बाढ़ में फंसे लोग भूख से मर रहे है। साथ ही सांसे सलामत रखने के लिए जिंदगी से जंग लड़ रहे है। हालात सुधरने के बजाएं हर दिन गंभीर हो रहे है। झेलम का बढना तो शांत हो गया, लेकिन बाढ़ में तबाह हुए लोगों की लाशे अब सड़-गलकर महामारी के रुप में बह रही है। पानी पूरी तरह संक्रमित हो चुका है। मतलब साफ है, बाढ़ की तबाही के बाद अब महामारी का खौफनाक मंजर। एक-दो को छोड़ देते तो यहां के सारे अस्पताल भी बाढ़ के दरिया में जलसमाधि ले चुके है। डायरिया, गैस्टो, हेपेटाइटिस आदि जैसे जानलेवा बीमारी के तांडव से बचा कैसे जाएं और मौत से जुझ रहे 5 लाख लोगों को बचाया कैसे जाएं, इसकी एक बड़ी चुनौती सामने है।
श्रीनगर और कश्मीर में 109 साल की सबसे बड़ी त्रासदी। धरती की जन्नत को ऐसे जख्म मिले हैं जो ताउम्र नहीं भरेंगे। पिछले दो सप्ताह में कश्मीर ने जो सहा है, जो सह रहा है, उससे सिर्फ आह निकल रही है। पानी के बीच लोग पानी को तरस रहे है। बाढ़ में फंसे लोग भूख से मर रहे है। साथ ही सांसे सलामत रखने के लिए जिंदगी से जंग लड़ रहे है। हालात सुधरने के बजाएं हर दिन गंभीर हो रहे है। अनंतनाग से लेकर शिवपुरा तक में भले ही झेलम का बढना शांत हो गया, लेकिन बाढ़ में बाह हुए लोगों की लाशे अब सड़-गलकर महामारी के रुप में बह रही है। पानी पूरी तरह संक्रमित हो चुका है। मतलब साफ है, बाढ़ की तबाही के बाद अब महामारी का खौफनाक मंजर। एक-दो को छोड़ देते तो यहां के सारे अस्पताल भी बाढ़ के दरिया में जलसमाधि ले चुके है। डायरिया, गैस्टो, हेपेटाइटिस आदि जैसे जानलेवा बीमारी के तांडव से बचा कैसे जाएं इसकी एक बड़ी चुनौती सामने है। हालांकि केन्द्र सरकार का दावा है कि बडे पैमाने पर दवाईया व चिकित्सकों का इंतजाम आने वाली महामारी से निपटने के लिए तैयारियां पूरी कर ली है, लेकिन बीते 24 घंटों में ऐसी कोई व्यवस्था नजर नहीं आई और लोग इलाज के अभाव में दम तोड़ने लगे है। सवाल यह है कि इस भयावह संकट को पहले ही क्यों रोका नहीं जा सका? 4 साल पहले जम्मू-कश्मीर की बाढ़ नियंत्रण डिपार्टमेंट की चेतावनीभरी फाइलें, सिमंे तबाही का जिक्र है, कहां दबी रह गयी, जो जिम्मेदार लोगों तक पहुंच नहीं सकी। हरकत में आई तक जब पूरा कश्मीर व श्रीनगर जलसमाधि ले लिया है। इस फाइल की भी ओह तो लेनी होगी, जिस पर समय पर कार्रवाई हो गयी होती तो इस खौफनाक मंजर से बचा सकता था, लाखों जाने काल-कलवित नहीं हो पाती।
जम्मू-कश्मीर व श्रीनगर में त्रासदी का खौफनाक मंजर अभी बना रहेगा, क्योंकि बाढ का पानी निकलने का हर रास्ता बंद है। यहां की भौगोलिक स्थिति कटोरे जैसा है। इसके चलते दर्जनों इलाकों में अब भी दो-तीन मंजिले पानी में डूबे हुए है। लोग सैलाब के आंसू से फूट-फूट कर रो रहे है। वहां के लोगों को इस कमायत ने मौत का ऐसा मंजर दिखाया है जिसे सुनकर-देखकर रुह कांप जाती है, रोेम-रोम सिहर उठता है। पिछले दो सप्ताह में डेढ़ लाख लोगों को तो सुरक्षित ठेकाने पर पहुंचा दिया गया है, मगर त्रासदी इतनी बड़ी है कि 5 लाख लोग अब भी मौत से जूझ रहे है। मदद के लिए चिख रहे है-चिल्ला रहे है। सैलाब के बीच सिसक रहे है। इलाकों में पानी अपना प्रकोप दिख रहा है। चारों तरफ पानी ही पानी है। लेकिन लोग प्यास से तड़प रहे है। ंिजंदा तो है लेकिन पेट कमर से चिपक गयी है। भीतरी इलाकों की हालात बेहद खराब है, उन्हें खाने को कुछ नहीं है। राहत के काम में तो सेना से लेकर सरकार तक जुटी है, लेकिन वह उंट के मुंह में जीरे के समान है। 30 हजार सेना के जवान 44 हेलीकाप्टर, एनडीआएफ आदि लगे है, लेकिन त्रासदी कम नहीं हो रही है। मरने वालों की तादाद लगातार बढ़ती ही जा रही है। किसी को समझ नहीं आ रहा है पानी कब निकलेगा। सैलाब ने ऐसा डेरा डाला है कि लोग समझ नहीं पा रहे इससे कैसे निपटा जाएं। कश्मीर के कई इलाके तो ऐसे है जहां राहत पहुंचाना तो दूर हालात के बारे में लोगों को पता तक नहीं है। ऐसे में मौत का आंकड़ा कितना पड़ेगा कहा नहीं जा सकता। हेलीकाप्टर से जो पैकेट गिराई जा रही, वह पर्याप्त नहीं है। विगत 109 वर्षो में ऐसी त्रासदी कभी नहीं आई। राजबाग जो आज पूरी तरह पानी में डूबा है 55 बरस पहले भी इसी तरह के बाढ़ इाई थी लेकिन उस वक्त कोई जनहानि नहीं हुई। हालांकि उस वक्त चेताया गया था कि इसके स्थाई उपाय खोज निकालने होंगे। उपाय खोजना तो दूर उल्टे पेड़ों व पहाड़ों की कटाई कर रेहाइशी कालोनियां बना दी गयी। आज यही उपेक्षा बाढ़ की वजह बन गयी है। लोगों की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। बाढ़ की चपेट में फंसे लोग जिंदा तो है लेकिन पेट की भूख से कराह रहे है। लोग सरकार की मदद के इंतजार में है, इस बाढ़ग्रस्त इलाके में लोगों तक अभी तक राहत सामग्री नहीं पहुंची है, जिसके चलते इलाके के लोगों ने मोदी सरकार पर अपना गुस्सा जाहिर कर मोदी सरकार मुरदाबाद के नारे लगा रहे है। तबाही का दरिया लोगों को घरों में कैद कर रखा है।
सूत्र बताते है कि 11 फरवरी 2010 को एक स्थानीय अखबार ने खबर छापी थी कि जिसमें अगले पांच सालों बाद झेलम को लेकर तबाही आने का जिक्र है। इस रिपोर्ट फाइल में कहा गया है कि समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो जम्मू-श्रीनगर मार्ग बह जायेगा, हवाई मार्ग की सड़के तहस-नहस हो जायेगी। डेढ़ लाख क्यूसेक पानी तबाही ला देगा, जैसी आशंका वाली बाढ़ नियंत्रण विभाग की फाइल केन्द्र व राज्य सरकार के किस आलमारी में दुबकी है। इसकी भी खोजबीन तो करनी होगी। जिम्मेदार लोगों को खोज निकालना ही होगा, क्योंकि उनकी यह अनदेखी आज लाखों लोगों को डूबो दी है। बेघर कर दिया है। यह ऐसा त्रासदी है जिसके जख्म भरने में सालों लग जायेंगे। कहा जा रहा है कि इस रिपोर्ट फाइल में 22 करोउ़ रुपये की मदद मांगी गयी थी। जिसे 500 करोउ़ रुपये किस्तों में देने को कहा गया था, लेकिन यह फाइल और धन कहां गए, किसे दिए गए इसका जिक्र तो अब जांच के बाद ही स्पष्ट हो पायेगा। लेकिन इतना तो साफ है कि आपदा बताकर मामले को शांत करना एक और गुनाह को बढ़ावा देना है। ऐसे में पूरे प्रकरण की जांच कर गुनाहगार को असल ठेकाने तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी सरकार की ही है। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि इतना सटीक पूर्वानुमान होने के बावजूद जममू-कश्मीर सरकार क्यों नहीं गंभीर हो सकी। उसने बाढ़ से बचाव के पुख्ता इंतजामात क्यों नहीं किए। और यदि उसने यह सब नहीं किया तो आज कश्मीर व श्रीनगर में जानमाल का जो नुकसान हुआ या हो रहा उसकी जिम्मेदारी सरकार की है। वहां के मुख्यमंत्री को क्यों नहीं कटघरे में खड़ा किया जा रहा। अगर उनकी जिम्मेदारी हे तो उन पर कार्रवाई भी उतनी ही बड़ी की जानी चाहिए। सरकार में बने रहना, बर्खास्त किया जाना या इसी वर्ष होने वाले चुनाव में उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया जाना सजा नहीं है। सजा ऐसी दी जानी चाहिए जिससे देश के तमाम राजनेता अधिकारी और सरकारी कर्मचारी याद रखे। देश में गलत काम का सजा देने की मिसाल बने। धन्य है हमारे सेना के जवान ओर कुछ बहादुर अधिकारी जो अपनी जान सांसत में डाल षढयंत्रकारियों के पत्थर खाकर भी उन्हें बचा रहे है। अन्यथा वहां की सरकार के बूते तो वहां की सड़कों पर उसी तरह शव बहते नजर आते जेसे वहां आतंकवादी घूमते-फिरते नजर आते है। इस घटना ने देश की लचर आपदा प्रबंधन की भी पोल खोल दी है। इनत माम पहलुओं पर सरकार या इससे जुड़े लोगों को नए सिरे से कुछ करने की जरुरत है।
दूर-दराज के आएं लोगों का 12 दिनों तक देश-दुनिया व घर से संपर्क टूटा हुआ है। जो बचाएं गए है उनके सामने भी संकट ही संकट है। संकट जहन्नुम से भी बदतर। हर तरफ तबाही का मंजर। हर तरफ बर्बादी की विभिषिका। आंखे इंकार कर देती है इस दृश्य को देखने से। मन भी मानने को तैयार नहीं, मगर सच यही है। सच की धरती की जन्नत छलनी हो चुकी है वो भी खुद कुदरत के ही हाथों। 12 दिन बीत गए है, लेकिन मुसीबतों ने ऐसा डेरा डाला कि वो जाने का नाम नहीं ले रही। युद्धस्तर पर राहत व बचाव चल रहा है मगर ये त्रासदी इतनी बड़ी है कि बाकी सब कुछ बौना दिख रहा है। वादियों के दामन को नदियों ने इस कदर छलनी किया है। कि भरने में वर्षो लगेंगे। कुछ तो शायद कभी भी न भर पाएं। दूर देश के शैलानी भी जहां जाकर सकून महसूस करते है वहां मातम पसरा है। सड़के, दुकाने, मकान न जाने कितनी जानें सैलाब में स्वाहा हो चुकी है। बेवसी तो देखिएं पानी को आने में भी जरा भी वक्त नहीं लगा लेकिन जाने में कितना वक्त लगेगा कुछ नहीं कहा जा सकता। प्रशासन अपनी तरफ से लगा है, सेना दिन-रात काम कर रही है। जान हाथ पर रखरकर लोगों की जान बचाने में जुटी है। मगर मुसीबत एक तरफ कुंआ तो दुसरी तरफ खाई वाली। जो लोग बचाएं गए है, वह सड़कों पर है। उनके खाने पीने का क्या होगा और कितना होगा यानी बचकर भी वो पूरी तरह बचे नहीं है। खैर जहां तिनका भी बड़ा सहारा रखता है, वहां सेना की दरियादिली व जिंदादिली लोगों की आंखों में उम्मीदों की नयी रोशनी बनकर उभरी है। सैलाब आने के बाद से हजारों जवान फरिश्ता बनकर लोगों की जान बचाने में जुटे है। फिर भी न दर्द संभलते है न आंसू रुकते। किसी ने अपने को खोया है तो किसी ने पड़ोसियों को। माल मालकात कितना नुकसान हुआ है यह अलग। जिंदगी बचाने की जदोजहद में जुटे लोगों को जरा भी अंदाजा नहीं था कुदरत उन्हें ये दिन दिखायेंगी। आतंकवाद की मार तो सालों से लगातार झेल रहे है, लेकिन कुदरत ने इस कदर कहर बरपायेगी किसी ने सपने में भी नहीं सोचा। मगर हकीकत यही है कि जिंदगी और मौत के बीच अब भी जंग जारी है। जल्द ही इसमें महामारी भी फन काढ़े बैठी है।
(सुरेश गांधी )

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें