बड़े जोरों से देश मे प्राथमिकता के आधार पर दुपहिया वाहनों से चलने वालों को हेल्मेट पहनाने की मुहिम चलाई जा रही है। चैराहों-चैखट्टों पर ट्रेफिक पुलिस के कैम्प लगे देखे जा सकते हैं, वहीं आस-पास हेल्मेट की चलती फिरती दुकानें भी देखने को मिल जायेंगी। लगता है, जैसे दोनों का चोली-दामन जैसा साथ हो एवं फुटपाथ पर हेल्मेट बेचने वाले यह संदेश दे रहे हों कि चालान कराओ और हेल्मेट खरीदो। वाहनों को रोक कर हेल्मेट नहीं पहनने के कारण उनके चालान करना और बसूली गई राशि को उपलब्धि माना जा रहा है।
निश्चित ही दुपहिया वाहनों पर चलने वालों के लिये हेल्मेट पहनने का उद्देश्य उन्हीं की सुरक्षा के लिये है। आये दिन दुर्घटनायें हो रही हैं और सिर मे दुर्घटना के कारण यदि गम्भीर चोट आ जाती है तो मृत्यु भी हो सकती है। इसलिये हेल्मेट पहनने की बाध्यता के पीछे सुरक्षित यात्रा करने का उद्देश्य है। इसके पीछे कानूनी स्थिति और माननीय सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश समझना होंगे। परन्तु गौर यह भी करना होगा कि पुलिस का कार्य ट्रेफिक व्यवस्था को सुचारू और सुदृढ़ बनाने के लिये सिर्फ इतना ही नहीं है कि हेल्मेट पहना दिया और ट्रेफिक व्यवस्था की इतिश्री हो गई हो। आम जनता और ट्रैफिक व्यवस्था के लिये जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों को इस दिशा मे निम्नांकित बिन्दुओं पर ध्यान देना होगा -
हेल्मेट पर कानूनी स्थिति क्या - गत समय सुप्रीम कोर्ट से निर्देश दिये गये हैं कि दुपहिया वाहन खरीदने पर एक हेल्मेट भी आवश्यक रूप से क्रय करना पड़ेगा। इस निर्देश के बिरूद्ध एक याचिका सोसायटी आॅफ इण्डियन आॅटोमोबाईल मैनूफेक्चरर्स की ओर से सुप्रीम कोर्ट मे इस आधार पर पुनः विचार हेतु दायर करते हुये कहा गया था कि जिस व्यक्ति के पास यदि पूर्व से दुपहिया वाहन है और उसके पास हेल्मेट भी है तब ऐसी स्थिति मे उसे दूसरा वाहन खरीदने पर हेल्मेट क्रय करने हेतु दवाब डालना दुपहिया वाहन के बिक्रेता को मुश्किल होगा, इस पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। एस. राजासीकरन बनाम यूनियन आॅफ इण्डिया के प्रकरण मे सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सड़क सुरक्षा के उपकरणों का उपयोग वाहन चालकों के लिये आवश्यक रूप से लागू किये जावें। चूंकि हेल्मेट भी सड़क सुरक्षा के उपकरणो की श्रेणी मे है, इस कारण प्रत्येक दृष्टिकोंण से हेल्मेट पहनना आवश्यक हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने समस्त सुसंगत तथ्यों पर विचार करते हुये विशेष रूप से चार विषयों पर जोर दिया है, - प्रथमतः ‘एन्फोर्समेन्ट’ अर्थात कानून एवं नियम का लागू होना, द्वितीयतः ‘इन्जीनियरिंग’ अर्थात सड़क सुरक्षा की दृष्टि से सड़कों का मेन्टीनेन्स और उन पर महत्वपूर्ण मार्किंग करना, तृतीयतः ‘एज्यूकेशन’ अर्थात सुरक्षित यात्रा के प्रति विशेषकर युवाओं मे जागरूकता का ज्ञान कराना तथा अन्त मे ‘एमरजन्सी’ अर्थात दुर्घटना के परिणामस्वरूप पीडि़त को तत्काल चिकित्सीय सहायता से उसे बचाया जाये। माननीय सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्देशों की ओर भी ट्रैफिक व्यवस्था से जुड़े जिम्मेदार अधिकारियों को ध्यान देना चाहिये।
हेल्मेट के अलावा कार्य कुछ और भी हैं - एस. राजासीकरन बनाम यूनियन आॅफ इण्डिया के प्रकरण मे सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिया है कि मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 132 के तहत वाहन का रोकना उस समय आवश्यक है जब उप-निरीक्षक स्तर का पुलिस अधिकारी विशेष परिस्थितियों मे उसे रोके, धारा 134 के अनुसार जब वाहन से हुई दुर्घटना के परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति को चोट पहुंचती है, तो ड्राईवर उस क्षतिग्रस्त व्यक्ति को निकटतम अस्पताल पहुंचायेगा और वाहन की बीमा कम्पनी को भी सूचित करेगा, धारा 184 मे प्रावधान है कि खतरनाक तरीके से वाहन चलाने पर 6 माह के दण्ड या जुर्माने से दण्डित किया जावेगा। धारा 189 के तहत जो भी व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर वाहन को दौड़ या गति का मुकाबला करने के लिये वाहन चलायेगा तो इस हेतु एक माह का दण्ड या जुर्माने का प्रावधान है, धारा 192 के तहत बिना रजिस्ट्रेशन का वाहन चलाने पर दण्डनीय अपराध है और एक बार दण्डित होने के पश्चात दूसरी बार कारावास तक का दण्ड दिया जा सकेगा। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कानून के इन प्रावधानों को प्रभावी तरीके से लागू करने के भी निर्देश दिये हैं, परन्तु ट्रैफिक व्यवस्था के दौरान इस ओर ध्यान दिया जाना प्रकट नहीं हो रहा है।
तेज आवाज के हाॅर्न बजाना अपराध है - वाहन चालक सिर्फ सुरक्षा व आगे बढ़ने के लिये ही हाॅर्न न बजाकर मनोरंजन के लिये तेज आवाज मे हाॅर्न बजाते रहते हैं, उस कारण आम राहगीरों का सिर भी चकराने लगता है। यह कानूनन् अपराध है। आॅटो व आपे चालक इस तरह से तेज आवाज मे गाने बजाते हैं कि जैसे किसी शादी समारोह मे बज रहा हो। यह ध्वनि प्रदूषण का भी अपराध है। सेन्ट्रल मोटर व्हीकल रूल्स 1989 के रूल नम्बर 119 मे यह प्रावधान है कि प्रत्येक मोटर वाहन मे इण्डियन स्टेण्डर्ड आॅफ ब्यूरो द्धारा अनुशंसित हाॅर्न का ही प्रयोग किया जावेगा। इसी सन्दर्भ ‘मध्य प्रदेश कोलाहल नियन्त्रण अधिनियम 1985‘ के अनुसार ध्वनि विस्तारक यत्रों पर नियन्त्रण लगाने के साथ-साथ मोटर वाहनों से उत्पन्न होने वाले कोलाहल के सम्बन्ध मे स्पष्टतः प्रावधान है कि सड़क पर या किसी लोक स्थान पर मोटर यान तब तक चलाया या उपयोग मे नही लाया जायेगा जब तक कि एक्जास्ट सिस्टर्न को समुचित रूप से न ढं़क दिया गया हो, जिससे कि कोलाहल उत्पन्न न हो एवं कोई भी व्यक्ति वाहन से ऐसा हाॅर्न नही बजायेगा जिससे कि वहां पैदल चलने वालों को या किसी अन्य वाहन के चालक को क्षोभ उत्पन्न हो या वह घवड़ा जाये। इस संदर्भ मे भी तो ट्रेफिक पुलिस को ध्यान देना होगा कि वाहनों मे हाॅर्न कानून एवं नियम के अनुसार उनकी निर्धारित फ्रिक्वेन्सी की ही सीमा मे हो तथा ऐसे हाॅर्न म्यूजिकल नही होना चाहिये। कानून का उल्लंघन करने वाले को छः माह के जेल का कारावास अथवा एक हजार रूपये के अर्थ दण्ड की सजा का प्रावधान है। इस कानून का उल्लघंन दूसरी बार करने पर दण्ड की सीमा दो गुना हो जायेगी। हम समझ सकते है कि तेज ध्वनि को कानून निर्माताओं ने आम जनता की संवेदनशीलता के साथ देखते हुये ऐसा प्रावधान प्रदान किया है।
तेजी व लापरवाही से वाहन चलाना अपराध है - यह देखने मे आ रहा है कि दुपहिया वाहन बड़ी तेजी व लापरवाही से चलाते हुये पैदल राहगीरों के जीवन को खतरा उत्पन्न कर रहे हैं। घने बाजार गली मुहल्लों मे जिस प्रकार तेज गति से वाहन चल रहे हैं उससे तो ऐसा लगता है कि राहगीरों को भी हेल्मेट पहनाना ज्यादा जरूरी है। वाहन चालकों को हेल्मेट पहना कर सुरक्षित कर दिया लेकिन राहगीरों का जीवन तो खतरे मे ही है। आम रास्तों पर घने बाजार मे गली मुहल्लों मे अत्यंत तेज गति से मोटर सायकिलें दौड़ाई जा रही हैं। स्वयं पैदल चलने वाले राहगीरों को भी आगे बढ़ने के लिये रास्ता खाली नहीं मिलता है, उन गलियों मे, जहां जनता निवास कर रही है और बच्चे भी खेलते रहते हैं, वहां मोटर सायकिलें अत्यंत तेज गति से दौड़ाते हुये देखी जा सकती हैं। यद्यपि इन्हें यह पता होना चाहिये कि भले ही किसी के साथ दुर्घटना घटित नहीं भी हुई हो परन्तु मानव जीवन को खतरा उत्पन्न करने वाले तेज गति से वाहन चलाने पर धारा 279 आई.पी.सी. का अपराध है। आश्चर्य तो यह है कि किसी भी ट्रेफिक पुलिस वाले को इसका नियंत्रण करने हेतु सक्रिय नहीं देखा गया। पुलिस की ओर से सिर्फ धारा 279 आई.पी.सी. का चालान सम्भवतः किया ही नहीं जाता है, जब तक किसी को चोट न लग जाये अथवा किसी की हड्डी न टूट जाये, तब तक पुलिस धारा 279 आई.पी.सी. का चालान नहीं करती है। जब कि कानून की ऐसी कोई मंशा नहीं है कि धारा 279 आई.पी.सी.के लिये धारा 337 एवं 338 आई.पी.सी. का अपराध भी घटित होना आवश्यक हो।
बिना नम्बर के वाहन भी चल रहे हैं - ट्रैफिक पुलिस को इस ओर भी ध्यान देना होगा कि अनेकों वाहन बिना नम्बर-प्लेट के आम सड़क पर चलते हुये उनके सामने से निकल जाते है और हम शान्ति पूर्वक उन्हे देखते रहते हंै। वाहनों पर नम्बर नही होने के कारण बाद मे उसके अनेकों खतरनाक, परेशानीदायक एवं विपरीत परिणाम सामने आते हैं। बिना नम्बर वाले वाहन पर बैठकर यदि कोई अपराध करके भाग जाये तो फिर उसका पकड़ना मुश्किल हो जाता है। फरियादी और घटना के साक्षीगंण उस वाहन पर नम्बर नही लिखे होने के कारण अपराध करने वाले के संदर्भ मे कुछ नही बता पाते हैं, परिणामतः अपराध मे प्रयुक्त हुआ वाहन ज्ञात नही हो पाता है। जहां न्यायालय के समक्ष यह प्रकट हुआ कि दुर्घटना करने वाले वाहन पर नम्बर-प्लेट नही थी तो लाल, पीला, नीला, काला रंग के नाम से वाहन की पहचान होती है और ऐसे रंगो के तो अनेकों वाहन होते हैं। जिन वाहनो पर नम्बर नही लिखा है, ऐसे वाहनों को सख्ती के साथ जब्त किया जाना चाहिये। ऐसे भी अनेकों वाहन हो सकते है जिनका रजिस्ट्रेशन कई-कई वर्षों तक आर.टी.ओ. मे नही हुआ हो और यह भी संभव है कि ऐसे वाहन मालिक अनेकों अपराधों मे लिप्त होते हुये टैक्स की चोरी भी कर रहे हों।
राजेन्द्र तिवारी,
दतिया
फोन- 07522-238333, 9425116738
ई मेल : rajendra.rt.tiwari@gmail.com
नोट:- लेखक एक वरिष्ठ अभिभाषक एवं राजनीतिक, सामाजिक व प्रशासनिक विषयों के समालोचक हैं।

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