नंदादेवी राजजात यात्रा अनिश्चित काल के लिए स्थगित
- दैवीय आपदा की काल दृष्टि से सकपकाई सरकार ने नंदा राज जात आयोजन से पहले ही खींच लिए थे अपने हाथ-
- ऐतिहासिक दृष्टि में नंदा राज जात और राज छन्तौली का इतिहास
(मनोज इष्टवाल)। कर्णप्रयाग में श्री नंदादेवी राजजात समिति, नौटी के सभी पदाधिकारियों की डॉ. राकेश कुंवर की अध्यक्षता में बैठक आयोजित हुई। बैठक में निर्णय लिया गया कि प्रदेश में आई दैवीय आपदा को देखते हुए वर्ष 2013 में आयोजित होने वाली नंदादेवी राजजात यात्रा को स्थगित किया जायेगा। कंुवर ने बताया कि समिति द्वारा यात्रा से जुड़ी सभी समितियों के अध्यक्षों से वार्ता कर लोक कल्यण में यह निर्णय लिया गया है। उन्होंने बताया कि यह भी निर्णय लिया गया कि अगले 10 दिनों में नई तिथि की घोषण कर ली जायेगी। इसके लिए ज्योतिषाचार्यों के साथ विचार-विमर्श कर शुभ लग्न के अनुसार नई तिथि की घोषणा की जायेगी। डॉ. कुंवर ने बताया कि आगामी 26 अगस्त, 2013 को स्थानों, जहां से छतोलियां आती है में विशेष अर्चना का आयोजन किया जायेगा। डॉ. कुंवर ने बताया कि वर्तमान में दैवीय आपदा के कारण प्रदेश काफी नुकसान हुआ है। सड़क मार्ग पूरी तरह से नष्ट हो गये है। ऐसे में लोक कल्याण को ध्यान में रखते हुए श्री नंदा देवी राजजात यात्रा को स्थगित करने का निर्णय लिया गया है।
हिमवत राजा की पुत्री नंदा की विदाई का समय ज्यों ज्यों नजदीक आता जा रहा है, राज्य सरकार की दिल की धडकनों में तेजी आनीं शुरू हो गयी है. आनी स्वाभाविक भी हुई अभी वह केदारनाथ सहित पूरे चारधाम क्षेत्र में दैवीय आपदा की त्रासदगी से पूरी तरह निबटी भी नहीं है कि माँ नंदा की कैलाश जाने की तैय्यारी ने उसके हाथ पाँव फुला दिए हैं. मजबूरन सरकारी तंत्र किसी बड़ी अनिष्ट की आशंका को भांप कर इस राज जात के आयोजन में अपनी भागीदारी से पीछे हट गयी है, वहीँ दूसरी ओर श्री नंदा देवी राज जात समिति ने सरकार के माथे पर यह कहकर पसीने की बूंदे ला दी हैं कि यह राजजात होकर रहेगी. इस दैवीय आपदा ने जो बिघटन का तांडव दिखाया है, जाहिर सी बात है कि इस दैवीय आपदा के हिसाब से नंदा राज जात के आयोजन में भागीदारी करना खौलती कढ़ाई में पैर डालना जैसा ही दीखता है. अब राज जात का लग्न पूर्व ही निर्धारित किया जा चुका है तब इसे टालना भी एक यक्ष प्रश्न है क्योंकि विद्वानों का मत यह भी है कि केदारनाथ के कपाट खुलने में जो लग्न निहित था उसमें कुछ घंटों के फेर बदल के कारण पूरी केदार घाटी में मन्दाकिनी नंदी ने जो तांडव दिखाया वह आज भी तन बदन में सिहरन दौड़ा देता है. वहीँ इन धार्मिक यात्राओं में निषिद्ध वस्तुओं के खुले प्रचलन ने भी प्रकृति एवं देव आत्माओं का मिजाज बदल दिया है जिससे आये दिन दैवीय प्रकोप से मानवीय मूल्यों को दो चार होना पड रहा है. पढ़ी लिखी वर्तमान पीढ़ी ने धर्म आस्था और विश्वास का जो खुला मजाक उडाना शुरू कर दिया है उसका खामियाजा तो भुगतना ही पड़ेगा. हाल ही में इस चार धाम यात्रा में केदारनाथ की धार्मिक यात्रा पर निकले तीर्थाटको के दो प्रसव होने की भी जानकारी मिली है, जबकि शास्त्रों में रजोगुणी महिला व कन्याओं का भी यात्रा करना निषिद्ध है. यहाँ एक आशंका फिर जन्म लेती नजर आ रही है कि कहीं नंदा राज जात में इन बातों को भी अनदेखा किया गया और कड़ाई से इन बिन्दुओ का अनुपालन नहीं किया गया इस सम्बन्ध में चांदपुर गढ़ी के नजदीक सेम गॉव के मंशा राम सेमवाल बताते हैं कि इतिहास गवाह है कि १४ वीं शताब्दी में कनौज के राजा जसधवल (जसोधर) ने जब गढ़वाल नरेश के लाख मना करने पर भी अपने शाही शौकों को पूरा करने के लिए अपनी रानी बलम्पा जिसका प्रसव होना था को साथ लेकर दास दासियों और पातरों (नर्तकियों) के साथ पूरे लाव-लस्कर के साथ यात्रा प्रारम्भ की थी और जब यह जात्रा कैलाश पर्वत के उन पवित्र स्थलों पर पहुंची जहाँ कई निषिद्धताएं लागू हैं, ऐसे में राजा जसधवल द्वारा पातरों से नृत्य प्रारम्भ करवाकर सारी विलासिता की हदें पार कर दी तब रुष्ट होकर माँ नंदा ने राजा गढ़वाल को स्वप्न में दर्शन देकर आगाह भी करवा दिया था, इस स्थान का नाम तब से पातर नचैनिया प्रचलित हो गया है. कहा जाता है कि राजा जसधवल को सबक सिखाने के लिए माँ नंदा ने जितनी भी पातर (राज नर्तकियां) थी उन्हें यही काल ग्रास बना डाला.
उनके पूर्वजों से प्र्राप्त जानकारी के अनुसार इस अनिष्ट के तत्काल बाद राजा गढ़वाल ने जात को रोकने का ऐलान कर दिया था लेकिन राजा जसधवल ने राजा को यात्रा जारी रखने का आग्रह किया, अतिथि देवो भवरू की परंपरा निभाने वाले राजा गढ़वाल को मन मसोसकर जात जारी रखनी पड़ी, प्रसव पीड़ा की वेदना झेल रही रानी बलंपा ने स्वीली ओड्यार नामक स्थान पर मृत बच्चा जना जिसके कारण सूतक हो गया, फिर क्या था माँ नंदा क्रुद्ध हो गयी उसने काली रूप धारण कर लिया. नंदा जात जैसे ही वेदनी बुग्याल पहुंची भयंकर ओलावृष्टि शुरू हो गयी, जिसमें दबकर हज़ारों सैनिकों सहित राजा रानी सभी की मौत हो गयी. आज भी रूप कुंड के आस-पास फैले बुग्यालों में तत्कालीन मानव अस्थियाँ सर्वत्र फैली दिखाई देती हैं. उपरोक्त ऐतिहासिक पहलू को यदि इस राज जात में भी नजर अदांज किया गया तो मुझे लगता है कि किसी बड़े अनिष्ट से इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि जिस तरह प्रकृति ने कहर बनकर प्रकोप दिखाना शुरू कर दिया है उससे हमें यह सबक लेना जरुरी हो गया है. श्री नंदा देवी राज जात मंदिर समिति को इतिहास और धार्मिक तथ्यों का विशेष ध्यान रखकर ही अग्रिम फूंक-फूंककर कदम बढ़ाना होगा, अभी बरसात अपने शुरूआती चरण में है और अगले माह यह अपने पूरे आवेश में रहती है. दूसरी तरफ इस हिमालयी भू-भाग में जिन जिन स्थानों से यात्रा गुजरनी है बर्फीली चादर, बर्फीली हवाएं और कडकडाती ठण्ड से आपका सामना होता है. नंदा राज जात का जो रास्ता निमित है उससे गुजरना भी एक बड़ी बहादुरी का काम है. क्योंकि जिस तरह से नंदा राज जात का प्रचार प्रसार हुआ है उससे पूर्व में यह संभावना जताई जा रही थी कि इस बार लगभग ५-६ लाख जन समुदाय की भीड़ उमड़ेगी लेकिन केदार घाटी की दैवीय आपदा को देखते हुए जो डर वर्तमान में श्रधालुओं के दिलो-दिमाग में घुस गया है उससे यह तय है कि अब यह भीड़ १ लाख तक भी पहुँच पाए तो गनीमत है. शायद आयोजक भी यही चाहते होंगे कि यह भीड़ जितनी कम हो उतना शुकून मिलेगा. अब इस राज जात को पिकनिक समझने वाला युवा वर्ग जरुर कम हो जाएगा क्योंकि टीवी समाचारों ने देश के कोने कोने में हाल ही में आई दैवीय आपदा का जो खाका खींचा है उससे लोग दहशतजद हैं.
ऐतिहासिक पृष्ठिभूमि में माँ नंदा राज जात का जो उल्लेख मिलता है वह सभी कि जानकारी में है लेकिन कुछ ऐसे तथ्य भी इस जात की गर्भ की गोद में छुपे हुए हैं जिन्हें उजागर करना जरुरी है. कान्सुआ के कुंवारों के प्रतिनिधित्व से पूर्व इस राज जात की अगुवाई चांदपुर गढ़ी से राजा (टिहरी नरेश) की अगुवाई में हुआ करती थी लेकिन सन १९८७ की राजजात में टिहरी नरेश मानवेन्द्र शाह ने इसे विधिवत कान्सुआ के कुंवारों को सौंप दिया. यहाँ एक बात कुंवरों के वंशजों के दस्तावेजों से पता लगती है कि राज जात का आयोजन स्थल भले ही चांदपुर गढ़ी था, लेकिन इस जात की अगुवाई हमेशा ही कान्सुआ के कुंवरों द्वारा हुई है, टिहरी राज दरवार उसमें अपनी भागीदारी जरुर निभाता आया है. श्री नंदा देवी राज जात समिति के अध्यक्ष डॉक्टर राकेश कुंवर से प्राप्त जानकारी के आधार पर जो उल्लेख मिलता है वह कान्सुआ के कुंवर जमन सिंह से शुरू होता है जिन्होंने सन १८४३ की राज जात की अगुवाई की थी इसके पश्चात सन १८६३ में कुंवर हयात सिंह, १८८६ में कुंवर शिव सिंह, १९०५ में कुंवर बख्तावर सिंह, १९२५ में कुंवर केसर सिंह, १९५१ में कुंवर ध्यान सिंह, १९६८ में कुंवर रघुनाथ सिंह की अध्यक्षता में कुंवर कुशाल सिंह, १९८७ में कुंवर डॉक्टर राकेश सिंह की अगुवाई में नंदा राज जात का सफलता पूर्वक आयोजन हुआ है लेकिन सन १९५१ में भारी ओलावृष्टि और किसी अनिष्ट की संभावना को देखते हुए यह जात्रा नंदाकिनी नदी के इर्द गिर्द तक ही सिमट कर रह गयी थी. पुनरू सन १९६८ से १९८७ तक अतीत के अंधेरों में गुम माँ नंदा की जात्रा को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाने से यह जात विधिवत नहीं हो पायी. कहा जाता है कि ईडा बधाणी के जमन सिंह जधोड़ा माँ नन्दा के परम भक्त थे उनके साथ माँ नंदा एक शिला के रूप में उनके घर विराजमान हुई लेकिन जब वह कार्यवश अपने घर से इधर उधर जाया करते थे तो ग्रामीणों को उनके घर आँगन में एक छोटी सी १०-११ वर्षीय कन्या खेलती नजर आती थी, लोगों का विश्मय का ठिकाना न रहा फिर एक दिन माँ नंदा ने स्वयं जमन सिंह जधोडा को सात्क्षात दर्शन देकर कैलाश जाने की इच्छा जताई और पुनरू यह जात्रा प्रारम्भ हुई. आज भी माँ नंदा का वाहन चै सिंघा खाडू (मेंडा) ईडा बधाणी गॉव के जधोडा गुसाईं परिवारों के यहाँ ही जन्म लेता है. देव मान्यताओं के आधार पर माँ की छन्तौलियों के निर्माण का भी बहुत बड़ा महातम है. बिशन सिंह कुंवर बताते हैं कि राज छन्तौलियों के निर्माण और लाने की व्यवस्था का अधिकार कुंवर परिवारों को ही है, भले ही सिल्गुर और बधाण के सोलह सयानों की भी भेंट स्वरुप छन्तौलियाँ आती हैं. कांसुवा के कुंवर राज छन्तौली का निर्माण गॉव बेडी-छीमटा के रुडिया जाति के लोगों द्वारा द्वारा करवाते हैं जो रिंगाल से निर्मित की जाती है. ये रुडिया १२ छन्तौलियों का निर्माण व साथ में देवी के बटुआ का निर्माण भी करते हैं. कांसुवा से नौटी, नौटी से ईडा-बधाणी, और ईडा बधाणी नौटी वापसी के समय जाख गॉव में देवी का मंगल स्नान कर पूजा अर्चना के बाद वहां के चैहान ख्शाह, लोगो द्वारा देवी का श्रृंगार भेंट किया जाता है जिसमें नथ, मांगटीका इत्यादि भेंट स्वरुप चढ़ाए जाते हैं जिसे ये लोग स्वनिर्मित करते हैं. चैसिंघा खाडू के लिए गले में एक स्वनिर्मित बटुआ भी भेंट किया जाता है जिसमें क्षेत्रीय ग्रामीण अपने अपने घर से माँ के लिए भेंट देता हैं. जाख में माँ के मंगन स्नान के दौरान लगने वाले मंगल गीत इतने भाव विभोर होते हैं कि वहां एकत्रित माँ बहनों की आँखों से आंसू निकलने लगते हैं..
“पैरा-पैरा गौरा तू, नाके की नथुली....पैरा- पैरा गौरा तू गौला की हंसुली’ इस प्रकार जागर और मांगल गीतों से माँ गौरा को दुल्हन स्वरुप सजाया जाता है. माँ नंदा के श्रृंगार के बाद जाख गॉव से दियारकोट,कुकडैई, झुरकंडे,नैनी होकर माँ नंदा की डोली नौटी पहुँचती है. जहाँ से माँ की जात की विधिवत शुरुआत होती है. सन १९८७ से पूर्व यह जात चांदपुर गढ़ी से शुरू की जाती थी, यहीं माँ नंदा की मूर्ती आज भी विद्धमान बताई जाती है, जिसे चंद्रवंशी कनकपाल या फिर सूर्यवंशी राजा भानुप्रताप द्वारा स्थापित बताया जाता है. माँ नंदा की इस प्रतिमा को स्थानीय लोग कैलापीरी देवी या काली माँ की भी मानते हैं. लेकिन वर्तमान में किन व्यवस्थाओं को मध्य नजर रखते हुए इसे नौटी से शुरू किया गया यह बात अब अतीत हो गयी है. क्योंकि एक ओर जहाँ चांदपुर गढ़ी के कुलपुरोहित सेम के सेमवाल और खंडूडा के खंडूरी अपने को राजा के कुलपुरोहित मानते हैं वहीँ नौटी गॉव के नौटियाल अपने को राज पुरोहित कहते हैं. अब यहाँ प्रश्न यह उठता है कि फिर राज जात का आयोजन नौटी से क्यों होता है. कालांतर में इसका आयोजन कहाँ से होता था यह भूतकाल की गर्त में है लेकिन कुछ प्रश्न जरुर मुंह बाए खड़े हो जाते हैं जिनसे विवाद की स्थिति पैदा हो जाती है, मेरा मानना है कि ऐसे तथ्यों पर अब पूर्णविराम लग जाना चाहिए ताकि ये प्रश्न उठे ही नहीं. एक और प्रश्न यहाँ खड़ा होता है कि राज छन्तौली को ले जाने का अधिकार सिर्फ डयुन्डी ब्राह्मणों को ही क्यों है...? डयुन्डी ब्राह्मणों के गॉव रतूडा, ग्वालखेत, कोटि, ऐरवाडी और सेम इत्यादि गॉव में हैं, चांदपुर गढ़ी से पूर्व ही ये राज छन्तौली माद्यो घाट (महादेव घाट) से डयुन्डी ब्राह्मणों के हवाले हो जाती हैं,
चांदपुर गढ़ी से राज छन्तौली के साथ नंदा भगवती को १२ थोकी ब्राह्मण (नंदा देवी के उपासक/पुजारी) की छन्तौली भी कालांतर से माँ भगवती के साथ कैलाश के लिए प्रस्थान करती है जबकि अल्मोड़ा (कुमाऊ) से भी माँ की छन्तौली व खड़ग माँ राज राजेश्वरी की डोली के साथ ब्भ्म्च्क्ल्न्प्छचेपड्यू (नन्दकेसरी) में आकर मिलती हैं. १२ थोकी ब्राह्मणों में सेम गॉव के सेमवाल,खंडूडा के खंडूरी, नैणी के नैलवाल, गैरोली के गैरोला, चमोला के चमोला, रतूड़ा के रतूड़ी, देवल के देवली, मैठाणा के मैठाणी, थापली के थपलियाल, डिमर के डिमरी, नौटी के नौटियाल, नौना के नौनी (नवानी) इत्यादि प्रमुख हैं. इन छन्तौली में सम्मिलित डिमर के डिमरी बद्रीश छन्तौली लेकर चलते हैं. यह १२ थोकी ब्राह्मणों की १२ छन्तौली १२ वर्षों में नंदा की विदाई के स्वरुप प्रदान करते हैं. मंशा राम सेमवाल का कहना है कि १२ थोकी ब्राह्मण राज दरवार में कुल पुरोहित, सरोला इत्यादि सहित विभिन्न कार्यों का सम्पादन करते हैं, कालांतर से वर्तमान तक यह कार्य यथावत चल रहा है. ऐतिहासिक पहलु पर यदि गौर किया जाता है तब अधिकतर इतिहासविदों का मानना है कि राजा भानुप्रताप की एक ही पुत्री थी जिसका विवाह धारा नगरी के राजा कनकपाल से हुआ, और राजा कनकपाल ने रणथम्बौर (राजस्थान) से यात्रा पर आये अग्निवंशी राजकुंवर असलपाल चैहान से अपनी पुत्री का विवाह कर उन्हें नागपुर गढ़ी का गढ़पति नियुक्त कर दिया जिसका उनके वंशजों ने दबे स्वर में विरोध भी किया लेकिन राजा कनकपाल ने तत्काल इसे शांत कर दिया. राजघरानों की आपसी ऐंठ में उलझे चांदपुर गढ़ी और नागपुर गढ़ी के राज वंशी परिवारों में धीरे-धीरे खाइयां बढ़नी शुरू हो गई, (राजा भानुप्रताप एक इकलौती पुत्री होने का वर्णन जहाँ इस प्रकार मिलता है-“भानु प्रतापो भूपालरू सुर्यवंश समुदव, गढ़े चान्द्पुरे राजा कन्या मात्र प्रजोभ्यरू”) यह लड़ाई राजा कनंपाल की मृत्यु के बाद और बढ़ गई नागपुर गढ़ी के गढ़पति असलपाल चैहान जो सूर्यवंशी हुआ करते थे यहाँ रहने के पश्चात नागवंशी कहलाने लगे. असलपाल चैहान के वंशज असवाल कहलाये क्योंकि असलपाल नाम का अपभ्रंश होकर असवाल हो गया. और फिर अधो असवाल, अधो गढ़वाल की नींव पड़ी. इन दो गढि़यों की इस आपसी रंजिश ने ही बावन गढि़यों को जन्म दिया. टूटते बिखरते गढ नरेश पर पडोसी राजाओं की वक्र दृष्टि पडनी शुरू हो चुकी थी. अश्व सुसज्जित असवाल अब अस्वारोही भी कहलाने लगे, इन्हें कई इतिहासविदों ने अश्वारोही ही पुकार कर असवाल जाति की उपाधि दे डाली लेकिन सच यह है कि तब आधे गढ़वाल पर असवाल जाति का अधिकार था और आधे पर चंद्रवंशी राजाओं का. कुमाऊं के राजाओं ने जब रूहेला, मराठा सैनिकों के साथ मिलकर जोशीमठ तक कब्ज़ा जमा लिया था तब मजबूरन चंद्रवंशी राजाओं की संततियों ने सन १५०० ई. में श्रीनगर और नागवंशी थोकदार भजन सिंह असवाल ने असवालयूँ में ८४ गॉव की जागीर के साथ नगर गॉव की स्थापना की.
कालांतर में माँ नंदा की राज जात का महात्मम यूँ तो राजा हिमवत से माना जाता है जिनका शासन पूरे हिमालयी क्षेत्र पर था लेकिन कब इसकी शुरुआत हुई उसका सम्पूर्ण उल्लेख जुटाना संभव नहीं है. प्रसंग विस्तृत है और हम मुख्य मुद्दे से भटक रहे हैं. इसलिए मुख्य मुद्दे पर लौटते हुए मेरा कहना यह है कि जिस तरह १२ वर्षों में नंदा देवी राज जात का आयोजन होता आ रहा है और ऐसा भी नहीं है कि हर १२ वर्ष बाद ही इसका आयोजन बहुत जरुरी है. सन २००० के आयोजन के बाद सन २०१२ में इसका आयोजन होना था लेकिन मलमास होने के कारण इसे सन २०१३ में टाल दिया गया. हाल ही में श्री माँ नंदा राज जात समिति की बैठक में आखिर यह तय हो ही गया है कि इस वर्ष सितम्बर माह में हर हाल में माँ नंदा राज जात का आयोजन होना है. इस घोषणा के बाद अब किन्तु परन्तु जैसे शब्द भले ही समाप्त हो गए हैं लेकिन दैवीय आपदा से जूझ रहे पहाड़ के सभी मूल निवासी अभी भी भयातुर हैं. वहीँ श्री नंदादेवी राज जात समिति ने भले ही सरकार की इस घोषणा के बाद यह कह दिया हो कि अब लग्न निकाल दिया गया है राज जात होकर रहेगी लेकिन डरे हुए तो ये लोग भी होंगे क्योंकि किसी भी अनिष्ट की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता और देव योग से ऐसा हो गया तो समिति इसकी भरपाई कैसे कर पाएगी. समिति के अध्यक्ष डॉ. राकेश कुंवर ने क्षेत्रीय जनता और पूरे देश विदेश से आने वाली जनता से विनम्र भाव से अनुरोध करते हुए कहा है कि इस धार्मिक राज जात को धर्म और आस्था से जोड़कर ही देखे जो भी जन मानस रजोगुणी/तमोगुणी हों उन्हें इस पवित्र राज जात यात्रा में अपनी भागीदारी से बचना चाहिए., उन्होंने युवावर्ग से भी अनुरोध किया है कि राज जात की महत्तता को समझते हुए इसे पिकनिक स्पॉट न समझे और जरुरी निषिद्धताओं के साथ ही इसमें अपनी अमूल्य भागीदारी दें ताकि इस हिमालयी भू.भाग की धर्म परायण संस्कृति भी जीवित रहे और माँ नंदा का प्रकोप किसी को न झेलना पड़े. पूर्व घटित राजा यशधवल द्वारा की गयी यात्रा के दौरान हुए बिनाश का संस्मरण रखते हुए अपनी प्रवृति में सात्विकता लायें.
इस राज जात में माँ नंदा द्वारा मायके की याद आने की जागर सुनकर तन बदन के रोंवे खड़े हो जाते हैं जैसे-
मेरा रे मैत्युं की क्वी रंत न खबर,
मेरा रे मैत्युं की क्वी रंत न रैबार.
मैतुडा की याद मी घूरी-घूरी आंदी.
डान्डयूँ की कुयेड़ी क्या गंगाडू मुकीगे..
पयारु बेलूरी स्या पैत़ासाड़ी रैगे.
मैतुडा की याद मी घूरी-घूरी आंदी.
माँ नंदा की राज जात में सन १८०४ के बाद से व्यवधान पड़ा बताया जाता है जिसे सन १८४३ से पुनरू शुरू किया गया, जो सन १८६३, १८८६, १९०५, १९२५ ,१९५१, १९६८, १९८७, २००० में आयोजित की गयी. माँ नंदा देवी के उत्पन्न होने का कौन सा काल रहा होगा लेकिन हम लगभग डेढ़ हज़ार वर्ष पूर्व इसका उत्पत्ति काल (उत्तरगुप्त काल) मान सकते हैं क्योंकि तत्कालीन समय के राजाओं ने भी माँ नंदा की स्तुति वंदना और जात का आयोजन किया था. पान्दुकेश्वर से प्राप्त कत्युरी राजवंश के ताम्रपत्रों में माँ नंदा का विवरण इस प्रकार मिलता है-
१-ललितसूरदेव ताम्रपत्र (अनु. समय-नौवीं सदी ई.)
...नंदा भगवती चरण कमालासनाय मूर्ती.../
२.पदमदेव ताम्रपत्र (अनु. समय- दसवीं सदी ई.)
....नंदा देवी चरण कमल लक्ष्मीत....’
३.सुभिक्षराजदेव ताम्रपत्र (अनु. समय- दसवीं सदी ई.)
....नंदा देवी चरण कमल लक्ष्मीत....
यही नहीं इस युग की पुराण गाथाओं में भी नंदा नाम और उत्पत्ति गाथा का पता चलता है. इस सम्पूर्ण क्षेत में देवी नंदा को भिन्न भिन्न स्थानों में भिन्न भिन्न नामों का सम्बोदन मिलता गया जिसमें शैलपुत्री, काली (कालरात्रि), कात्यायिनी, विंध्यवासिनी, पार्वती, चंडी, त्रिनेत्रा इत्यादि नाम सम्मिलित हैं. यत्र नार्यस्तू पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता..( जहाँ नारी की पूजा होती है वही देवता निवास करते हैं) या किंवदंती आज भी प्रचलित है. सैकड़ों वर्ष पूर्व से नंदा की इस विश्मयकारी यात्रा का अनूठा आकर्षण विश्व भर में रहा. ब्रिटिश राजकाल के दौरान भी कई अंग्रेज अफसरों ने माँ नंदा और उसके ट्रेक पर रिसर्च किया लेकिन हर बार अधूरा ही काम रहा. विगत कई वर्षों से नंदा देवी के विभिन्न पहलुओं पर शोध कर रहे डॉ. विल्लियम एस. सेक्स माँ नंदा की इस धार्मिक राज जात से इतने प्रभावित हुए हैं कि नौटी गॉव के नौटियाल वंशजों के कुनवे में शामिल होकर उन्होंने अपना नाम ही बद्री प्रसाद नौटियाल रख दिया है. ब्रिटिश काल में सन १८८२ से ही नंदा पर्वतशिखर पर पर्वतारोहण शुरू हो गया था लेकिन सन १८३४ ई. में ब्रिटिश पर्वतारोही एरिक शिप्टन और टिटमैंन ही वह मार्ग खोजने में सफल हो सके जो ऋषि गंगा और द्रोणागिरी गॉव होकर हिम नदों के कगार से बचकर नंदा नन्दा शिखर तक पहुँचता है. माउन्ट एवरेस्ट पर चढ़ने वाला पहला अमेरिकी अन्सोल्ड माँ नंदा की उतुंग शिखर को देख इतना प्रभावित हुआ कि उसने कामना की कि यदि उसकी पुत्री हुई तो वह उसका नाम भी नंदा ही रखेगा. माँ ने उसकी मन्नत पूरी की और उसने अपनी पुत्री का नाम ही नंदा ही रख दिया. सन १९७७ में उसने अपनी पुत्री नंदा के अनुनय विनय पर पुनरू भारत आकर नंदा शिखर का रोहण करना शुरू किया, जहाँ पहुँचकर उनकी पुत्री ने जिसे वह देवी कहकर संवोदित करते थे अचानक गंभीर और शांत हो गयी. भारी बर्फवारी शुरू हुई और वह ठन्डे स्वर में अपने पिता से बोली-“ थ्।ज्भ्म्त् प् ।ड ळव्प्छळ ज्व् क्प्म्” इतना कहने के पश्चात वह मर गयी. इस स्तब्धकारी मर्मान्तक वेदना को विली अन्सोल्ड ने अपनी पुस्तक “अल्पाइन अमेरिकन जनरल-२१, १९७७” में वर्णित किया है.
माँ नंदा की राजजात में पूरी जात के नेतृत्व की अगुवाई चैसिंघा खाडू करता है. उसके पश्चातलाटू देवता का निशाण (ध्वज), तीसरे स्थान पर राज छन्तौली व नौटी गॉव की डोली छन्तौली, चैथे स्थान पर अन्य देवी देवताओं रिंगाल वाली छन्तौली के वाहक, और अंत में भोजपत्र निर्मित छन्तौलियों के साथ यात्री जात्रा करते हैं. १९ पडावों से गुजरने वाली यह यात्रा २८० किलोमीटर की एक साहसिक जात्रा है जिसे पूरा करना एक स्वप्न पूरा होने जैसा है. हिमवत पुत्री की इस कारुणिक विदाई में सम्मिलित होने वाले हर नर नारी की आँखें भर आती हैं. वर्तमान में नौटी से शुरू होने वाली यह विदाई १९ पड़ाव पार कर त्रिशूली कांठे की जड़ होमकुंड में चैसिंघा खाडू माँ नंदा को अर्पित भेंट के साथ सम्पन्न होती है.
स्वतंत्रता की 66वीं वर्षगांठ पर राज्यपाल ने दी बधाई
देहरादून, 14 अगस्त, (मनोज इष्टवाल)। उत्तराखण्ड के राज्यपाल डा. अजीज कुरैशी ने कहा कि देश की आजादी की 66वीं वर्षगांठ पर समस्त उत्तराखण्ड वासियों को मेरा हार्दिक अभिनन्दन, शुभकामनाएं एवं बधाई। उन्होंने कहा कि इस महान् अवसर पर मैं राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी सहित देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले उन सभी असंख्य देश भक्त बलिदानियों के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ जिनके त्याग, समर्पण, दृढ़ विश्वास तथा कठिन संघर्ष भरे प्रेरक नेतृत्व ने हमें स्वतंत्र देश के नागरिक होने का गौरव प्रदान किया। हमें यह हमेशा याद रखना है कि स्वतंत्र देश का नागरिक होने की अधिकारिता के साथ हमारी कुछ जिम्मेदारियाँ भी जुड़ी हैं, जिनसे मुँह नहीं मोड़ा जा सकता। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ’’आराम हराम है’’ का नारा देकर ’भारत की सेवा’ के लिए निरंतर प्रयास जारी रखने की प्रतिज्ञा पूर्ण करने की प्रेरणा दी थी। ’’भारत की सेवा’’ से उनका तात्पर्य था-दरिद्रता और अज्ञानता से उपजी असमानता-विषमता का अंत करके देश के करोड़ों पीडि़तों की सेवा करना। आज हमारा राज्य प्राकृतिक आपदा के उत्पीड़न से कराह रहा है। हम सबका दायित्व है कि आपदा पीडि़त परिवारों की पीड़ा में साझीदार बनकर उनके आँसू पोछें। मुझे पूरा विश्वास है कि हमारे-आपके संयुक्त प्रयास उत्तराखण्ड का सात्विक आकर्षण, संास्कृतिक वैभव तथा ऊर्जा को शीघ्र लौटाने में कामयाब होंगे। हमारा यह प्रयास ही हमारी आजादी के महान् क्रांतिकारियों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। आइए! इस बार के आजादी के जश्न को उन्हें सम्मान देकर मनाएं जो निःस्वार्थ भाव से विवशताओं की बेड़ी में जकड़े इंसान की दम तोड़ती आरजुओं को हौसला देने में जुटे हैं, जो सीमा पर देश की रक्षा के साथ-साथ विपरीत परिस्थितियों में जीवन रक्षक बनकर खड़े हैं, जो अपने नेतृत्व से देश की मान-मर्यादा तथा भारत की महान् संसदीय परम्पराओं का सम्मान बरकरार रखने के लिए संघर्षरत् हैं, और उन्हें जो गरीब-लाचार, अशक्त तथा सम्पूर्ण स्त्री जाति को यह अहसास दिलाने में जुटे हैं कि राष्ट्र निर्माण में उनका भी समान महत्व है।
पुलिस के हत्थे चढ़े चार लुटेरे
देहरादून, 14 अगस्त, (मनोज इष्टवाल)। विकासनगर के ढालीपुर में बीती 31 जुलाई को बाप-बेटी को घर में बंधक बनाकर हथियारों की नोक पर लाखों रूपये की लूट की घटना को अंजाम देने वाले चार लुटेरों को पुलिस ने गिरफ्तार कर उनके पास से लूट का सारा सामान बरामद कर लिया है। यह सभी लुटेरे पहले भी कई घटनाओं को अंजाम दे चुके हैं, पुलिस लुटेरों से पूछताछ कर रही है। गौरतलब हो कि विकासनगर थाने के ढालीपुर में 31 जुलाई की रात को बाप-बेटी को बंधक बनाकर लूट की घटना को अंजाम दिया गया था। विजय मित्तल अपनी बेटी तन्नू के साथ घर पर थे और उनका बेटा कपिल देहरादून में था। वह दून में पासपोर्ट कार्यालय में काम करता है। बाप-बेटी दोनों सो रहे थे कि आधी रात को उनको छत से कुछ आवाज आई। इससे पहले दोनों कुछ समझ पाते चार बदमाश, जिसमें से एक ने चेहरे पर नकाब लगा रखा। चारों छत की सीढि़यों के रास्ते कमरे में घुस आए और तन्नू के कमरें में जबरन घुस गए। उन्होंने तमंचा निकालकर उसके सिर पर सटा दिया। बेटी की आवाज सुनकर विजय मित्तल भी जाए गए, इससे पहले वह कुछ समझ पाते लुटेरों ने उनके सिर पर भी तंमचा लगा दिया। उसके बाद लुटेरे दोनों को एक कमरे में ले गए जहां एक बदमाश उनके सामने बंदूक लेकर खड़ा रहा और अन्य तीन बदमाश लूट की वारदात को अंजाम देते रहे। पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार बुधवार को विकासनगर पुलिस को सूचना मिली की ढालीपुर में हुई लूट की घटना के मामले के चार लुटेरे वहीं देखे गए हैं। पुलिस ने मुखबिर की सूचना के आधार पर जाल बिछाया और चार लुटेरों को गिरफ्तार कर लिया। कड़ी पूछताछ में उन्होंने लूट के 50 हजार रूपये, लाखों के गहने की जानकारी दी, जिसको पुलिस ने बरामद कर लिया है।
स्वतंत्रता दिवस पर रहेगा कड़ा पहरा
देहरादून, 14 अगस्त, (मनोज इष्टवाल)। स्वतंत्रता दिवस पर सुरक्षा के मद्देनगर जिला प्रशासन द्वारा जहां तैयारियां पूरी कर ली गई हैं, वहीं बैरियर बनाने है, यातायात के लिए रुट डायवर्ट करने है इसका सारा खाता पहले ही तैयार कर लिया गया है तथा सीमाओं पर भारी चैकसी बरती जा रही है रेलवे स्टेशन और बस स्टेन्डों पर पुलिस का कड़ा पहरा है, वहीं बुधवार को एसएसपी केवल खुराना सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेने के लिए सड़कों पर स्वंय उतरे। स्वतन्त्रता दिवस पर परेड ग्राउंड में आयोजित होने वाले मुख्य कार्यक्रम के मददेनजर कड़ सुरक्षा की गई है। कार्यक्रम स्थल पर सुरक्षा के दृष्टिकोण से चारों ओर सुरक्षाकर्मियों की पूरी फौज तैनात की गयी है तथा खुफिया ऐजेंसियों ने भी जाल बिछा रखा है। परेड़ ग्राउंड के चारों ओर से गुजरने वालों पर कड़ी नजर रखी जा रही है वहीं मंगलवार से ही पूरे शहर में चैकिंग अभियान भी जारी है राज्य की सीमाआंे मे प्रवेश करने वालों सभी वाहनों और यात्रियों की तलाशी ली जा रही है। वहीं राजधानी के सभी होटलों ढ़ाबों और रेस्टोरेन्टों तथा धर्मशाला में भी सुरक्षा कड़ी की गई है तथा बुधवार शाम को राज्य की सभी सीमाएं सील कर दी गई। रेलवे स्टेशन और बस स्टेन्डों पर भी सुरक्षाकर्मियों द्वारा हर आने जाने वाले पर नजर रखी जा रही है और उनके सामान की तालाशी भी ली जा रही है यहां तक कि पुलिस के द्वारा आने जाने वालों के वाहनों की डिक्कियां खोलकर उन्हंे खगाला जा रहा है। सुरक्षा के मददेनजर सीसी कैमरों पर भी पैनी नजर रखी जा रही है तथा राजधानी का पूरा यातायात प्लान बदल दिया गया है सार्वजनिक पार्किगांे पर भी सुरक्षा के मददेनजर तलाशी अभियान जारी है लेकिन इस तमाम व्यवस्था के बावजूद भी सुरक्षा में किसी तरह की ढील ढाल न हो इसका जायजा लेने के लिए आज पुलिस कप्तान खुद राजधानी की सड़कों पर उतरे और उन्होंने घण्टाघर सहित कई क्षेंत्रों में खुद आने जाने वालों की तलाशी ली तथा सुरक्षा में लगे कर्मचारियों को दिशा निर्देश भी दिए। पुलिस कप्तान ने कार्यक्रम स्थल के आसपास भी सुरक्षा इंतजामों का जायजा लिया। पुलिस कप्तान का कहना है कि कार्यक्रम को शांतिपूर्ण ढ़ंग से सम्पन्न कराने के लिए कड़े सुरक्षा प्रबन्ध किये गये है।
भाजपाईयों ने फूंका काबिना मंत्री का पुतला
देहरादून, 14 अगस्त, (मनोज इष्टवाल)। भारतीय जनता पार्टी महानगर ने काबिना मंत्री हरक सिंह रावत का पुतला फूंका। महानगर भाजपा कार्यकर्ता बुधवार को काबिना मंत्री के पुतले के साथ जुलूस के रूप में घण्टाघर पहंुचे और पुतले को आग के हवाले किया। भाजपाईयों का कहना था कि युद्धवीर हत्याकाण्ड की मुख्य आरोपी सुधा पटवाल की गिरफ्तारी काबिना मंत्री के आवास से होना यह साबित करता है कि मंत्री उसको बचाना चाहते थे। भाजपाईयों ने कहा कि प्रदेश में मेडिकल में एडमिशन के लिए जिस तरह से बिचैलिए हावी हो रहे हैं और लाखों रूपये लेकर एमबीबीएस में एडमिशन कराये जा रहे हैं उससे राज्य के युवाओं का भविष्य दांव पर लग रहा है। पुतला फूंकने वालों में महानगर अध्यक्ष नीलम सहगल, सुनील उनियाल, शारदा गुप्ता, तृप्ता, भूपेन्द्र कठैत, अमिता सिंह, सुधा बड़थ्वाल, उषा लखेड़ा, मंजू कोटनाला, खेमचंद तथा विपिन राणा आदि शामिल थे।
योजनाओं के प्रचार प्रसार में होगा नवीनतम विधाओं का प्रयोगरू मिश्रा
हल्द्वानी/देहरादून, 14 अगस्त, (मनोज इष्टवाल)। शासन के आदेशों के क्रम में मीडिया सेंटर हल्द्वानी में तैनात किए गए सहायक निदेशक योगेश मिश्रा ने बुधवार को अपना कार्यभार ग्रहण किया। उन्होंने कर्मचारियों से परिचय प्राप्त कर उन्हें कार्यशैली में गुणात्मक सुधार लाते हुए शासन की योजनाओं के सतही प्रचार-प्रसार के निर्देश दिए। मिश्रा ने कहा कुमाऊँ मंडल में सरकार की योजनाओं का विज्ञप्तियों के अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रमों, प्रदशर्नियों एवं चलचित्रों के माध्यम से व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाएगा। विकास योजनाओं की आकाशवाणी व दूरदर्शन से कवरेज कराई जाएगी ताकि ग्रामीण जनता और अधिक लाभान्वित हो सके। इसके साथ ही मीडिया से बेहतर सामंजस्य बनाकर उनके साथ हर समय दो तरपफा संवाद स्थापित किया जायेगा। ताकि प्रेस व प्रशासन के मध्य संवादहीनता न होने पाए। नई कार्य संस्कृति बावत मिश्रा ने कुमाऊँ मंडल के जिला सूचना अध्किारियों से वार्ता कर उन्होंने आवश्यक दिशा-निर्देश भी दिए। मिश्रा मूलतः ग्राम विकास विभाग के अध्किारी है। जिनका चयन 1990 में लोक सेवा आयोग इलाहाबाद द्वारा सूचना विभाग के लिये किया गया था। मिश्रा बरेली, नैनीताल, ऊध्मसिंह नगर, चम्पावत, मीडिया सेंटर सचिवालय व विधनसभा के साथ ही सूचना निदेशालय में कार्यरत रहे है।
खण्डूडी ने दी स्वंतत्रता दिवस की शुभकामनाएं
देहरादून, 14 अगस्त, (मनोज इष्टवाल)। मेजर जनरल (से0नि0) भुवन चन्द्र खण्डूड़ी पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड ने देश एवं प्रदेशवासियों को 66वें0 स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर शुभाकामानाऐं दी हैं। पूर्व मुख्य मंत्री ने कहा कि यह राष्ट्रीय पर्व भारत के गौरव का प्रतीक है, हमें इस दिन अपने महान राष्घ्ट्रीय नेताओं और स्घ्वतंत्रता सेनानियों को अपनी श्रद्धांजलि देते हुए याद करना चाहिए जिन्घ्होंने विदेशी नियंत्रण से भारत को आज़ाद कराने के लिए अनेक बलिदान दिए और अपने जीवन न्घ्यौछावर कर दिए।
कंपनी को लगाया लाखों का का चूना
देहरादून, 14 अगस्त, (मनोज इष्टवाल)। मशीनों की सप्लाई करने के एवज में एक कंपनी ने दूसरी स्टोन क्रेशर कंपनी को अस्सी लाख रूपए का चूना लगा दिया हेै। फर्जी कागजात लगा कर सैकेंड मशीनें थमाने के बाद कंपनी के आधार पर आधा दर्जन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। मिली जानकारी के अनुसार बसंत विहार पुलिस को दी गयी शिकायत में विशाल अग्रवाल ने बताया कि उनकी मैसर्स तुगानिया इंफोटेक प्राईवेट लिमिटेड के नाम से आर्शीवाद एंक्लेव में कंपनी है। उनका स्टोन क्रेेशर का काम है जिसके लिए उन्होंने भगवानपुर की तोरियन इंजीनियर पं्राईवेट लिमिटेड कंपनी को अस्सी लाख रूपए को आर्डर दिया था। इसके लिए कंपनी को सोलह लाख रूपए नगद दिए गए जबकि 64 लाख रूपए के लोन के कागज तैयार किए गए। इधर एडवांस की रकम लेकर तोरियन कंपनी ने मशीनें भेज दीं लेकिन कुछ दिन बाद ही इन कंपनियों ने काम करना बंद कर दियां विशाल अग्रवाल का कहना है कि जो मशीनंे मंगाई गयीं थीं, तोरियन कंपनी ने उसके विपरीत घटिया मशीनें भेज दीं और पफर्जी बिल एवं कागज बना कर लोन के 64 लाख रूपए भी अपने खाते में जमा करा लिए। तुगानिया के निदेशक विशाल अग्रवाल ने बताया कि उन्होंने मशीनें वापस करने को कहा तो तोरियन के मालिक सुमित बजला एवं अमित बजला ने मशीनंें बदलने व पैसा वापस करने से भी मना कर दिया। विशाल अग्रवाल की ओर से सुमित बजला, अमित बजला, कंपनी के महाप्रबंधक गौतम दत्ता सहित आधा दर्जन लोगों के खिलापफ शिकायत दर्ज कराई गयी है।
आंदोलनकारियों को हाशिए पर धकेलने का आरोप लगाया, आंदोलनकारी पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के सम्मानित करेंगे
देहरादून, 14 अगस्त, (मनोज इष्टवाल)। आंदोलनकारी संगठनों में आंदोलनकारियों की निरंतर हो रही उपेक्षा से रोष है। संगठनों के अनुसार राज्य निर्माण के बाद आंदोलनकारियों को हाशिए पर धकेल दिया गया है, जिसके कारण उत्तराखण्ड बनने के सपनों पर ग्रहण लग चुका है। चिन्हीकरण होने के बाद भी बड़ी तादात में आंदोलनकारियों इस प्रक्रिया से बाहर हैं, ऐसे में आंदोलनकारी पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के सम्मान करने जा रहे हैं, ताकि शासन प्रशासन स्तर पर निरंतर हो रही उपेक्षा पर विराम लग सके। उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जितेंद्र चैहान का कहना है कि राज्य मंे आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण को लेकर असमानता देखने को मिल रही है। खटीमा की बात की जाए तो यहां आठ हजार के करीब आवेदन प्राप्त हुए, जिनमंे से आठ सौ का चिन्हीकरण किया गया। सितारगंज में 78 आवेदन प्राप्त हुए, जिनमें से एक का भी चिन्हीकरण नहीं हो पाया हैं। उनका कहना है कि चिन्हीकरण न होने से आंदोलनकारी शासन द्वारा मिलने वाली सुविधाओं से वंचित हैं। उन्होंने कहा कि आंदोलनकारियों से समानता का वर्ताव होना चाहिए और तिवारी शासन में शुरू हुई चिन्हीकरण की प्रक्रिया को आगे बिना किसी भेदभाव के आगे बढाया जाए। उन्होंने कहा कि आंदोलनकारी कांग्रेस अब नारायण दत्त तिवारी को उम्मीद भरी नजरों से देख रही है और उनसे अपेक्षा है कि वह आंदोलनकारियों के पक्ष में शासन-प्रशासन पर दबाव बनायेंगे। उनका कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री तिवारी का सम्मान अक्टूबर में किया जाएगा। उन्होंने कहा कि आंदोनकारियों के जो आवेदन प्राप्त हो रहे हैं, उनमें से उन्हीं का चिन्हीकरण किया जाना चाहिए, जिनके पास अर्हता हो, उनके दस्तावेजों की जांच गहनता से की जानी चाहिए। राज्य में आंदोलनकारियों के चिन्हिीकरण को लेकर जब-तब आवाज उठती रही है, कई स्थानों पर चिन्हीकरण की प्रक्रिया पर सवाल उठते रहे हैं। आरोप हैं कि कई जगह जनप्रतिनिधियों ने अपने चहेतों का नाम लिस्ट में शामिल कराकर राज्य आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वालों को दरकिनार कर दिया। इसके लिए जनांदोलन भी चलाया जायेगा।
डीएम को भेजा ज्ञापन, मोटर पुलिया बानाने की मांग
मुनस्यारी/देहरादून, 14 अगस्त, (मनोज इष्टवाल)। आजादी के 66 वर्श बाद भी मुनस्यारी तहसील के गोरीपार क्षेत्र के 8 ग्राम पंचायतों के 20 हजार की आबादी को सडक सुविधा नसीब नही है। गोरीनदी पर बना झूलापुल भी इस बार कि आपदा की भेट चढ गई। भाकपा माले ने एस0डी0एम 0 के माध्यम से डी0एम0 को ज्ञापन भेजकर गोरीपार क्षेत्र के लिए झूलापुल वाले स्थान पर मोटर पुलिया बानाने की मांग की। पार्टी ने कहा कि इस स्थान पर किसी भी कीमत में झूलापुल का निर्माण पुनः नही होना चाहिए। प्रषासन को 15 दिन का समय दिया गया है इसके बाद गोरीपार क्षेत्र की जनता को साथ में लेकर आन्दोलन करने की धमकी दी गयी। भाकमा माले के ब्रान्च सचिव सुरेन्द्र बृजवाल के नेतृत्व मे एस0डी0एम0 से मिले प्रतिनिधी मंडल ने ज्ञापन सौपते हुए कहा कि झूलापुल 16-17 जून की आपदा की त्रासदी में बह गया था। कांग्रेस व भाजपा की सरकारों ने आज तक इस इलाके की जनता को सडक की सुविधा नही दी। आज आपदा ने इनसे पैदल चलने के लिए बनी पुलिया को भी छीन लिया है। इस पुलिया के बह जाने के बाद गोरीपार क्षेत्र के बसन्तकोट, फल्यांटी, उच्छैती, धुरातोली, बोथी, रिंगू, चुलकोट, कुलथम, डीलम, बुई, पांतों की 20 हजार की आबादी प्रभावित हुइ है। भाकपा माले के जिला सचिव जगत मर्ताेलिया ने कहा कि आजादी के 66 वर्श बाद इस स्थान पर झूलापुल का निमार्ण किया जाना 20 हजार की आबादी के साथ मजाक है उनहोने कहा कि आपदा के बजट से 3 माह के भीतर बसन्तकोट के निकट गोरीनदी पर झूलापुल के स्थान पर तत्काल मोटर पुलिया का निमार्ण किया जाना चाहिए। मोटर पुलिया के बनने तक इस स्थान पर एक गरारी का निमार्ण किया जाय ताकि गोरीपार क्षेत्र की जनता को 20 कि0मी0 पैदल का अतिरिक्त चक्कर न लगाना पडे। उनहोने कहा कि क्षेत्रीय विधायक गोरीपार की जनता को सडक सुविधा देने के लिए झूठ पर झूठ बोले जा रहे है हकीकत यह है कि कांग्रेस व भाजपा के नेता नही चाहते है कि गोरीपार की जनता सडक सुविधा का लाभ उठाए। ब्रांच सचिव सुरेन्द्र बृजवाल ने कहा कि 15 दिन के भीतर उत्तरखण्ड सरकार और प्रषासन आपदा के बजट से मोटर पुलिया निमार्ण की स्वीकृति करा ले अन्यथा पार्टी जोरदार आनदोलन षुरु करदेगी। उपजिलाधिकारी अनिल कुमार षुक्ल ने बताया कि इस प्रसताव को जिलाधिकारी को सस्तुति के साथ भेजा जाएगा। प्रतिनिधि मंडल में भाकपा माले के नेता राम सिंह गनघरिया, हयात राम, प्रेम सिंह नेगी, गोविन्द सिंह पाना, लीला बिश्ट, जानकी नित्वाल, सीता, कमला चुफाल, षान्ती आर्या सहित कई कार्यकर्ता मोजूद थे।


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