तेज रफ़्तार यानि बुलेट ट्रेन। जो कल तक एक ख़्वाब था। लेकिन अब पीएम मोदी इसे कल्पनाओं से उतारकर हकीक़त जिन्दगीं में लाना चाहते हैं। असल रफ़्तार से देश को रूबरू कराना चाहते हैं। लेकिन ये रफ़्तार काफी महंगी है। जो आम और ख़ास का फर्क नाम भर से बताने लगी।
बुलेट ट्रेन की महज एक किलोमीटर तक की पटरियां बिछाने का खर्च लगभग 125 करोड़ रुपये है। जबकि भारत में चलने वाली ट्रेनों की पटरियों में तीन करोड़ का ही खर्च आता है। इसे अहमदाबाद से मुंबई के लिए सबसे पहले लाने की योजना है। जिसकी दूरी लगभग 500 किलोमीटर। और 122 करोड़ की दर से खर्च होगा लगभग 60 हजार करोड़ रुपये। फिलहाल रेलवे बोर्ड ने इतना बजट न होने की बात कहकर अपने हाथ खड़े कर लिए हैं। कुल मिलाकर ये ट्रेन लगभग 80 हजार करोड़ रुपयों के खर्च के बाद ही चल पायेगी। जैसा की खर्च तगड़ा है। तो किराया भी हाई फाई होना वाजिब है।
अगर मोदी सरकार बुलेट ट्रेन लाना चाहती है। तो उसे तेज रफ़्तार में अभी से इसके लिए कार्य करना होगा। तब जाकर ये लगभग आठ साल बाद पटरियों पर उतर सकेगी। जापान सरकार से हाथ मिलाने के बाद जापान ने भारतीय रेल बोर्ड के साथ हिस्सेदारी की तैयारी भी कर ली है। और रेल रूट के लिए जापान के कुछ इंजीनियरों का ग्रुप रिपोर्ट बनाने में लगा है। जो कि जुलाई 2015 तक तैयार हो जाएगी।
इसके यात्रियों का वास्तविक निर्धारण तो ट्रेन के चलने के बाद ही होगा। बहरहाल उम्मीद दौलतमंदों की खातिर ही नज़र आ रही है।
अब ट्रेन के वास्तविक रूप लेने में आर्थिक समस्याएं किन रूपों में आती हैं ? क्या लोगों पर स्वप्न के लिए अतिरिक्त बोझ डाला जायेगा ? ये वक़्त ही सुनिश्चित करेगा।
---हिमांशु तिवारी---
संपर्क : 08858250015
कानपुर

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