- विचारों,लेखनी, निष्पक्ष पत्रकारिता प्रताप ने गुलाम भारत को सोते से जगाया ।।
भारतीय प्रजातंत्र के चैथा स्तंभ कहे जाने वाला षव्द पे्रस, पत्रकारिता का अपना एक इतिहास है, देवऋषि नारद से लेकर बर्तमान पत्रकारिता के स्वरूप समय -समय पर परिवर्तन होना प्रकृति का स्वभाव रहा है । मानव समाज की सुरक्षा, जीवन यापन में आजादी के साथ -साथ अभिव्यक्ति की आजादी की अति आवष्यकता है । यह आजादी प्रेस के माध्यम से ही मिलती है, जिस देष या राज्य में प्रेस की आजादी को कुचला गया , वहाॅ एक तंत्र की षासन प्रणाली प्रभावषाली रही है । भारत देष जब गुलामी के दौर से गुजर रहा था उस समय अंग्रेजी हुकुमत के बिरूध्द अपने बिचार रखना भी अपराध माना जाता था, लेकिन अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए देष के अनेक वीर सपूतों ने अपने विचारों के साथ-साथ देष के लाखोे लोगों को पत्रकारिता के माध्यम से जागरूकता लाने में पे्रस की अह्म भूमिका रही । आजादी दिलाने में जितना कार्य क्राॅतकारी वीर सपूतों ने किया उससे कम साहित्यकारो, कविओं एवं पत्रकारों ने भी अपनी लेखनी व विचारों के माध्यम से देष को आजादी दिलाने में सहयोग किया । समाज सुधारक राजाराम मोहन राय, बालगंगाधर तिलक, पं0 दीन दयाल उपाध्याय, पं0 महावीर प्रसाद व्दिवेदी, जैसे लोगों ने अपनी लेखनी व साहित्य दर्षन के माध्यम से आम जन को देष प्रेम की भावनाओं से अवगत कराया ।
भारतीय पत्रकारिता के पुरौधा कहे जाने बाले गणेषषंकर विद्यार्थी जी का जन्म 26 अक्टूवर 1890 संवत 1947 आष्विन षुक्ला चतुर्दषी को अतरसुइया इलाहावाद उ0्रप0 में हुआ इनके पिता बाबू जय नारायण लाल एवं माता श्रीमती गोमती देवी थीं । बचपन से दुबले-पतले थें लेकिन दिमाग के बहुत तेज थें, बचपन से ही उनके अंदर देष प्रेम की भावना थी षिक्षा के साथ साथ उम्र के साथ उनक अल्पआयु में विवाह संस्कार हुआ । सरकारी नौकरी करने के वाद उन्होने साप्ताहिक, मासिक पत्रिकाओं में नौकरी करते हुये पत्रकारिता से जुड़ते चले गये । उन्होने अपना स्वयं का एक प्रताप नाम का साप्ताहिक पत्र का संपादन ष्षुरू किया, बाद में इसी समाचार पत्र को दैनिक प्रताप से प्रकाषित किया । समाचार पत्र के माध्यम से पत्रकारिता के जरिये देष के लोगों का जागृत किया । प्रेस की आजादी पर अंग्रेजों ने जुल्म ढ़ाये लेकिन उन्होने अंग्रेजो के कानून को तोड़ते हुए भी समाचार पत्र का प्रकाषन जारी रखा । भारतीय पत्रकारिता के पुरोधा गणेषषंकर विद्यार्थी के जीवन का अपनाया । राजनैतिक गतिविधिओं में भाग लेने के बाद वह समाज सुधारक रहे । उनकी विचार धारा एवं लेखनी पर आम नागकिरों को पूरा भरोसा हुआ करता था । ईमानदार, लगनषील, विवेकषाली, वुध्दिमान, देष भक्त सुमाज सुधारक गणेषषंकर विद्यार्थी जी अल्प आयु में 23 मार्च 1931 को कानपुर में दो गुटों के बीच समझौता कराते समय ष्षहीद हो गए । उनकी लेखनी व कर्मयोगी कर्तव्य निष्ठा को जीवित रखने के लिए मध्य प्रदेष के अंदर ही एक किसान परिवार में बिषम परिस्थितिओं में जन्म लेने बाले संतोष कुमार (कर्मयोगी) का जीवन का इतिहास भी गणेषषंकर विद्यार्थी जी के जीवन से मिलता जुलता है । संतोष कुमार गंगेले मध्य पदेष के छतरपुर जिला के कस्बा नौगाॅव (छावनी) जो बुन्देलखण्ड की राजधानी के नाम से जाना जाता है से सटे ग्राम बीरपुरा के रहने बाले है उनके पिता काष्तकार तो थें ही समय के अनुसार वह एक समाजसुधारक महापुरूष संत हरिहर वावा के नाम से प्रसिध्द हुए । संतोष गंगेले ने अपने जीवन में सैकड़ों कठिनाईयों को दर किनार करते हुए समाज सेवा को जीवन में अपनाया साथ ही भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों को मानव समाज में बचाये रखने के लिए सन् 1981 से दैनिक राष्ट्र भ्रमण एवं साप्ताहिक समाचार -पत्र से अपनी पत्रकारिता ष्षुरू की थी , दिन प्रतिदिन पत्रकारिता के क्षेत्र में उच्च षिखर तक आने में उन्होने अपने जीवन की आय का दस से बीस प्रतिषत भाग समाज में लगााकर समाज सेवा में अपनी स्वयं की पहचान बनाकर आज मध्य प्रदेष स्तर का एक संगठन गणेषषंकर विद्यार्थी प्रेस क्लब संस्था तैयार कर दी है । इस संगठन का कार्यक्षेत्र सम्पूर्ण मध्य प्रदेष है, इस संगठन का विस्तार बर्तमान में 22 जिला तक पहुॅच चुका हंै । ब्लाक, जनपद, संभागीय एवं बुन्देलखण्ड स्तर के अनेक पत्रकार सम्मेलन कराने के बाद आज प्रदेष स्तर का सम्मेलन कराने की तैयारी में लगे हुए है ।
गणेष षंकर विद्यार्थी प्रेस क्लब की नियमावली के अनुसार इस संगठन का प्रचार प्रसार व विस्तार करने केलिए दो साल तक निःषुल्क सदस्य बनाकर मध्य प्रदेष में ईमानदार, कर्मठ, कर्मयोगी, लगनषील, सम्मानित एवं सामाज सुधारक, पत्रकारों के साथ साथ साहित्यकारों , ष्सोषलमीडिया से जुड़े स्वतंत्र पत्रकारों को ष्षामिल किया जा रहा है । मध्य प्रदेष में अपनी अलग पहचान बनाकर ष्षासन, प्रषासन एवं जनता के बीच धुरी के रूपमें कार्य करने के सकल्प के साथ संस्था प्रगति कर रही है । इस संस्था में प्रदेष के उन तमाम पत्रकारों, साहितयकारों को स्वागत है जो गणेषषंकर विद्यार्थी जी के कर्मयोग से प्रभावित होकर समाज सेवा में आना चाहते है ।
---संतोष गंगेले---
छतरपुर
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