दुनिया भर में बाल मजदूरी के खिलाफ अलख जगाने वाले .बचपन बचाओ आंदोलन .के प्रणेता भारत के कैलाश सत्यार्थी और देश की विपरीत परिस्थितियों में भी अदम्य साहस के साथ मुखर रूप से लड़कियों की शिक्षा की पैरोकार रही पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई को आज यहां संयुक्त रूप से शांति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। नोबेल पुरस्कार के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी भारतीय और पाकिस्तानी को संयुक्त रूप से इस पुरस्कार से नवाजा गया है। नार्वे की राजधानी ओस्लो के सिटी हॉल में एक बडे समारोह में सबसे पहले श्री सत्यार्थी को पुरस्कार के रूप में एक स्वर्ण पदक और एक डिप्लोमा दिया गया। उनके बाद मलाला को पुरस्कार प्रदान किया गया। पुरस्कार लेने के बाद दोनों विजेताों ने एक बड़ी मुस्कान के साथ अपना पुरस्कार लोगों को दिखाया। सपेंद कुर्ता पहने श्री सत्यार्थी और लाल शॉल से लिपटी मलाला के लिये हॉल में मौजूद लोगों ने खडे़ होकर उनके लिए तालियां बजायीं।
पुरस्कार दिये जाने से पहले पाकिस्तानी गायक राहत फतह अली खान ने अपनी दमदार आवाज में कव्वाली गायी और उसके बाद पूरा सिटी हॉल प्रसिद्ध भारतीय सरोद वादक अमजद अली खान के वादन से झूम उठा. नार्वे नोबेल समिति के अध्यक्ष थार्बजॉन जैगलैंड़ ने कहा कि श्री सत्यार्थी ने बाल श्रम को खत्म करने के लिए काफी प्रयास किये। उन्होंने कहा कि सुश्री मलाला ने अपनी बहादुरी से दुनिया को रूबरू कराया। श्री जैगलैंड ने कहा कि तालिबान के खिलाफ आवाज उठाने वाली मलाला ने दिखाया कि यदि बहादुरी से कुछ करने की सोची जाये तो उसमे जरूर सफलता मिलती है। उन्होंने कहा कि सुश्री मलाला स्कूली बच्चों के लिए प्रेरणा बनी हैं। श्री सत्यार्थी ने बच्चों के अधिकारों के लिए लड़ाई की जबकि सुश्री मलाला ने बालिकाों की शिक्षा के हक में आवाज उठाई। पाकिस्तान की 17 वर्षीय सुश्री मलाला नोबेल शांति पुरस्कार पानी वाली सबसे कम उम्र की शख्सियत हैं। नोबेल शांति पुरस्कार समिति ने यहां जारी विज्ञप्ति में कहा.. शांतिपूर्ण वैश्विक विकास के लिए यह जरूरी है कि बच्चों और युवाों के अधिकारों का सम्मान किया जाये।युद्धरत और संघर्षरत क्षेत्र में यह खासकर जरूरी हो जाता है जहां बच्चों के अधिकारों का हनन पीढी दर पीढी हिंसा में परिवर्तित हो जाता है।
विज्ञप्ति में कहा गया है कि अदम्य व्यक्तिगत साहस और गांधी की परंपरा का पालन करते हुए श्री सत्यार्थी ने कई तरह के विरोध प्रर्दशन आयोजित किये। ये सभी प्रर्दशन शांतिपूर्ण तरीके से आयोजित किये गये जिनमें वित्तीय लाभ के लिए बच्चों के शोषण के खिलाफ आवाज उठायी गयी। इसके साथ ही उन्होंने बाल अधिकार के लिए अंतरराष्ट्रीय करार के विकास के लिए भी योगदान दिया। कम उम्र की होने के बावजूद मलाला लडकियों की शिक्षा के लिए पिछले कई वर्ष से संघर्ष कर रही हैं और उन्होंने अपने इस संघर्ष से बच्चों और युवाों को यह संदेश दिया है कि वे अपनी स्थिति में सुधार लाने के लिए योगदान दे सकते हैं। मलाला ने यह कदम बहुत ही विपरीत और खतरनाक परिस्थितियों में उठाया है। अपने संघर्षा के दम पर मलाला लडकियों के शिक्षा के अधिकार की प्रवक्ता बन गयी है। विज्ञप्ति में कहा गया है कि नोबेल समिति इसे हिंदुों और मुस्लिमों .भारतीय और पाकिस्तान के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण मोड मानती है जहां वे शिक्षा और चरमपंथ के खिलाफ एकजुट होकर लड सकते हैं। आज दुनिया भर में 16 करोड 80 लाख बच्चे बाल मजदूरी के शिकार हैं। वर्ष 2000 में यह संख्या सात करोड 80 लाख अधिक थी। पूरी दुनिया अब बाल मजदूरी के खात्मे की ओर बढ रही है।
विज्ञप्ति में कहा गया है कि अल्फ्रेड नोबेल ने अपनी वसीयत में लिखा था कि नोबेल शांति पुरस्कार के लिये ..देशों के बीच भाईचारा..को भी एक मानदंड बनाया था और शोषण के खिलाफ और बच्चों एवं युवाों के अधिकार के लिये संघर्ष से उनके इस सपने को यथार्थ में बदलने में योगदान मिला है। श्री सत्यार्थी ने अपना पुरस्कार बच्चों और अपने सहयोगियों को र्समपित करते हुए वैदिक मंत्र के साथ अपने भाषण की शुरूआत की।उन्होंने कहा.. मानवता के इस पवित्र मंच पर .मैं वैदिक मंत्र पढते हुए गर्व महसूस कर रहा हूं. जिसमें पूरी दुनिया को सभी तकलीफों से मुक्त करने की क्षमता है। किसी को भी छोडे बिना. पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक शंति स्थापित करने के लिए हम सब एक साथ संघर्ष करें। हम सभी साथ काम करें.साथ बढें ताकि पूरी दुनिया को लाभ हो। उन्होंने तालियों की गडगडाहट के बीच कहा.. मैं अपने माता पिता की याद करता हूं. अपने देश को याद करता हूं जो स्वर्ग से भी बेहतर है। मैं उन सभी हजारों बच्चों को याद करता हूं जिनकी मुक्ति के जरिये .मैं मुक्ति महसूस करता हूं। मैंने हमेशा उनके चेहरे को भगवान के जैसा देखा है। मैं यहां निर्दोषों के मौन और रूदन के स्वर का प्रतिनिधित्व करता हूं। मैं उन लाखों बच्चों का प्रतिनिधित्व करता हूं. जो पीछे छूट गये हैं। मैं यहां सभी बच्चों के सपनों और आवाजों को साझा करने आया हूं। उन्होंने कहा कि सभी महान धर्म बच्चों की देखभाल करने की शिक्षा देते हैं।उन्होंने कहा.. ईसा मसीह ने कहा था कि सभी बच्चों को मेरे पास आने दो। अपने बच्चों की आंखों से सपने छीनने से बडी हिंसा कोई भी नहीं है।
मलाला ने कहा कि अफ्रीका में कई बच्चों को शिक्षा नहीं मिल पा रही है ।उन्हें स्कूल जाने की आजादी नहीं मिली हुई है।खासकर भारत और पाकिस्तान में कई बच्चे सामाजिक कुरीतियों के कारण कष्ट सह रहे हैं और जबरन उनका बाल विवाह कराया जा रहा है या बाल मजदूरी की गर्त में धकेला जा रहा है। मलाला ने कहा ..मैंने अपनी कहानी इसलिए नहीं कही कि यह अनोखी है बल्कि इसलिये कही कि यह अनोखी नहीं. आम है । पाकिस्तान में यह आम घटना है। यह कई लडकियों की कहानी है। अपने दोस्तों तथा पाकिस्तान. सीरिया और नाइजीरिया के युवा कार्यर्कताों के साथ नार्वे पहुंची मलाला का यहां उनके र्समथकों ने जोरदार स्वागत किया। मलाला जल्द ही एक प्रर्दशनी लगायेंगी जहाुं आतंकवादी हमले के वक्त पहने उनके खून सने कपडे प्रर्दशित किये जायेंगे। इस अवसर पर पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी भी उपस्थित थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शांति पुरस्कार प्राप्त करने वाले दोनों लोगों को बधाई देते हुए कहा..पूरा देश ओस्लो में आयोजित इस समारोह को खुशी और गर्व के साथ देख रहा है । बधाई के सत्यार्थी।

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