- विद्यार्थी जी के 84 वाॅ वलिदान दिवस पर बिशेष आलेख-
- शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी का बलिदान -याद रखेगा हिन्दुस्तान -संतोष गंगेले:
भोपाल- आजादी के पूर्व भारत देश को आजाद कराने के लिए भारतीय पत्रकारिता में देश के साहित्यकार, समाजसेवी, राजनेताओं का बहुत बड़ा योगदान रहा है । भारत को आजाद कराने में राजा राममोहन राय, पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी, बालगंगाधर तिलक, पं.दीनदयाल उपाध्याय जैसे साहित्यकारों के बीच गणेषषंकर विद्यार्थी जी ने पत्रकारिता की कलम पकड़ी थी । षहीद गणेषषंकर विद्यार्थी जी के बलिदान भारतीय पत्रकारिता के लिए प्रेरणा स्त्रोत व मार्गदर्षन बना । उनके बलिदान को याद रखेगा हिन्दुस्तान । इसके साथ ही महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के पत्र अभ्युदय से भी जुड़ गये । इन समाचार पत्रों से जुड़े और स्वाधीनता के लिए समर्पित पंडित मदन मोहन मालवीय की विचाार धारा के साथ समाज वे देष सेवा में लगे रहे ।
भारत देश की आजादी के लिए अपना जीवन न्यौछावर करने बाले भारतीय पत्रकारिता के पुरौधा शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म आश्विन शुक्ल चतुर्दशी संवत् 1947 दिनांक 26 अक्टूवर 1889 को श्रीमती गोमती देवी श्रीवास्तव (कायस्थ) की कोख से हुआ, उस समय श्रीमती गोमती देवी अपने पिता जी के घर अतरसुईया मोहल्ला इलाहावाद में थी इसलिए उनका जन्म ननिहाल में हुआ । इनके पिता का नाम बाबू जय नारायण लाल एक शिक्षक थें , यह परिवार ग्वालियर राज्य के मुुंगावली (अशोकनगर )में रहा करता था, । सामप्रदायिक एकता के प्रतीक अमरषहीद गणेष षंकर विद्यार्थी जी के प्रपितामह (परदादा) का नाम मुंशी देवी प्रसाद था जो हथगाॅव जिला फतेहपुर उत्तर प्रदेश के निवासी थें । इनके दादा जी का नाम बंशगोपाल उनके पुत्र बाबू जय नारायण लाल थें जो शिक्षक रहे । गणेश शंकर विद्यार्थी जी का विवाह 19 बर्ष की आयु में हेा गया था । अपनी अल्य आयु में जो कार्य किए वह समाज व देश हितों के लिए किए गये , उन्हे भारतीय इतिहास में उचित स्थान दिया गया है । देष की स्वतंत्रता के लिए किए गए गणेष शंकर विद्यार्थी जी के सराहनीय प्रयासों को कभी भुलाया नही जा सकता हे । उन्होने जाति - धर्म के भेद-भाव को मिटाकर मानव-धर्म को सर्वोपरि माना और अंततः इसी के लिए उन्होने अपने प्राणों को भी बलिदान कर दिया । विद्यार्थी जी देश भक्त, समाजसेवी, कुशल वक्ता और महान राजनीतिज्ञ ही नही , बल्कि वह देष के निर्भीक पत्रकारों में से थे । अंग्रेजों की गुलामी के समय भारत देष में हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में कर्मयोगी और उर्दू में स्वराज्य नामक समाचार पत्रों के माध्यम से विद्यार्थी जी ने अपनी लेखनी से लिखना शुरू किया था, देश के लोगों को जगाने का काम यहीं से शुरू किया । जब विद्यार्थी जी को यह लगने लगा कि हम अपनी लेखनी स्वतंत्र नही चला पाते है तो उन्होने अपना स्वयं का समाचार पत्र प्रताप का प्रकाशन किया । उनकी पत्रकारिता का उद्देश्य मानव जाति का कल्याण उनका उद्देश्य रहा उन्होने हमेशा प्रताप समाचार पत्र के माध्यम से गरीव, असहाय, जनता की अवाज बुलंद किया करते थें । उनकी मृत्यू 25 मार्च 1931 को हुई थी । यह दिन बलिदान दिवस के रूपमें मनाया जाता है ।
साहसी, वुध्दिमान, योग्यता के साथ साथ मानवता के धनी गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने अपने मित्र पंडित सुन्दर लाल के सम्पर्क में आने के बाद उन्हे पत्रकारिता से मोह हो गया और उन्होने क्राॅतिकारी महर्षि अरविन्द घोष के कर्मयोगिन से प्रभावित होकर एक पत्र कर्मयोगी समाचार पत्र को अपने लेख लिखने लगे यही से उन्होने पत्रकारिता की शुरूआत की इसके बाद अनेक समाचार पत्रों से जुड़ते चले गये । उन्होने आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सरस्वती समाचार पत्र में संपादन के साथ अनेक सालों तक वह पत्रकारिता के साथ जुड़े रहे । उन्होने तय किया कि वह देश की स्वाधीनता के लिए स्वयं अपना समाचार पत्र प्रकाशित कर कार्य करेगे । उन्होने अभ्युदय समाचार पत्र से कार्य छोड़कर पंडित शिवनारायण मिश्र के साथ बिचार विमर्ष करने के बाद स्वंय का समाचार पत्र प्रकाशन करने का तय किया । विधिक कार्यावाही करने के वाद 9 नवम्बर 1913 को प्रताप समाचार पत्र का उदय हुआ था । षहीद गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने कड़ी मेहनत व त्याग परिश्रम के साथ पत्रकारिता को जीवित रखा । वह स्वंय समाचार पत्र तैयार करते थें तथा उसको छापकर साईकिल से वितरण किया करते थें , कानपुर से निकलने वाली सभी रेल गाडि़यों में समाचार पत्र वितरण करना एवं अपने समाचार पत्र प्रताप का प्रचार-प्रसार करना उनकी दिनचर्या हो चुकी थी । उन्होने पत्रकारिता को समाजसुधार व देश प्रेम के लिए कलम का उपयोग किया ।
शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने देश व समाज के लिए समाचार प्रकाशित करने का होसला बुलंद किया । वह अंग्रेजी हुकुमत के सामने झुके नही जिस कारण अनेकों वार प्रताप समाचार पत्र को बंद किया गया तथा गणेश शंकर विद्यार्थी जी को जेल भेजा गया । 23 मार्च 1931 को क्रांतिकारी सरकार ने सरदार भगत सिंह को फाॅसी दी जिससे जनता बोखला गई तथा सरकार के खिलाफ नारे बाजी दंगों में परिवर्तन हो गई । कानपुर में हिन्दु मुस्लिम दंगों को अनेकोवार रोकने के बाद भी दंगे शांत को पूरा प्रयास किया लेकिन कुछ समाज विरोधी लोगों ने उनकी हत्या कर दी । वह काला दिवस 25 मार्च 1931 को अपने साथी राम रतन गुप्त जी चैवे गोला मोहल्ला से होते हुए मठिया पहुॅचे जहां कुछ देषद्रोही लोगों ने घेर कर गणेष षंकर विद्यार्थी जी की हत्या कर दी । वह देश प्रेमी तथा समाजसुधारक रहे । उनकी कलम व साहस को आज हम सभी प्रणाम करते है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें