दिल्ली की गद्दी पर 15 वर्ष तक एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस की स्थिति ऐसी हो गई है कि वह सोचने लगी है कि सत्ता मिले या न मिले पर वह दो नंबर की पार्टी अवश्य बन जाये. पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी.आप. के उदय से भारतीय जनता पार्टी.भाजपा. का दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने का सपना तो ही टूटा लेकिन कांग्रेस की इतनी अधिक दुर्गति हुई कि उसकी सरकार ही नयी गई बल्कि उसके विधायकों की संख्या 43 से सिमटकर आठ रह गई और वह तीसरे नंबर की पार्टी बन गयी। कांग्रेस जिस शीला दीक्षित के नाम पर तीन बार से सत्ता पाने में सफल हुई उनकी स्थिति यह रही कि वह अरविंद केजरीवाल की आंधी में टिक नहीं पाई और 25864 वोटों के भारी अंतर से पराजित होकर दिल्ली की सक्रिय राजनीति से लगभग ओझल हो गईं. विधानसभा चुनावों में चार बार से लगातार जीतते आ रहे शीला सरकार के सबसे वरिष्ठ मंत्री अशोक कुमार वालिया भी नहीं टिक पाये. विधानसभा अध्यक्ष योगानंद शास्त्री के अलावा कई अन्य मंत्रियों और कई बार से जीतते आ रहे विधायकों का तंबू भी उखड गया . इस वर्ष हुए आम चुनाव में कांग्रेस की इससे भी अधिक दुर्गति हुई. वह दिल्ली की सातों लोकसभा सीटें हार गई. यहां तक की मनमोहन सरकार में मंत्री कपिल सिब्बल और कृष्णा तीरथ की जमानत भी जब्त हो गई. कांग्रेस की इतनी पतली हालत हुई कि वह आम चुनाव में 70 विधानसभा क्षेत्र में एक पर भी बढत नहीं बना पाई. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल को लोकसभा चुनाव हारने के बाद हटा दिया गया. युवा नेता और शीला सरकार में मंत्री अरविंदर सिंह लवली को दिल्ली की कमान साैंपी गई. दिल्ली प्रभारी शकील अहमद को हटाकर पी सी चाको को प्रभार दिया गया.
लवली की अगुवाई में भी कांग्रेस चमत्कार दिखाने की स्थिति में नजर नहीं आ रही है । पार्टी में गुटबाजी चरम पर है। चुनाव हारने के बाद केरल की राज्यपाल बना दी गई शीला दीक्षित ने केन्द्र में सत्ता परिवर्तन के बाद राज्यपाल के पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद उनके दिल्ली की राजनीति में फिर से सक्रिय होने की अटकलें लगाई गईं लेकिन श्रीमती दीक्षित ने स्वयं ही चुनाव लडने से इंकार कर दिया. उनके विरोधी भी नहीं चाहते कि वह फिर से दिल्ली में सक्रिय हों और वह भीतर.भीतर इसका जमकर विरोध कर रहे हैं. दिल्ली विधानसभा भंग हो चुकी है चुनाव अगले वर्ष फरवरी में होने की अटकलें हैं. आप और भाजपा पूरे जोरशोर से चुनाव प्रचार में जुट चुकी हैं . लेकिन ऐसा नजर आता है कि कांग्रेस अभी भी हताशा से उबर नहीं पाई है । कांग्रेस के नेता दिल्ली की सत्ता पर फिर से आने की बात करने से भी कतरा रहे हैं और केवल यह कहते हैं कि हमारी स्थिति में सुधार होगा. अगले वर्ष होने वाले चुनाव को लेकर कांग्रेस असमंजस की स्थिति में है और वह सरकार बनाने की बात न कर दूसरे नंबर की पार्टी बनने के लिए हाथ पैर मार रही है । पिछले साल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के आठ विधायकों में से चार मुस्लिम और एक सुरक्षित सीट से जीता था। आप ने कांग्रेस की परंपरागत दलित सीटों में सेंध लगाई थी और 70 में से कुल 12 सुरक्षित सीटों में से नौ पर जीती थीं.

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