एक ओर जहां सरकार विभिन्न प्रकार की योजनाएं तैयार कर बेरोज़गारी पर काबू पाने की बात करती है वहीं दूसरी ओर विडंबना यह है कि यही राजनितिक दल इसे सिर्फ एक मुद्दा बनाकर वोट हासिल करते हैं। इतना ही नहीं युवाओं को अच्छे दिनों का सपना भी दिखाते हैं। लेकिन बेरोज़गारी दूर करने का कोई विकल्प नहीं सुझाती हैं अथवा यूं कहा जाये कि वह बेरोज़गारी दूर करने के प्रति गंभीर नहीं होते हैं। अच्छे दिनों के इंतेज़ार में कितने ही नौजवान ऐसे हैं जो नौकरी पाने की अनिवार्य उम्र सीमा को पार कर चुके हैं। ऐसे में क्यूँ न हो कि यह बेरोज़गार युवा सरकार के बेबुनियाद दावों को नज़रअंदाज़ करके स्वरोज़गार शुरू करें और बचे हुए क़ीमती समय का सदुपयोग करते हुए जीवन को समृद्ध बनाने के लिए अपने घरों और आसपास के शहरों में स्वरोज़गार समूह की स्थापना करें। ऐसा करने से कम पैसों के साथ अपनी आर्थिक स्थिति को उन्नत बना सकते हैं। इसका सर्वश्रेष्ठ उदहारण राजस्थान के बीकानेर से तकरीबन 100 किमी की दूरी पर स्थित बज्जू गांव है। जहां उर्मुल नाम की एक गैर सरकारी संस्था विभिन्न योजनाएं चला रही हैं और उस सूखी एवं बंजर धरती को हरियाली में परिवर्तित करने में प्रयासरत है। इसके काम का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह कृषि के क्षेत्र में कई प्रयोग करता रहा है। वहीं दूसरी ओर पर्यावरण की रक्षा के लिए यह संस्था सरकार के साथ मिलकर पेड़ लगाने के लिए लोगों को जागरूक भी कर रही है। इसके साथ ही संस्था के सदस्यों द्वारा गया गीत ‘‘मरुधरा को मिलकर स्वर्ग बनाएंगे’’ अर्थात इस रेगिस्तान को स्वर्ग में परिवर्तित कर देंगे, से इनके कार्य और उद्देश्य स्पष्ट हो जाते हैं।
परंतु अफ़सोस की बात यह है कि जम्मू-कश्मीर को प्रकृति ने अपार सुंदरता प्रदान करने के साथ साथ उपजाऊ मिट्टी, भरपूर मात्रा में जल अनुकूल वातावरण और जंगल जैसी नेमतों से नवाज़ा है। यह वही धरती है जिसकी सुंदरता से प्रभावित होकर मुग़ल बादशाह जहांगीर ने इसे धरती का स्वर्ग की संज्ञा दी थी। इतना ही नहीं इसकी अनुपम सुंदरता के कारण इसे एशिया का स्विटज़रलैंड भी कहा जाता है। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि इसी स्वर्ग के रहने वाले युवाओं का जीवन नर्क क्यूँ बना हुआ है? क्यूँ यहाँ के नौजवानों के जीवन में अच्छे दिन नहीं आ रहे हैं? उनके लिए सुनहरे दिन कब आएंगे इसका अंदाज़ा लगाना बहुत ही कठिन है। राज्य में बनी मिलीजुली सरकार से जनता को उमीदें थीं विशेषकर युवाओं को आशा थी कि नई सरकार के आने से रोज़गार मिलेगा परंतु जिस प्रकार से सरकार के अंदर खींचतान बनी हुई है उससे निराशा उत्पन्न हुई है। निराशा बाढ़ पीडि़तों को भी हुई है, जो नई सरकार से उचित पुनर्वास की आस लगाए हुए थे। याद रहे कि पिछले वर्ष जम्मू-कश्मीर में आई प्रलयंकारी बाढ़ में ज़बरदस्त नुक्सान हुआ था। करोड़ों की संपत्ति बर्बाद हुई थी, कई जाने चली गई थी और पूरी की पूरी फसल तबाह हो गई थी। राज्य की जनता विशेषकर नौजवानों को आशा थी कि आर्थिक रूप से टूट चुके उनके परिवार को नई सरकार से रोज़गार के रूप में स्थाई सहायता मिलेगी।
2011 के एक सर्वे के अनुसार जम्मू-कश्मीर में बेरोज़गारों की कुल संख्या 6 लाख़ बताई गई थी। वर्त्तमान में यह संख्या 7 लाख से भी ऊपर पहुंच चुकी है। शिक्षित बेरोज़गारों की भी एक बड़ी संख्या राज्य में मौजूद है। सर्वे के अनुसार राज्य में स्नातक पास युवाओं की संख्या 29034 है, जबकि कश्मीर क्षेत्र में 46703 युवा 12 वीं पास हैं वहीं जम्मू में 27212 युवा 12 वीं पास हैं। कश्मीर घाटी में इंजीनियरिंग में स्नातक पास 4500 युवा हैं जबकि इसी विषय में डिप्लोमा धारकों की संख्या 8500 है। 6980 युवा कला विषय से जबकि 4094 युवा साइंस से स्नातक डिग्री के साथ रोज़गार का इंतेज़ार कर रहे हैं। कई बार ऐसा देखा गया है कि जिस नौकरी के लिए अनिवार्य योग्यता 12 वीं होती है उसके लिए पोस्ट ग्रेजुवेट युवा भी आवेदन करते है ताकि किसी प्रकार से नौकरी प्राप्त हो जाये। इसमें कोई दो राय नहीं है कि वर्त्तमान में राज्य सरकार बेरोज़गारी की दर को कम करने के लिए गंभीरता से प्रयास कर रही हैै। मुख्यमंत्री स्वयं इसे खत्म करना अपनी सरकार की प्राथमिकता बता चुके हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर राज्य के लाखों बेरोज़गार नौजवान कब तक सरकार से नौकरी की उम्मीद कर सकते हैं। वहीं केंद्र की ओर से अच्छे दिन आने और विकास के वादे भी किये गए थे, लेकिन यह भी पूरा होते नज़र नहीं आ रहा है।
रोज़गार की कमी का सबसे नकारात्मक प्रभाव राज्य की सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले युवाओं पर हो रहा है। जहां शिक्षा की कमी एक प्रमुख कारण भी रहा है। सीमापार से आये दिन होने वाली गोलाबारी यहां की नई पीढ़ी की शिक्षा व्यवस्था में सबसे बड़ी रुकावट बन जाती है। उदाहरण के लिए सीमावर्ती जिला पुंछ के किरनी गांव की बात की जाये तो वहां बहुत कम ऐसे युवा हैं जो उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार इस गांव में आजतक केवल एक व्यक्ति ने ही स्नातक से आगे तक की शिक्षा प्राप्त की है। जबकि आज के दौर में स्नातक अथवा उससे अधिक तक की शिक्षा प्राप्त नौजवान के लिए ही नौकरी के दरवाज़े खुले हैं। लेकिन वह बच्चे जो गोलाबारी के साये में जीवन बसर कर रहे हैं, जहां हर पल गोली और बारूद के बीच मौत की आहट सुनाई देती हो ऐसे में कोई बेहतर शिक्षा की कल्पना कैसे कर सकता है। यही कारण है कि यहां के युवा अन्य क्षेत्रों के युवाओं की अपेक्षा कम पढ़ेे लिखे होते हैं और जीवनयापन के लिए दूसरे राज्यों में छोटी नौकरियां करते हैं। कई नौजवान खाड़ी देशों में भवन निर्माण जैसे खतरनाक काम में लगे हुए हैं, जिसमे कई बार उनकी जान जोखिम में आ जाती है।
बात की जाये सरकारी योजनाओं की तो हार्टिकल्चर, एग्रीकल्चर और वाटरशेड जैसे विभिन्न विभागों में किसानों की मदद के लिए योजनाओं की भरमार है। इसी सिलसिले में पिछले दिनों राज्य स्तर की कार्यकारी समिति ने नेशनल लाइफ स्टॉक मिशन और ग्रास लैंड डेवलपमेंट एक्शन प्लान 2014-15 के लिए 16.95 करोड़ रुपए मंज़ूर किए और राज्य की जनता को आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न योजनाओं पर भी गौर किया गया। ज्ञात रहे कि इस योजना के अंतर्गत सरकार पशुधन की स्थिति को सुधारने का काम करेगी। जिसमें पोल्ट्री और दूध की पैदावार बढ़ाने और जानवरों के चारा की कमी को दूर कर, किसानों को पशुधन की उपयोगिता और पालने के तरीके की ट्रेनिंग देगी। इसके अतिरिक्त विभाग पशुओं को टीका लगाने पर पारिश्रमिक भी अदा करती है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि सरकार की ओर से बेरोज़गार युवाओं के रोज़गार के लिए अनगिनत योजनाएं हैं जिनका इस्तेमाल वह घर बैठे कर सकते हैं और परिवार की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने में विशेष योगदान दे सकते हैं। लगातार कम होते सरकारी नौकरियों के अवसर ने युवाओं को मायूस किया है लेकिन आय के दूसरे साधन के द्वार भी खुले हैं जिसका सदुपयोग उनके जीवन को रौशन बना सकता है।
अनीस उल हक
(चरखा फीचर्स)

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