- – वर्ष 2000 से 2013 तक विवि द्वारा 802 पीएचडी की डिग्रियां शोधार्थियों को दी जा चुकी हैं
- – पीएचडी कर रहे शोधार्थियों को छह माह का ‘कोर्स वर्क’ भी करने की सलाह दी गई है
भूपेंद्र नारायण मंडल विश्व विद्यालय, लालूनगर मधेपुरा 1992 में अस्तित्व में आया. अपने अस्तित्व काल से ही विवि में राजनीतिक उठापटक और राजनीतिक रस्साकसी का दौर तेज हो गया. कभी पद पाने की आपाधापी तो कभी विवि कर्मियों का धरना प्रदर्शन यहां की पहचान बनने लगी. यह सिलसिला दो दशक से जारी है लेकिन न तो विवि प्रशासन और न ही सरकार द्वारा ही इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाया जा रहा है. नतीजतन ‘क्वालिटी एजुकेशन’ कहीं न कहीं गौण पड़ चुका है. उच्च शिक्षा (पीएचडी) के नाम पर तो यहां सिर्फ आपाधापी का दौर जारी है. गिने चुने ही स्कालर ऐसे हैं जो अपने दम पर प्रतिभा का परिचय देते हैं और अपने साथ साथ विवि का भी नाम रोशन कर जाते हैं.
इस संदर्भ में जब पड़ताल की तो पता चला कि कई ऐसे विषय हैं जिनमें पीएचडी की डिग्री हासिल कर रहे शोधार्थी को स्तरीय लैब व लाइब्रेरी की सुविधा तक नहीं मिल पाती हैं. इस बाबत पीएचडी शोधार्थी से जब बात की गई तो उन्होंने इन तमाम समस्याओं के बारे विस्तार से बात की, और कहा कि शोध से संबंधित तैयारी करने के लिए सारी व्यवस्थाएं स्वयं करनी पड़ती है. विवि प्रशासन द्वारा तमाम घोषणाओं के बाद भी शोधार्थियों को उम्दा लैब व लाइब्रेरी की सुविधा नहीं मिल पाती हैं. जिससे परेशानी होती हैं और अच्छी पुस्तकों के लिये आज भी विवि के छात्रें को विकप तलाशना पड़ता है. ऐसे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि विवि में किस तरह से पीएचडी जैसी महत्वपूर्ण डिग्रियां दी जा रही हैं. ज्ञातव्य हो कि वर्ष 2000 से लेकर 2013 तक विवि द्वारा 802 पीएचडी की डिग्रियां शोधार्थियों को दी जा चुकी हैं. पीएचडी डिग्री हासिल करने के लिए शोधार्थियों को रजिस्ट्रेशन मद में 1500 व परीक्षा शुक के तौर पर 5000 रूपये जमा करने पड़ने हैं. लिहाजा, अब तक 52 लाख 13,000 रूपये विधिवत जमा कराये गये हैं. हालांकि इसके अलावे शोधार्थियों को सिनौपसी पास कराने से लेकर जमा कराने तक व पुस्तक मद में 50–75,000 रूपये तक भी खर्चने पड़ते हैं.
गौरतलब है कि यूजीसी गाइडलाइन 2010 के अनुसार सभी शोधार्थियों का शोध पत्र इंफ‚र्मेशन ऑफ लाइब्रेरी नेटवर्क (आईएनएफएलआईबीएनईटी) पर अपलोड करने की बात कही गई थी, और जांचोपरांत गे्रडिंग की जायेगी. मिली जानकारी अनुसार वर्ष 2000 के बाद से अब तक किसी भी पीएचडी डिग्री धारी द्वारा अपना शोध पत्र लाइब्रेरी में इनलिस्ट नहीं किया है. सूत्र बताते हैं कि यूजीसी द्वारा जारी ‘कोर्स वर्क’ अनुपालन सूबे के सभी 11 विश्वविद्यालयों में से भूपेंद्र नारायण मंडल विवि ही है जो इसका अनुपालन कर रहा है. फिलवक्त विवि के अलावे डीएस कालेज कटिहार, पूर्णिया कालेज पूर्णिया, एमएलटी कालेज सहरसा, टीपी कालेज मधेपुरा में ही पीजी कोर्स की अनुमति मिली है. विवि में नौ पीजी कोर्स (फिजिक्स, केमिस्ट्री, जूल‚जी, ब‚टनी, क‚मर्स, प‚लिटिकल साइंस, होम साइंस, ज्योग्राफी, साइकोल‚जी) जबकि सहरसा पीजी सेंटर में छह विषयों (मैथिली, हिंदी, पालिटिकल साइंस, इकोन‚मिक्स, फिल‚सिफी, हिस्ट्री) की पढ़ाई होती है.
आयोडिन पर विशेष शोध के लिए एम्स ने थपथपाई पीठ :
ड‚ टीवीआरके राव, प्राचार्य पूर्णिया कालेज पूर्णिया द्वारा 2003 में ‘आयोडिन न्यूट्रिशनल स्टेट्स आफ एडोलसेंस’ पर किये गये शोध कार्य को एम्स (एआईआईएमएस) द्वारा प्रकाशित इंडियन जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक्स में विशेष जगह दी गई. विशेष बातचीत के क्रम में ड‚ टीवीआरके राव ने बताया कि पूर्णिया जिले के ट्राइब्स (संथाली) की जीवन शैली पर विशेष रिपोर्ट तैयार की गई, जिसमें यह बताया गया कि आयोडिन युक्त नमक खाने के बाद भी आखिर लोग वाइटर रोग से क्यों पीडि़त हो जाते हैं. इस शोध में फूल गोभी, पत्ता गोभी व मूली में थायोसाइमेट की अधिक मात्र पाये जाने के कारण यह आयोडिन को शरीर में अवशोषित होने से रोक देता है जिससे शरीर को जरूरी मात्र में आयोडिन की पूर्ति नहीं हो पाती है और थाइर‚क्सिन की कमी से लोग वाइटर जैसे रोग से पीडि़त हो जाते हैं. इसके अलावे उनका शोध पत्र एशियन जर्नल ऑफ केमेस्ट्री में भी प्रकाशित हो चुका है. जिसमें दुमका के आदिवासियों को ध्यान में रख कर शोध पत्र तैयार किया गया था.
यूजीसी मापदंडों का नहीं होता है अनुपालन :
ड‚ प्रो. नरेंद्र श्रीवास्तव (जंतु विज्ञान) कहते हैं कि यूजीसी द्वारा पीएचडी डिग्री को लेकर कई मापदंड प्रस्तुत किये गये हैं. जिनका मकसद है कि जो शिक्षक बन रहे हैं उनमें शोध की क्षमता हो साथ ही ऐसे बच्चों को भी प्रेरित करें जो उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर हैं. इसके अलावे समाज के उन विषयों को भी उभारना है जो कि अब तक सामाजिक तौर पर उठाया नहीं जा सका है. हालांकि यूजीसी ने अपने मापदंडों में वर्ष 09 में मूलभूत संशोधन किया और क्वालिटी एजुकेशन की महत्ता पर विशेष प्रकाश डाला गया. यही नहीं पीएचडी कर रहे शोधार्थियों को छह माह का ‘कोर्स वर्क’ करने की भी सलाह दी गई ताकि उनके विषय में और भी प्रगाढ़ता आये. बिहार विवि अधिनियम 1976 की धारा 4ध्16 के तहत स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि पीएचडी की पढ़ाई विवि के द्वारा विवि प्रशासन के सीधे हस्तक्षेप में ही हो. उन्होंने कहा कि यूजीसी द्वारा तमाम ऐसे नियम व कानून तो बना दिये गये लेकिन विवि की कार्यशैली की बात करें तो यूजीसी द्वारा जारी नियमों की कहीं न कहीं अवहेलना तो जरूर की जा रही है. लिहाजा, शोधार्थियों को डिग्रियां तो जरूर मिल जाती हैं लेकिन आनन फानन में मिले अधिकांश शोधार्थियों के पास क्वालिटी का नितांत अभाव रहता है. जिस कारण विवि की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगती दिखती है.
दिये जायेंगे दिशा निर्देश :
विवि में तमाम कमियों (मसलन लैब, लाइब्रेरी, क्लास रूम) को स्वीकारते हुए प्रभारी कुलसचिव ड‚ विश्वनाथ विवेका कहते हैं कि विवि में जहां संसाधनों की कमी है वहीं कर्मियों के अभाव के कारण कार्य प्रभावित होते हैं. ऐसे में गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई की भी शिकायतें अक्सर आती रहती हैं. उन्होंने कहा कि अभी विवि बदलाव व अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है जिस कारण कंस्ट्रक्टिव वर्क नहीं हो रहे हैं. शोध पत्र को लेकर कहते हैं कि जद ही दिशा निर्देश जारी किये जायेंगे ताकि शोधार्थी अपना शोध पत्र की एक प्रति लाइब्रेरी में भी जमा करें.
कुमार गौरव,
मधेपुरा

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