- प्रत्याशियों की कथनी-करनी की पोल खोल रहे है फेसबुक, ट्वीटर, वाटसप के यूजर्स
- बिगड़ रहा नेता जी के परंपरागत मतों का समीकरण
- स्थानीय मुद्दों के साथ राष्ट्रीय विकास पर खुलकर रख रहे विचार
- विभिन्न योजनाओं, उपहार व जाति-धर्म की राजनीति की हो रही जमकर खिंचाई
- 5 लाख 77 हजार यूजर्स सक्रिय है सोशल साइट्स पर 82 फीसदी यूजर्स की उम्र 18-40 वर्ष तक
भदोही। चुनावी पिच पर विकास को लेकर दावों और वादों का मंच सज चुका है। प्रत्याशी बढ़-चढ़कर अपनी बातों से वोटरों को लुभाने में जुट गये है। लेकिन हाईटेक हो चुका सोशल मीडिया के जरिए युवा वोटर उनके दावों व वादों पर पलीता लगा रहा है। फेसबुक, ट्वीटर, वाटस्प के यंगीस्तान यूजर्स बड़ी-बड़ी डींगे हांकने वाले नेता जी की न केवल सामाजिक बल्कि धार्मिक व देश-प्रदेश सहित स्थानीय समस्याओं से जुड़े मुद्दों को उछालकर धड़कने बढ़ा दी हैं। पूर्वांचल के करीब 82 फीसदी युवा जिनकी उम्र 18-40 वर्ष है, वह जाहिर करने की कोशिश कर रहे है कि प्रत्याशी जाति-धर्म या चेहरा देखकर नहीं बल्कि मुद्दों पर चुनेंगे। चुनावी विश्लेषक एसके राय की मानें तो मुंगेरी लाल के हसीन सपने दिखाने वालों की यूजर्स के तीखे कमेंट व उनकी भड़ास मतों की समीकरण को उलट-पलट कर सकते है। विचारों को व्यक्त करने की खुली आजादी मिली तो हमले और तीखे भी है। यह जानकर कि देर-सबेर नेता जी वोट मांगने उनके चैखट पर पहुंचेगे जरुर। सामने कह सकेंगे या नहीं इसलिए सोशल साइट्स पर नसीहतों का दौर शुरु है। खासकर पुराने वादों को लेकर जो पिछले चुनाव में किए गए वो पूरा हुए कि नहीं। इतना ही नहीं स्थानीय दिक्कतों को लेकर भी खूब पोल-पट्टी खुल रही है। बता दें भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र, वाराणसी, चंदौली, गाजीपुर, बलिया, जौनपुर, मछलीशहर, आजमगढ़, सलेमपुर, घोसी, फूलपुर, प्रतापगढ़ व इलाहाबाद के करीब 249 लाख 80 हजार मतदाता है। जिसमें साढ़े 55 लाख युवा है। इसमें जिनकी उम्र 18-40 वर्ष है, वह फेसबुक, ट्वीटर, वाटस्प आदि से जाहिर करने की कोशिश कर रहे है कि अब उनका जमीनी नारों से भरोसा उठ चुका है। वह मुद्दों को तेजी से उछाल रहे है। वह वादे नहीं काम व अपना भविष्य सुरक्षित चाहते है। अकेले भदोही से सोशल साइट्स फेसबुक, ट्वीटर व वाट्स्प पर 38540 लोग हर रोज आनलाइन होते है। हालांकि फेसबुक की अपेक्षा माइक्रोब्लासिंग साइट्स ट्वीटर पर स्थानीय लोगों की भीड़ थोड़ी कम है, बावजूद इसके 19500 लोग 24 घंटे में कम से कम 3 बार जरुर उपस्थिति दर्ज कराते है। इसी तरह मिर्जापुर में 41345, सोनभद्र में 38600, इलाहाबाद में 78940, आजमगढ़ में 52869, वाराणसी में 76922, गाजीपुर 37977, चंदौली में 39845, मउ में 34976, प्रतापगढ़ में 43797, जौनपुर में 53858, बलिया में 42979 एक दिन में कम से कम चार बार 30-40 मिनट के लिए जरुर आनलाइन हो रहे है।
लैपटाप नहीं शिक्षा चाहिए
यूजर्स नरेश यादव के सवाल-अखिलेश के लैपटाप को दहेज का सामान समझ लिया, पर करीब-करीब सभी ने कहा बीटेक में फीस कम कर देते तो सूबे के युवाओं को टेक्निसियन कोर्स से दूर न भागना पड़ता। यूजर्स नसीम अंसारी के खस्ताहाल सड़कों, बिजली तथा सड़कों के निर्माण में ठेकेदारों के जरिए जनप्रतिनिधियों की धांधली के सवाल पर लोगों की काफी तीखे कमेंट है। नदीम ने अपने कमेंट में कहा, इस चुनाव में औकात पता चल जायेगा। यूजर्स अवधेश का सवाल मोदी पीएम बनें तो चीन से लेकर अमेरिका की आंखे नीचे होगी, पर काफी लोगों ने लाइक व कमेंट किया है। जींस कुर्ता जैकेट छायेगा, देखना राहुल गांधी आयेगा 2014 में फिर कांगेस सरकार जैसे पोस्टर दिख रहे है। जबकि भाजपा यूजर्स पेज पर- छोटी सोच को छोड़कर जरा नेक हो जाओं, मोदी को मिलेगा बहुमत अगर तुम एक हो जाओं। उनकी सोच है सत्ता कैसे बचाएं, हमारी सोच है देश कैसे बचाएं, जैसे पोस्टों की भरमार है। इन सबके साथ एंड्रोएड मार्केट में भी पार्टियों के एप्लीकेशन से लोगों को रिझाने की कोशिश हो रही है।
विकास योजनाओं पर जमकर ट्वीट्स
जाति धर्म के नाम पर वोट मांगने वालों को आनलाइन की दुनिया में मुंह की खानी पड़ रही है। ऐसे में अपने पारंपरिक वोटो पर इतराने वाली पार्टिया इस वर्ग के युवाओं पर भी नहीं डाल पा रही। सोशल साइट्स ब्रेकर डाट काम की मानें तो पूर्वांचल के अधिकतर यूजर्स राजनीतिक पार्टियों के पेजों पर केवल विकास के मुद्दों पर ही बात कर रहे है। इनमें करीब 82 फीसदी 18-40 वर्ष के बीच है, जिन्हें विकास के नाम पर ही वोटों को बदलने की कोशिश की जा सकती है। इसी के चलते प्रत्याशियों ने भी सोशल साइट्स पर आवाजाही तेज कर दी है। कईयों ने तिथि घोषित होते ही न केवल पेज क्रिएटिव किया है, बल्कि अपडेट के लिए भारी-भरकम स्टाफ की भी नियुक्ति कर ली है।
झूठे वादों से होगा नुकसान
झूठे वादों की बात करना बेमानी है। ऐसा करने वालों को कई यूजर्स ने न केवल आंकड़ों से आइना दिखाया बल्कि असल तस्वीर भी पेश कर रहे है। ऐसे में प्रत्याशियों की ओर से किए गए जमीनी तोर पूरे होने वाले वादों से भी उनके मूड को बदला जा सकता है। झूठे वादों पर नेताओं को यूजर्स के तीखे कमेंट भी झेलने पड़ रहे है। लोग इस बात से गुस्सा है कि नेता समस्याओं पर ध्यान देने के बजाए सच बोलने व लिखने वालों पर फर्जी मुकदमे व योजनाओं की लूट-खसोट में ही वक्त जाया कर रहे है। स्थानीय दिक्कतों को लेकर बाहुबलियों की खूब पोल-पट्टी खोल रहे है।
सुरेश गांधी
भदोही

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