वाराणसी : दमनात्मक कार्यवाही के विरोध में सत्याग्रह - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 19 अप्रैल 2015

वाराणसी : दमनात्मक कार्यवाही के विरोध में सत्याग्रह

  • कनहर बांध परियोजना के चलते विस्थापित हो रहे परिवारों को बचाने के लिए आन्दोलनरत है काशी के स्वयंसेवी संगठन 
  • आन्दोलनकारी महिलाओं पर पुलिस-पीएसी द्वारा लाठीचार्ज करने का आरोप 
  • कमिश्नर को सौंपा मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन पत्र, उच्चस्तरीय जांच की मांग 

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वाराणसी (सुरेश गांधी )। कनहर बांध परियोजना के चलते सैकड़ों परिवारों का न सिर्फ रहन-सहन बल्कि रोजी-रोटी सब छीन गया है। इस परियोजना से प्रभावित बड़ी संख्या में गरीब मजदूर विस्थापित होने के विवश है। उनके विस्थापन को लेकर काशी के स्वयंसेवी संगठन लगातार आंदोलन कर रहे है, लेकिन रविवार को परियोजना से संबंधित अधिकारियों ने आंदोलनकारियों की आवाज को लाठी के बल पर दबाने का प्रयास किया। इससे आक्रोशित आंदोलनकारियों ने काशी स्थित वरुनापुल लाल बहादुर शास्त्री घाट के पास सत्याग्रह की। साझा संस्कृति मंच द्वारा आयोजित सत्याग्रह सभा में वक्ताओं ने कहा, सोनभद्र के दुद्धी तहसील स्थित अमवार गांव में प्रस्तावित बांध योजना 1976 में बनी थी। तभी से आस पास के लगभग 100 से अधिक गांवों के आदिवासी अपने अस्तित्व का संघर्ष कर रहें हैं। सरकार के अनुसार, सिंचाई परियोजना के नाम पर बनने वाले इस बांध के डूब क्षेत्र में केवल 15 गांव आने हैं। जबकि वास्तविक स्थित इससे अलग है सरकारी आंकड़े में गाँव अमवार के ही प्राथमिक विद्यालय को ही डूब क्षेत्र से बाहर बताया गया है, जो कि बांध के प्रस्तावित नींव निर्माण स्थल से मात्र 2 किलोमीटर दूर स्थित है। कहा, एनजीटी द्वारा काम रोकने के आदेश के बावजूद शासन ने काम नही रोका है और बड़ी बड़ी मशीनों के प्रयोग से पहाड़ो का काटना जारी है। प्रस्तावित बांध से प्रभावित होने वाले ऐसे लोगों की संख्या भी अच्छीखासी है जो पास के ही रेनूकुट में बने रिहंद बांध से पहले ही उजड़ चुके हैं। 27 करोंड़ की लागत से 1976 में प्रारंभ कनहर बाँध परियोजना अब 2300 करोंड़ रूपये की हो गयी है जिसे बनाना वर्तमान सरकार के सम्मान की बात हो गयी है क्योंकि निजी औद्योगिक घरानों के साथ सरकार ने इस बांध के सम्बन्ध में समझौते किये हैं। 

कहा, इस परियोजना में विस्थापित होने वाले झारखंड, छत्तीसगढ़ और यूपी के सैकड़ो परिवार शामिल है। अपनी मांग को लेकर ये लोग विगत 4 महीने से धरने पर बैठे  है। विगत 14 अप्रैल को सुबह 6 बजे बाँध स्थल पर अम्बेडकर जयंती मनाने के लिए जब भीड़ जुटी तो प्रशासन ने एकतरफा कार्यवाही की। बहुसंख्यक रूप से महिलाओं की भागीदारी के साथ चल रहे इस प्रदर्शन पर स्थानीय कोतवाल के नेतृत्व में बर्बर लाठीचार्ज किया गया। तब से लगातार लगभग प्रतिदिन निहत्थे आन्दोलनकारियों पर पुलिस और पीएसी द्वारा बल प्रयोग किया जा रहा है। आस पास के गाँवों में घरो में घुस कर पुलिसिया तांडव जारी है। सैकड़ो लोगो का पता नही चल पा रहा है किसी को भी यहाँ तक कि मीडिया के लोगों को भी 2 किलोमीटर क्षेत्र में प्रवेश की इजाजत नही है जिससे धरनास्थल पर प्रशासन की मनमानी का सही पता नही चल पा रहा है। 

सभा में वक्ताओं ने कनहर में चल रहे विस्थापन से प्रभावित लोगों के शांतिपूर्ण आंदोलन को प्रशासन द्वारा बलपूर्वक दबाने की कोशिश को जघन्य और बर्बर बताते हुए इसकी निंदा की और कहा कि प्रशासन को सबके सामने वास्तविक स्थिति से अवगत करना चाहिए बातचीत से आन्दोलन का समाधान खोजने की कोशिश करनी चाहिए न कि इस प्रकार  दमनात्मक रवैया अपनाना चाहिए। वक्ताओं ने कहा कि अनियोजित विकास के नाम पर लोगो पुनर्वासित करना और जबरदस्ती भूमि अधिग्रहण करना किसान, आदिवासी और भूमिहीनों के लिए अत्यंत कष्टकारी है विकास की ऐसी नीतियों की पुनर्विवेचना होनी चाहिए. बड़े औद्योगिक घरानों को लाभ पहुचाने के लिए विभिन्न सरकारों द्वारा जल जंगल और जमीन पर से मूल निवासियों को जबरिया हटा कर इन प्राकृतिक संसाधनों पर उद्योगपतियों को काबिज करा रही है जिससे वे अधिक मुनाफा कमा सकें। सभा में निर्णय लिया गया कि मंच द्वारा गठित कुछ अनुभवी सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक दल शीघ्र ही इस पूरे क्षेत्र का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपेगा। बैठक के बाद पदयात्रा करते हुए लोग मंडलायुक आवास पहुचे और माननीय मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन पत्र सौंपा। 

सभा में प्रो सोमनाथ त्रिपाठी, प्रो, महेश विक्रम सिंह, डा आनंद प्रकाश तिवारी, वल्लभाचार्य पाण्डेय, गिर्संत कुमार, दिलीप दिली, धनजंय त्रिपाठी, डा नीता चैबे, जगन्नाथ कुशवाहा, चिंतामणि सेठ, लक्ष्मण प्रसाद, राम जनम भाई, राजेंद्र चैधरी, अनूप श्रमिक, प्रदीप सिंह, प्रेमनाथ सोनकर, मुकेश झंझरवाला, अमित यादव, गणेश कुमार गौतम, शिवमूर्त राजभर, विनोद कुमार, रितेश, हेमंत कुमार, दयाशंकर पटेल आदि मौजूद रहे। 

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