दुख पहुंचा, दर्द हुआ एक बार हमसे भी पूछ लिया जाता : शारदा सिन्हा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 26 अगस्त 2013

दुख पहुंचा, दर्द हुआ एक बार हमसे भी पूछ लिया जाता : शारदा सिन्हा

Sharda Sinha
शारदा सिन्हा

पटना। भोजपुरी अकादमी ने जब अवधी गायिका मालिनी अवस्थी को भोजपुरी अकादमी का ब्रांड-एम्बेस्डर नियुक्त किया, तब पहले दिन से यह बात प्रमुखता से उठा था कि प्रख्यात भोजपुरी गायिका शारदा सिन्हा को इस मुद्दे पर भोजपुरी अकादमी ने पूरी तरह से इग्नोर किया था। इस सम्मान के लिये शारदा जी के नाम का चयन करने को तो दूर, पटना में आयोजित हुये इस कार्यक्रम में उन्हें बुलाने की भी जरुरत नहीं समझी गई। एक हिन्दी दैनिक के लिए सुनीता कपूर ने आज शारदा सिन्हा से इसी मुद्दे पर लंबी बात की, जिसमें उन्होंने इस मुद्दे से जुडे हर सवाल पर अपनी बेबाक राय दी। बिहार की भोजपुरी अकादमी द्वारा मालिनी अवस्थी को सांस्कृतिक राजदूत चुने जाने पर मनोज तिवारी ने एतराज जताते हुए अपना भोजपुरी अकादमी सम्मान बिहार सरकार को वापस सौंप दिया। इस मामले पर प्रख्यात भोजपुरी लोकगायिका शारदा सिन्हा ने पहली बार कुछ कहा है।


शारदा सिन्हा कहती हैं कि मालिनी अवस्थी को भोजपुरी की ब्रांड अंबेसडर बनाया जाए, इससे भला मुझे क्यों एतराज होगा? मैं खुश हूं। मालिनी अच्छा गाती हैं। देश में उनका नाम है। हां, मुझे इस बात को एक अखबार में पढ़कर और दूसरे लोगों से पता चलने पर दुख पहुंचा। मुझे दर्द हुआ। एक बार हमसे भी पूछ लिया जाता..। मैं बिहार की हूं। बिहार की भोजपुरी अकादमी इस पद पर मालिनी जी को बैठा रही थीं तो भोजपुरी भाषा और लोकसंस्कृति एवं भोजपुरी गीत-संगीत को विकसित करने वाले और इसे आगे बढ़ाने वाले लोगों से जरूर सलाह मश्वरा लिया जाना चाहिए था। मैं पिछले 40 सालों से इस भाषा का प्रतिनिधित्व कर रही हूं। मुझे एक बार बता ही दिया होता तो मैं इसे अपना सम्मान मानती। अकादमी को भोजपुरी से जुड़े दूसरे कलाकारों से भी इस बारे में जरूर पूछना चाहिए था।



मैंने सुना मनोज तिवारी ने इसके लिए मेरा नाम लिया। वो उम्र से मुझसे काफी छोटे हैं। खुद भी बड़े कलाकार हैं। बचपन से मुझे सुनते आ रहे हैं। उन्हें लगा होगा कि बिहार में रह रही दीदी को यह सम्मान दिया जाना चाहिए था। आम बिहार के लोगों ने भी मेरे नाम के नारे लगाए। मैं किसी पद की इच्छुक नहीं हूं। लेकिन यह जानकर कि कितने लोग मुझ पर इतना भरोसा करते हैं और इतना प्यार करते हैं, जानकर गर्व महसूस होता है।



मैं आज तक किसी कंट्रोवर्सी में नहीं रही। लेकिन इस विवाद के चलते मेरा नाम उभरा है। मुझे इस बात से मलाल नहीं कि मालिनी को भोजपुरी की अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक राजदूत बनाया गया। मुझे मालिनी से कोई शिकायत नहीं है। शिकायत है तो बिहार भोजपुरी अकादमी से। अपने राज्य की सरकार से। इतना बड़ा फैसला लेते हुए मुझे इसमें शामिल नहीं किया गया। यहां तक कि बिहार भोजपुरी अकादमी द्वारा हालिया आयोजित अंतरराष्ट्रीय भोजपुरी महोत्सव-2013 कार्यक्रम का इनविटेशन कार्ड तक हमें नहीं दिया गया, ना ही भोजपुरी 
अकादमी द्वरा कभी किसी मुद्दे पर बात की गई, ना ही हमें कभी बुलाया गया।



मैंने कहीं सुना कि कृष्ण कुमार वैष्णवी (भिखारी ठाकुर संस्थान के सचिव) को अकादमी के अध्यक्ष ने इस मुद्दे पर एसएमएस किया, हमनी के कवनो अइसन महिला आइकॉन के चुने के रहे जे सक्रिय रूप से भोजपुरी मूल्य के प्रचार करे। शारदा जी के सहयोग कबो ना मिलल। फेसबुक पर किसी को इंटरव्यू देते हुए दूबे जी ने यह लिखा है कि आखिर कब तक शारदा सिन्हा जी को ढोइएगा? फिर इस बात के तुरंत बाद दूबे जी ने मेरे पति को फोन किया कि दीदी को ठेस पहुंची हो तो मैं माफी मांगता हूं। मुझे ऐसे संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों 
के ऐसे रवैये के चलते शिकायत है। हां, मैं जानती हूं कि उन्हें मुझसे खुन्नस है।



मैं उनकी आंख की किरकिरी हूं क्योंकि मैंने अपने सामने कभी भी किसी मंच से अश्लील या फुहड़पने वाले प्रोग्रामों को ना चलने देने का साहस के साथ मुकाबला किया। बिहार भोजपुरी अकादमी सरकार के तहत काम करती है। मैं ऐसा मानती हूं कि किसी भी भाषा के विकास एवं उसके प्रचार-प्रसार के लिए उसी भाषा के मूल कलाकार को इसकी जिम्मेदारी सौंपनी चाहिए क्योंकि वो उस माटी की खुशबू से ओतप्रोत होता है। वह जड़ से जुड़ा होता है। मैं मैथिली परिवार में पैदा हुई लेकिन मेरी रगों में भोजपुरी का ही प्रवाह है।



मुझे याद है कि एक बार आसनसोल में एक प्रोग्राम चल रहा था। मैंने वहां जमकर भोजपुरी गीत गाए। इसे लेकर विवाद तक हो गया। कुछ लोग मुझे मैथिली बेल्ट की कह रहे थे तो ज्यादातर मुझे भोजपुरी कह रहे थे। मैं तो यही कहूंगी, स्टेट की तरह भाषाओं को नहीं बांटो। कौम को कबीलों में मत बांटो, सफर को मीलों में मत बांटों, बहने दो पानी जो बहता है, अपनी रवानी में उसे कुओं, तालाबों, झीलों में मत बांटो।। अवधी और भोजपुरी दोनों बहने हैं। इनमें प्यार बने रहने दो। मेरे जहन में सवाल उठ रहा है कि आखिर भोजुपरी का ब्रांड अंबेसडर बनाने की जरूरत ही क्यों महसूस की जा रही है?



यह तो सभी कलाकारों को सामूहिक दायित्व है कि वे इस भाषा को आगे बढ़ाने का प्रयास करें। यह सभी कलाकारों, संस्थाओं एवं सरकार नैतिक जिम्मेदारी होती है। हां, एक बात यहीं मैं जरूर कहना चाहूंगी कि अर्काइव (आलेखों) का संरक्षण होना बहुत जरूरी है। वरना आने वाली पीढ़ियों को पता ही नहीं होगा कि हमारे बुजुर्ग उनके लिए विरासत में क्या छोड़कर गए। अकादमी फालतू की राजनीति करने की बजाय धरोहरों को बचाने का काम करें तो श्रेष्ठ होगा। अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि मैं खुद को इस ब्रांड अंबेसडर विवाद से अलग करती हूं। 



कौन हैं शारदा सिन्हा ?



बिहार के हर घर में जिस एक लोकगायक को गहरे सम्मान के साथ सुना और समझा जाता है, वो हैं शारदा सिन्हा। शारदा सिन्हा ने अंग्रेजी में हालांकि मास्टर डिग्री पाई, लेकिन उनकी जबान में जिस तरह से लोकभाषा बसी हुई है, वह खांटी है और लगभग अतुलनीय भी। विद्यापति और जयदेव से लेकर भिखारी ठाकुर के गीत उनके कंठ से प्रार्थना के सुर में निकलते हैं। पटना के राजेंद्र नगर इलाके में उनका घर है, जिसका नाम है, नारायणी। 1971 में लखनऊ में हुए ‘टैलेंट सर्च’ में एचएमवी कंपनी के साथ उनकी पहली बार रिकार्डिंग हुई।



इसके बाद यह सिलसिला चल निकला और आज 42 सालों से उनका यह भोजपुरी लोकगायिका का सफर अनवरत चल रहा है। बिहार कोकिला, बिहार की लता मंगेशकर, मिथिला की बेगम अख्तर, बिहार की सांस्कृतिक प्रहरी, लोक कोयल आदि-आदि कई उप नामों से संबोधित किया जाता है। 25 साल पहले राजश्री प्रोडक्शन की ‘मैंने प्यार किया’ फिल्म में भोजपुरी गीत ‘ कहे तोसे सजना...’ शारदा ने ही गाया और हाल ही में आई अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर में ‘तार बिजली से पतले हमार पिया....’ जैसे टिपिकल गीत गाकर शारदा युवा पीढ़ी में भी फेमस हो गईं.

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