केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने बुधवार को कहा कि सरकार वित्तीय घाटा पर समझौता नहीं करेगी और वित्त वर्ष 2016-17 तक इसे कम करते हुए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के तीन फीसदी के दायरे में सीमित कर देगी। दिल्ली आर्थिक कॉनक्लेव 2013 में उन्होंने कहा, "सर्वोच्च प्राथमिकता है वित्तीय घाटा। इस पर कोई समझौता नहीं हो सकता है और मैं सरकार की ओर से बोल रहा हूं कि वित्तीय मितव्ययिता के रास्ते पर आगे बढ़ने के फैसले पर कोई समझौता नहीं होगा। वित्तीय घाटा कम करने के रास्ते पर चरणबद्ध तरीके से, साल-दर-साल बढ़ा जाएगा और 2016-17 तक इसे जीडीपी के तीन फीसदी तक ले आने का लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा।" मार्च 2014 में समाप्त होने वाले मौजूदा कारोबारी साल के लिए वित्तीय घाटा का लक्ष्य है जीडीपी का 4.8 फीसदी।
उन्होंने कहा, "चालू खाता घाटा पर भी ध्यान दिया जाएगा। भारत 2012-13 की तरह 88 अरब डॉलर आकार के चालू खाता घाटा का बोझ नहीं उठा सकता है। न ही भारत सोने के आयात पर 50 अरब डॉलर जैसा खर्च उठा सकता है। न ही भारत को प्रचुर मात्रा में कोयले का भंडार रहते हुए कोयले का अयात करना चाहिए। न ही भारत को नीतिगत अवरोध में फंसे रहना चाहिए, जिसके कारण उत्पादन क्षमता रहते हुए इसे विभिन्न वस्तुओं का आयात करना पड़ता है।" उन्होंने कहा कि इस सूची में अगली प्राथमिकता महंगाई की है।
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