि माफ करवायें तथा जुलाई माह से बिजली बिलों का नियमित भुगतान करें। उल्लेखनीय है कि जून माह से दीनबँधु योजना लागू की गई है। इसमें बीपीएल श्रेणी के बिजली उपभोक्ताओं के जून, 2013 तक के बिजली बिलों की बकाया राशि माफ की जा रही है। योजना में राज्य शासन द्वारा 50 प्रतिशत राशि तथा 50 प्रतिशत बकाया राशि एवं पूर्ण सरचार्ज राशि वहन की जा रही है। ऐसे उपभोक्ताओं, जो अपना बिजली बिल माफ नहीं करा सके हैं, उनसे बिजली कार्यालय के वितरण केन्द्र में अपना कार्ड प्रस्तुत कर पंजीकृत करवाने को कहा गया है।

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